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झोपड़ी में पढ़ाई, पड़ोसी के घर टॉयलेट को मजबूर छात्रा; कैबिनेट मंत्री के इलाके में बच्चों का बुरा हाल

राजस्थान के जोधपुर जिले में लूणी विधानसभा क्षेत्र के गांव में झोपड़ी में स्कूल चलता है और बच्चे पड़ोसी के घर में टॉयलेट करने जाते है. इस क्षेत्र से कैबिनेट मंत्री जोगाराम अपना प्रतिनिधित्व करते हैं.   

झोपड़ी में पढ़ाई, पड़ोसी के घर टॉयलेट को मजबूर छात्रा; कैबिनेट मंत्री के इलाके में बच्चों का बुरा हाल
जोधपुर में झोपड़ी में चल रहा सरकारी स्कूल.

Rajasthan News: राजस्थान में जोधपुर के संगरिया गांव में एक सरकारी संस्कृत स्कूल की कहानी ऐसी है जो शिक्षा के दावों पर सवाल खड़े कर देती है. यह स्कूल लूणी विधानसभा क्षेत्र में बसा है जो कैबिनेट मंत्री जोगाराम पटेल का प्रतिनिधित्व करता है. यहां गरीब बच्चों के सपने एक कच्ची झोपड़ी की छांव तले सिमटे नजर आते हैं. मौसम की मार हो या पढ़ाई का दर्द सब कुछ एक ही जगह सहना पड़ता है. आखिर कब तक ऐसे स्कूलों में नई पीढ़ी को रोका जाएगा?

कच्ची झोपड़ी बनी कक्षा, सुविधाओं का नामोनिशान नहीं

संगरिया गांव का राजकीय उच्च प्राथमिक संस्कृत विद्यालय देखने लायक है. 15 गुणा 15 फुट की पुरानी झुकी हुई कच्ची झोपड़ी के नीचे ही आंगन में बच्चे बैठकर पढ़ते हैं. न कोई पक्का कमरा न टेबल कुर्सियां. बस फर्श पर चटाई बिछाकर किताबें खोल ली जाती हैं.

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2022 में यह स्कूल जालौर से यहां शिफ्ट हुआ था लेकिन तीन साल बाद भी हालात वही हैं. गर्मी में धूप की चुभन सर्दी में ठंड की ठिठुरन और बारिश में पानी की बौछारें सब सहने पड़ते हैं. विभाग ने जमीन के लिए जोधपुर विकास प्राधिकरण को कई पत्र लिखे लेकिन कोई फायदा नहीं. विकास के नाम पर सिर्फ एक पानी का टैंक खड़ा है जो सूखा पड़ा रहता है.

पड़ोसी के घर टॉयलेट की मजबूरी

स्कूल में कोई स्थायी शिक्षक नहीं है. दूसरे सरकारी स्कूलों से शिक्षक आते जाते रहते हैं. एक महिला शिक्षिका ने बताया कि पढ़ाना तो दूर यहां खुद की बुनियादी जरूरतें पूरी करना मुश्किल है. न बच्चों के लिए टॉयलेट न शिक्षिकाओं के लिए. पड़ोसियों के घर जाना पड़ता है जो शर्मिंदगी का सबब बन जाता है.

संस्कृत महाविद्यालय से आने वाले प्रिंसिपल भी यही कहते हैं कि निरीक्षण के दौरान हाल देखकर दुख होता है. विभाग ने निर्माण के लिए कई बार आवेदन किए लेकिन सुनवाई शून्य. अगर पक्का भवन बन जाए तो पढ़ाई का स्तर ऊंचा हो सकता है.

लड़कियां छोड़ रही स्कूल

सुविधाओं की कमी ने नामांकन को आधा कर दिया है. 2022-23 में 70 बच्चे थे अब मुश्किल से 35. खासकर लड़कियां प्रभावित हो रही हैं. ग्रामीण माता पिता कहते हैं कि बिना टॉयलेट के बेटी को कैसे भेजें? बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा तो जोरों पर है लेकिन जमीन पर हालात उलट हैं. गरीब परिवारों के बच्चे यहां आते हैं जिनके पास निजी स्कूल का विकल्प नहीं. अगर सुधार न हुआ तो पूरा गांव पिछड़ जाएगा.

मंत्री के क्षेत्र में बदलाव की उम्मीद

गांव के समझदार लोग निराश हैं. जब स्कूल आया था तो सबने सोचा गांव फलेगा फूलेगा. अधिकतर घर गरीबी से जूझ रहे हैं. एक बुजुर्ग ने कहा कि यह विडंबना है. मंत्री का इलाका होने पर भी जिम्मेदार सोते रहते हैं. अगर स्कूल मजबूत बने तो बच्चों का भविष्य संवर सकता है. नामांकन बढ़ेगा और शिक्षा का स्तर सुधरेगा.

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