
Mohanlal Sukhadia Birth Anniversary: मोहनलाल सुखाड़िया के नाम लगातार रिकॉर्ड 17 साल (1954-71) तक राजस्थान का मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड रहा. आधुनिक राजस्थान के निर्माता कहे जाने वाले पूर्व सीएम सुखाड़िया की 31 जुलाई को जयंती है. राजस्थान के 'बाबूजी' सुखाड़िया के बूते कांग्रेस का किला मेवाड़ में काफी मजबूत रहा. साल 1954 में पहली बार सीएम पद की शपथ लेने वाले सुखाड़िया को 70 के दशक में इंदिरा गांधी का विरोध करना भारी पड़ा. सुखाड़िया जितने सहज और जनता के प्रति उदार थे, उतने ही अपने फैसलों पर अडिग भी. बात चाहे निजी जीवन की हो या राजनीतिक जीवन की, वक्त-वक्त पर उनके बागी तेवर देखने को मिले. आज बात उनके इसी किस्से की...
जनसंपर्क के लिए पैदल नापते थे सड़कें
झालावाड़ में 31 जुलाई 1916 को जन्मे कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे मोहनलाल सुखाड़िया के सिर महज 38 साल की उम्र में राज्य के मुख्यमंत्री का सेहरा सजा. जब वे सूबे की सत्ता पर काबिज हुए तो अगले 17 साल तक कोई हटा नहीं पाया. ना तो विपक्ष और ना ही आलाकमान. उनके बारे में कहा जाता है वह पैदल ही घूमा करते थे और सड़कें नापते थे. खेतों में जाकर किसानों से मिला करते थे.

(भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ मोहनलाल सुखाड़िया)
सुखाड़िया की शादी के विरोध में बंद हुए थे बाजार
उनकी सियासत में भी घमासान रहा और शादी के चलते भी विरोध झेलना पड़ा. उन्होंने इंदुबाला से शादी की थी, जो आर्यसमाजी परिवार से ताल्लुक रखती थीं. उनकी इस शादी का काफी विरोध हुआ, लेकिन वह भी बगावत में पीछे नहीं रहे. उनकी मां वैष्णव मत को मानती थीं और उन्होंने इस रिश्ते को मानने से इनकार कर दिया.
सुखाड़िया अपने निर्णय पर टिके रहे और विरोध की परवाह किए बिना उन्होंने ब्यावर में एक आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली. उनकी शादी की सूचना मिलते ही इलाके में हंगामा खड़ा हो गया. सुखाड़िया की शादी के विरोध में नाथद्वारा में बाजार बंद हो गए थे.

कुछ ऐसी ही कहानी, उनकी सियासत की भी है. जब इंदिरा गांधी के विरोध में राष्ट्रीय कांग्रेस में एक खेमा तैयार हुआ तो सुखाड़िया भी उसी सिंडिकेट धड़ा का हिस्सा थे. ना सिर्फ उनकी भागीदारी रही, बल्कि राजस्थान में सिंडिकेट वाले थड़े की मुखर आवाज भी थे.
फिर इंदिरा मजबूत हुई और देना पड़ा इस्तीफा
हालांकि इंदिरा के विरोध का झंडा बुलंद करना उन्हें बाद में भारी पड़ा. भारत-पाक युद्ध के बाद जब इंदिरा गांधी की कांग्रेस में पकड़ मजबूत होने लगी तो सुखाड़िया को 1971 में हाईकमान के निर्देश पर इस्तीफा देना पड़ा था.
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