Padma Shree Award: 76 वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर पद्म पुरस्कारों के लिए नामों का ऐलान हो गया. जिसमें इस बार राजस्थान की मांड गायन शैली को दुनिया भर में पहचान दिलाने वाली बेगम बतूल को पद्मश्री से नवाजा जाएगा. उन्होंने छोटे से गांव से निकल कर दुनिया भर की यात्रा कर मांड गायन शैली को एक नई पहचान दी है. उन्होंने अपनी इस यात्रा और सम्मान के अनुभव को बताने के लिए हमने उनसे खास बातचीत की.
'मैं खुद को इस लायक नहीं मानती'
एनडीटीवी से खास बातचीत में बेगम बतूल ने बताया कि मैं बहुत खुश हूं इस पुरस्कार के लिए भारत सरकार और प्रधानमंत्री जी को धन्यवाद. मैं खुद को इस लायक नहीं मानती, लेकिन यह सम्मान मिला है तो बहुत अच्छा लग रहा है. बचपन से ही भजन और मांड का शौक रहा था.
लगभग 7- 8 साल की उम्र से गाना-बजाना शुरू कर दिया था. शुरुआत में हमारे पास साज बाज नहीं था. हम टेबल बजा लेते थे और उसी से सीखते थे. मैं बचपन में सहेलियों के साथ मंदिर में गाती थी, वहीं से भजन गाने का शौक हुआ था.
पति ने दिया संगीत में साथ
बेगम बतूल ने आगे बताया कि मैंने अपने पति से कहा, "मुझे गाना है, आपको कोई आपत्ति नहीं न". इसके बाद परिवार ने मेरा सहयोग किया. इसलिए लोगों की परवाह नहीं की "लोग कहते थे क्यों बजाते हो?. मैंने कहा, मेरा शौक है, मैं बजाऊंगी" "लोग कहते रहते हैं, लेकिन मैं उसकी परवाह नहीं करती". उन्होंने बताया कि मैंने राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में प्रस्तुति दी.
कई देशों में गा चुकी हैं मांड और भजन
कई देशों में मांड और भजन गाए. जिसमें "प्रधानमंत्री जी से मिलना, दरबार हॉल में जाना खास अनुभव था". "मांड और पुरानी परंपराएं समाप्त हो रही हैं. कोई सीखने, सिखाने वाला नहीं है, लेकिन इसका जीवित रहना जरूरी है". सरकार से मैंने मांड गायकों को सहयोग करने की मांग की हैं.
उन्होंने आगे बताया कि अब उनका परिवार उनके संगीत की विरासत को आगे बढ़ाने की तैयारी कर रहा है. पोते-पोती संगीत सीख रहे हैं. सम्मान के लिए नाम के ऐलान के बाद घर में उत्सव का माहौल है. बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है.
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