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चित्तौड़गढ़ महारैली में गरजे सांसद राजकुमार रोत, फ‍िर से भील प्रदेश की उठाई मांग

महारैली में आदिवासी संस्कृति की झलक देखने को मिली, जिसमें पारंपरिक वेशभूषा और नृत्य ने सभी का ध्यान आकर्षित किया.

चित्तौड़गढ़ महारैली में गरजे सांसद राजकुमार रोत, फ‍िर से भील प्रदेश की उठाई मांग
बीएपी सांसद राजकुमार रोत ने भील प्रदेश की मांग उठाई.

विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष्य में रविवार को चित्तौड़गढ़ में इंदिरा गांधी स्टेडियम से एक भव्य महारैली निकाली गई और ईनानी सिटी सेंटर में जनसभा का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में बांसवाड़ा-डूंगरपुर सांसद राजकुमार रोत, धरियावद विधायक थावरचंद डामोर, गोपाल भील आकोड़िया सहित बड़ी संख्या में जनप्रतिनिधि और भील समाज के लोग शामिल हुए. सांसद राजकुमार रोत ने जनसभा को संबोधित करते हुए केंद्र और राजस्थान सरकार पर जमकर निशाना साधा.

"पूरा विपक्ष सरकार के साथ था"  

उन्होंने केंद्र सरकार पर ऑपरेशन सिंदूर और पाकिस्तान मामले में अमेरिका के दबाव में आने का गंभीर आरोप लगाया. रोत ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के समय पूरा विपक्ष सरकार के साथ खड़ा नजर आया. लेकिन, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सीजफायर करा दिया. इस मुद्दे पर सदन में देश के तीन बड़े नेताओं का बयान आया, लेकिन तीनों के बयान अलग-अलग थे. अमेरिका की वजह से हमें झुकना पड़ा, जो शर्म की बात है. विमानों के नष्ट होने पर सरकार को ठीक तरीके से जवाब देना चाहिए.

"आदिवासी दिवस की शुभकामनाएं तक नहीं दी"

उन्होंने भील प्रदेश की पुरानी मांग को फिर से उठाया और कहा कि यदि यह मांग पूरी हो जाती तो आदिवासी समाज की सामाजिक-आर्थिक स्थिति आज कहीं बेहतर होती. राजकुमार रोत ने कहा कि देश में करीब 14-15 करोड़ आदिवासी आबादी है, जो प्रकृति संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देती है. इसके बावजूद, प्रधानमंत्री और राजस्थान के मुख्यमंत्री ने विश्व आदिवासी दिवस पर शुभकामनाएं तक नहीं दीं.

"चित्तौड़गढ़ वीरता और बलिदान के लिए जाना जाता है"

उन्होंने राजस्थान सरकार पर भी आरोप लगाया कि बजट जारी होने के बावजूद विश्व आदिवासी दिवस के लिए कोई आधिकारिक आयोजन नहीं किया गया. यह आदिवासी समाज के प्रति सरकार की उदासीनता को दर्शाता है. उन्होंने चित्तौड़गढ़ के गौरवशाली इतिहास का जिक्र करते हुए कहा कि यह क्षेत्र वीरता और बलिदान के लिए जाना जाता है, लेकिन यहां का भील समाज आज भी विकास के मामले में पिछड़ा हुआ है. शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में आदिवासियों के लिए विशेष योजनाओं की जरूरत है, लेकिन सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठा रही.

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