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Opium Farming: सीसीटीवी कैमरे से निगरानी, सुरक्षा के लिए तारबंदी... कैसे की जाती है अफीम की खेती

अफीम की खेती करना इतना आसान नहीं है, इसके लिए लाइसेंस की जरूरत होती है. अगर कोई प्राकतिक आपदा आ जाए तो विभाग की अनुमति के बाद ही फसल को नष्ट किया जा सकता है.

Opium Farming: सीसीटीवी कैमरे से निगरानी, सुरक्षा के लिए तारबंदी... कैसे की जाती है अफीम की खेती
कैसे की जाती अफीम की खेती

Opium Farming In Chittorgarh: काला सोना के नाम से मशहूर अफीम की खेती पर सफेद फूलों के आने के साथ ही अफीम डोडे आने शुरू हो गए हैं. चित्तौड़गढ़ जिले में इस बार करीब 21 हजार अफीम किसानों को अफीम खेती के लाइसेंस दिए गए हैं. इनमें करीब 30 फीसदी अफीम लाइसेंस सीपीएस पद्धति और 70 फीसदी गम पद्धति के तहत पट्टे जारी किए गए हैं. अफीम लाइसेंस मिलने के बाद अफीम किसान अफीम की खेती की बुआई से लेकर अफीम की लुवाई, चिराई, तुलाई और विभाग को अफीम डोडे जमा होने तक खेतों पर कड़ी निगरानी रखनी पड़ती है.

विभाग के निर्देश बिना नहीं तोड़ सकते डोडे

अब अफीम किसान भी अफीम की खेती की निगरानी रखने के लिए तीसरी आंख यानी सीसीटीवी कैमरे लगाकर भी घरों से भी निगरानी रख रहे हैं. अफीम खेती की सुरक्षा के लिए तारबन्दी की गई हैं. वहीं, अफीम डोडे को पक्षियों से बचाने के लिए फसल के ऊपर जाल लगा रहे हैं.

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अफीम की खेती की सुरक्षा के साथ-साथ नारकोटिक्स विभाग के कड़े निर्देशों के चलते किसान इस अफीम की फसल पर आने वाले डोडे तोड़ नहीं सकता है और ना ही पौधे उखाड़ सकता है. यदि कोई प्राकतिक आपदा आ जाए तो विभाग की अनुमति के बाद ही फसल को नष्ट किया जा सकता है.

कड़ी निगरानी में होती अफीम की खेती

अफीम किसान की एक गलती से उसका अफीम पट्टा तक काट दिया जाता है, ऐसे में अफीम की फसल बुआई के साथ ही किसानों को फसल पूर्ण होने तक कड़ी निगरानी रखनी पड़ती है. इन दिनों नारकोटिक्स विभाग द्वारा अफीम की खेती की नपती यानी मेजरमेंट किया जा रहा है. एक खण्ड में 8 से 10 टीमें लगा कर प्रत्यके किसान के खेत पर जाकर बुवाई की गई अफीम का मेजरमेंट किया जा रहा है.

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यही नहीं इन टीमों के मेजरमेंट के बाद नारकोटिक्स विभाग ग्वालियर बुआई की गई अफीम पट्टों में से 25 फीसदी अफीम खेती की दुबारा जांच के लिए कल्टीवेटर कोड़ जारी किए जाते हैं और इसको दूसरी टीम द्वारा जांच पैमाइश की जाती है.  यानी नारकोटिक्स द्वारा इस मामले में पूर्ण पारदर्शिता अपनाई जाती है.

यदि खेत पर लाइसेंस के अलावा अतिरिक्त खेती मिलती है तो उसका अफीम लाइसेंस निरस्त कर दिया जाता है. काला सोना पर सफेद फूलों की चादर आने के साथ ही अब अफीम डोडे भी आने शुरू हो गए है. अगले 15-20 दिन में गम पद्धति में डोडे पर चीरा लगाकर अफीम दूध की लुवाई की शुरुआत होगी. जो 10 से 15 दिन तक चलेगी और इसके बाद नारकोटिक्स विभाग में तुलवाई करवानी पड़ेगी.

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फसल खराब होने पर देना होगा आवेदन

वही सीपीएस पद्धति में मिले लाइसेंस के तहत की जा रही अफीम के डोडे पर किसान चीरा नहीं लगा सकेगा. सूखे डोडे को डोडे से 8 इंच तक तोड़ कर विभाग को सीधे जमा करवाना होगा. फसल खराब होने पर विभाग को आवेदन पत्र देना होगा और जांच के बाद ही किसान फसल की हंकवाई कर सकेगा. 

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