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दुनिया का पहला मंदिर जहां माता की कोई मूर्ति नहीं, यहां मां दुर्गा के होंठों की होती है पूजा

15th Shaktipeeth: यहां के पुजारियों और जानकारों से मिली जानकारी के अनुसार यह मंदिर 5000 साल पुराना है यह मंदिर पूरी तरह से गुप्त है और यहां माता की कोई तस्वीर नहीं है. यह दुनिया का पहला ऐसा शक्तिपीठ है, जिसकी कोई प्रतिमा नहीं है.

दुनिया का पहला मंदिर जहां माता की कोई मूर्ति नहीं, यहां मां दुर्गा के होंठों की होती है पूजा
अधर देवी मंदिर

Mount Abu Adhar Devi Temple: शक्तिपीठों की श्रृंखला में राजस्थान के माउंट आबू में स्थित अधर देवी मंदिर एक अनोखा और पौराणिक महत्व का स्थल है. यह दुनिया का एकमात्र मंदिर है, जहां मां दुर्गा के होंठों की पूजा होती है. नवरात्रि के अवसर पर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. इस मंदिर का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व बहुत गहरा है. मंदिर के रास्ते में स्थित अग्नि कुंड में 12 महीने अखंड ज्योति जलती रहती है. मान्यता है कि नवरात्र के दौरान इस मंदिर में माता के दर्शन मात्र से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.

अधर देवी मंदिर का पौराणिक महत्व  

यह मंदिर माता सती के 51 शक्तिपीठों में से 15वां शक्तिपीठ माना जाता है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जब माता सती ने अपने पिता दक्ष के अपमान से आहत होकर यज्ञ अग्नि में आत्माहुति दी थी, तब भगवान शिव उनके पार्थिव शरीर को लेकर क्रोधित होकर तांडव करने लगे थे. इस दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के अंगों को 51 स्थानों पर गिरा दिया, जिससे ये स्थान शक्तिपीठ कहलाए.  

यहां गिरा था माता का होंठ

मान्यता है कि माउंट आबू के इस स्थान पर माता सती के होंठ गिरे थे, जिसके कारण इस मंदिर को "अधर देवी" कहा जाता है. स्कंद पुराण के अनुसार, यहां माता के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की गुप्त रूप से पूजा होती है.  

मंदिर की विशेषताएं  

अधर देवी मंदिर तक पहुंचने के लिए 365 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. मंदिर एक गुफा के अंदर स्थित है, जहां देवी के गुप्त रूप में दर्शन किए जाते हैं. मंदिर में तस्वीरें लेना सख्त मना है. यहां स्थित चरण पादुका मंदिर में माता के पावन चरणों की पूजा होती है. यह मंदिर गुजरात सीमा से सटे अंबाजी मंदिर से जुड़ा है, जहां मां के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा होती है.  

नवरात्रि में विशेष आयोजन

नवरात्रि के छठे दिन यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. मंदिर में अखंड पाठ और महायज्ञ का आयोजन किया जाता है, जिसकी पूर्णाहुति नवमी के दिन होती है. यहां मां कात्यायनी की कृपा से श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी होने की मान्यता है.  

मंदिर की धार्मिक मान्यता 

पौराणिक कथा के अनुसार, माता कात्यायनी ऋषि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी पुत्री के रूप में प्रकट हुई थीं. देवी ने महिषासुर का वध कर ऋषियों को दानवों के आतंक से मुक्त किया था. स्कंद पुराण में माता कात्यायनी की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है.  
  
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