विज्ञापन

Navratri: आमेर किले से जुड़ा है इस अद्भुत मंदिर का इतिहास, राजा मानसिंह ने स्थापित की थी प्रतिमा

Jaipur: शिला माता शक्तिपीठ की स्थापना राजा मानसिंह प्रथम द्वारा कराई गई थी. कहा जाता है कि जयपुर राजवंश के शासकों ने माता को ही शासक मानकर राज किया.

Navratri: आमेर किले से जुड़ा है इस अद्भुत मंदिर का इतिहास, राजा मानसिंह ने स्थापित की थी प्रतिमा

Shila devi temple Jaipur: आमेर (जयपुर) की शिला देवी मंदिर जयपुर की बसावट से पहले स्थापित हुआ. विशाल पहाड़ी पर बना मंदिर आमेर महल के जलेब चौक के दक्षिणी भाग में स्थित है, जो वास्तुकला और स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है. यह मंदिर इतना भव्य और ऐतिहासिक है कि यहां कई अंतरराष्ट्रीय हस्ती, अभिनेता-अभिनेत्री और बड़े उद्योगपति अक्सर शिला माता के दर्शन करने और घूमने आते हैं. इसमें स्थापित शिला माता को काली मां का ही एक रूप माना जाता है. कहा जाता है कि जयपुर राजवंश के शासकों ने माता को ही शासक मानकर राज किया. मां के आशीर्वाद से आमेर के राजा मानसिंह ने 80 से अधिक युद्ध जीते थे और शिला माता शक्तिपीठ की स्थापना राजा मानसिंह प्रथम द्वारा कराई गई थी. शिलादेवी जयपुर के कछवाहा राजपूत राजाओं की कुलदेवी हैं. शिला देवी की मूर्ति के पास में भगवान गणेश और मीणाओं की कुलदेवी हिंगला की मूर्तियां भी स्थापित हैं.

माता के मुंह और हाथ के ही होते हैं दर्शन

मंदिर के पुजारी बनवारी लाल शर्मा ने बताया कि इस मूर्ति को हमेशा वस्त्रों और लाल गुलाब से ढका रखा जाता है. इसमें केवल माता का केवल मुंह और हाथ ही दिखाई देते हैं. इस मूर्ति में देवी मां एक पैर से महिषासुर को दबा रही हैं और दाहिने हाथ में त्रिशूल से प्रहार करती हुई दिख रही हैं.देवी की गर्दन दाहिनी ओर मुड़ी हुई है. शिलादेवी की दाहिनी भुजाओं में खड्ग, चक्र, त्रिशूल, तीर और बाईं भुजाओं में ढाल, अभयमुद्रा, मुण्ड और धनुष उत्कीर्ण हैं.

Latest and Breaking News on NDTV

शिला रुप में मिली तो कहलाई शिला देवी

वरिष्ठ पर्यटक गाइड महेश कुमार शर्मा ने बताया कि शिला माता की प्रतिमा एक शिला के रुप में मिली थी. 16वीं शताब्दी में इस शिला को आमेर के शासक राजा मानसिंह प्रथम बंगाल के जसोर राज्य पर जीत के बाद वहां से इसे लेकर आमेर लेकर आए थे. यहां के प्रमुख शिल्प कलाकारों से महिषासुर मर्दन करती माता के रुप में उत्कीर्ण करवाया. हालांकि इतिहास में शिला देवी प्रतिमा को लाने के संबंध में कई अन्य मत भी हैं.

मंदिर से जुड़े हैं 3 अलग-अलग मत

एक मत यह है कि लड़ाई में हारने पर जसोर राज्य के राजा केदार ने अपनी पुत्री का विवाह राजा मानसिंह से किया था और दहेज में माता की प्रतिमा दी थी. दूसरा मत यह है कि मानसिंह ने बंगाल के अधिकांश प्रांतों पर विजय हासिल कर ली थी, लेकिन राजा केदार को हरा नहीं पाए. तब कहा गया कि राजा केदार के महल में काली माता का मंदिर है और माता के आशीर्वाद से कोई भी शत्रु राजा को युद्ध में हरा नहीं सकता. यह जानने के बाद राजा मानसिंह ने काली माता को प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजा की. मान्यता है कि इसके बाद माता ने प्रसन्न होकर स्वप्न में राजा को दर्शन दिए और कहा कि मुझे अपने साथ लेकर चलो. अपनी राजधानी में मेरा भव्य मंदिर बनाने की बात कही. राजा ने वचन देकर राजा केदार के राज्य पर हमला कर उसे पराजित किया.

मान्यता- समुद्र से निकालकर लाई गई थी प्रतिमा

तीसरा मत यह है कि राजा मानसिंह माता काली के उपासक थे. उनकी विशेष पूजा करते थे. युद्ध मे हार होने के बाद राजा ने माता की लगातार उपासना की. मानसिंह को स्वप्न में आकर माता ने बताया कि मुझे समुद्र से निकाल कर अपने राज्य लेकर चलो और मेरा भव्य मंदिर बनाओ. इसके बाद राजा मानसिंह ने माता की प्रतिमा को शिला के रूप में समुद्र में से निकाल लिया और शिला के रूप में मिलने से देवी शिला माता के नाम से विख्यात हुई.

रिपोर्ट- रोहन शर्मा

यह भी पढ़ेंः 'भक्तों के रोग भी हर लेती हैं उदयपुर की बेदला माता', मान्यता- निसंतान दंपति की भी इच्छा होती है पूरी

Rajasthan.NDTV.in पर राजस्थान की ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें. देश और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं. इसके अलावा, मनोरंजन की दुनिया हो, या क्रिकेट का खुमार, लाइफ़स्टाइल टिप्स हों, या अनोखी-अनूठी ऑफ़बीट ख़बरें, सब मिलेगा यहां-ढेरों फोटो स्टोरी और वीडियो के साथ.

फॉलो करे:
Close