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NDTV Ground Report: राजस्थान के वो गांव जहां फोन है पर सिग्नल नहीं, राशन बांटने के लिए भी पहाड़ पर चढ़ता है डीलर

यहां रहने वाले लोगों के पास फोन तो हैं, मगर नेटवर्क का पता नहीं है. जब भी किसी शख्स को फोन पर किसी से बात करनी होती है तो वो ऊंचे पहाड़ों पर चढ़कर फोन को इधर-उधर घूमकर नेटवर्क की तलाश करता है.

NDTV Ground Report: राजस्थान के वो गांव जहां फोन है पर सिग्नल नहीं, राशन बांटने के लिए भी पहाड़ पर चढ़ता है डीलर
पहाड़ पर चढ़कर नेटवर्क की तलाश करते ग्रामीण.

Rajasthan News: आज के समय में अगर थोड़ी देर के लिए भी फोन से नेटवर्क चला जाए तो जिंदगी फीकी सी लगने लगती है. इंटरटेनमेंट से लेकर बिजनेस तक हर चीज पर इसका असर होता है. फिर न लोग सोशल मीडिया पर रील्स देख पाते हैं, न किसी को फोन कर पाते हैं और न ही ऑनलाइन पेमेंट कर पाते हैं. लेकिन आपको यह जानकार हैरानी होगी कि राजस्थान और गुजरात की सरहद पर बसे डूंगरपुर जिले में ऐसे में भी गांव हैं, जहां 5G तो दूर की बात, मोबाइल में नेटवर्क तक नहीं आता.

चारवाडा और बलवानिया गांव की कहानी

ये कहानी चार वाडा और बलवानिया गांव की है, जहां 7 किलोमीटर के दायरे में रहने वाली बीहड़ आबादी आज भी बिना नेटवर्क के अपना जीवन व्यतीत कर रही है. इन गांवों की बात करें तो यह डूंगरपुर जिले का हिस्सा है. करीब 5 हजार की आबादी वाले इस गांव में आकर डिजिटल इंडिया के सभी दावे फेल हो जाते हैं. यहां रहने वाले लोगों के पास फोन तो हैं, मगर नेटवर्क का पता नहीं है. जब भी किसी शख्स को फोन पर किसी से बात करनी होती है तो वो ऊंचे पहाड़ों पर चढ़कर फोन को इधर-उधर घूमकर नेटवर्क की तलाश करता है. बड़ी मुश्किल से नेटवर्क मिल भी गया तो बात करते हुए कब ओझल हो जाए इसकी कोई गारंटी नहीं है. 

Dungarpur

राशन बांटने के लिए पहाड़ का लेते हैं सहारा

मोबाइल नेटवर्क की तलाश में राशन डीलर को भी ऊंचे पहाड़ पर चढ़ना पड़ता है. तब जाकर पोज मशीन में बायोमेट्रिक की प्रक्रिया हो पाती है. ऐसे में राशन के लिए कतारें डीलर केंद्र पर नहीं होकर, पहाड़ पर लगती हैं. ग्रामीणों का दर्द यही खत्म नहीं होता. किसी के बीमार होने या कोई दुर्घटना होने की स्थिति में पुलिस और एम्बुलेंस को सूचना देने के लिए भी ऊंचे पहाड़ों पर चढ़ना और उसी प्रक्रिया से गुजरना यहां के लोगों की नियति बन चुका है. ऐसे में साफ है कि स्वास्थ्य महकमे की 104 और 108 एम्बुलेंस सुविधा हो या पुलिस की 100 अथवा 112 डायल का बंदोबस्त तमाम सेवाएं यहां के लोगों के लिए दूर की कौड़ी साबित होती है. 

दोनों गांवों में एक भी ई-मित्र केंद्र नहीं है

कोरोना काल में जब देशभर में बच्चों की पढ़ाई मोबाइल से करवाई जा रही थी, तब भी इस इलाके में मोबाइल नेटवर्क नहीं होना बच्चों के भविष्य पर सवाल खड़े कर रहा था. आज भी बिजली घुल हो जाए तो ऑनलाइन शिकायत करना बड़ा चुनौती है. ऐसे में बिजली सप्लाई बहाल होना कितना मुश्किल होगा, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता. गांव में मोबाइल नेटवर्क नहीं होने से एक भी ई-मित्र केंद्र संचालित नहीं होता. ऐसे में यह भी साफ है कि ई-मित्र आधारित सैकड़ों सेवाएं हासिल करने के लिए लोगों को 15 किलोमीटर दूर गेजी या करावाड़ा गांव तक जाना पड़ता है, जो कठिन डगर है. 

ऐसा नहीं है कि ग्रामीणों ने इसकी आवाज नहीं उठाई. आवाज उठाई, बार-बार उठाई. हर बार इनकी मांग चुनावी मुद्दा भी बुनी. लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद कोई भी जनप्रतिनिधि तब तक लौटकर नहीं आता जब तक उसे अगली बार वोट न मांगने हों. इस गांव के लोग वोट देकर हमेशा खुद को ठगा सा महसूस करते हैं. अब देखना होगा कि इस 7 किलोमीटर के एरिया में रहने वाली आबादी की आवाज डिजिटल इंडिया के शोर में शामिल होती है या उसमें दबकर रह जाती है.

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