राजस्थान में पिछले लगभग तीन दशक से हर विधानसभा चुनाव में 'सरकार' बदलने की 'परिपाटी' है और यहां एक बार फिर सत्तारूढ़ कांग्रेस व विपक्षी भाजपा के बीच सीधा मुकाबला रहने की संभावना है. हालांकि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पिछले महीने कहा था कि राजस्थान में विधानसभा चुनाव में मुकाबला 'बहुत करीबी' रहेगा.
गौरतलब है निर्वाचन आयोग ने सोमवार को नई दिल्ली में 2023 के विधानसभा चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा कर दी. इसके अनुसार राज्य की सभी 200 विधानसभा सीटों के लिए 23 नवंबर को मतदान होगा जबकि वोटों की गिनती तीन दिसंबर को मतगणना होगी. चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद प्रदेश में राजनीतिक हलचल बढ़ गई है. माना जा रहा है कि जल्द दोनों प्रमुख दल अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर सकती है.
यह समीकरण उस समय बन रहा है जबकि भारतीय जनता पार्टी के नेता राज्य में 'डबल इंजिन की सरकार' बनाने की अपील कर रहे हैं ताकि केंद्र व राज्य में एक ही पार्टी की सरकार हो और विकास को गति दी जा सके.वहीं कांग्रेस नेताओं का दावा है कि इस बार राज्य का 'रिवाज' टूटेगा. यानी एक बार फिर कांग्रेस की सरकार आएगी.
गहलोत की कुछ चर्चित कल्याणकारी योजनाओं में ‘चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना' के तहत 25 लाख रुपए का बीमा, ‘शहरी रोजगार गारंटी योजना', सामाजिक सुरक्षा के रूप में 1,000 रुपए की पेंशन और उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों के लिए केवल 500 रुपये में रसोई गैस सिलेंडर शामिल हैं. उन्होंने पात्र लाभार्थियों को इन कल्याणकारी योजनाओं के लिए 'महंगाई राहत शिविरों' में पंजीकरण करने के लिए प्रोत्साहित किया और योजनाओं को पूरा करने के 'गारंटी कार्ड' दिए.
अपनी कल्याणकारी योजनाओं को पेश करने के अलावा कांग्रेस पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) को एक प्रमुख मुद्दा बनाने के लिए तैयार है. पार्टी केंद्र पर ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देने का अपना 'वादा' नहीं निभाने का आरोप लगा रही है. गहलोत आरोप लगाते रहे हैं कि केंद्रीय जल शक्ति मंत्री और जोधपुर से सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत ने इसके लिए 'पर्याप्त कोशिश' नहीं कीय
यहां यह भी बताना लाजिमी है कि राजस्थान में कांग्रेस में अंदरूनी खींचतान लगातार चलती रही है. मुख्यमंत्री गहलोत व उनके पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच राज्य में नेतृत्व को लेकर तनातनी कम होती नजर नहीं आ रही है. पायलट ने 2020 में पार्टी के दिग्गज गहलोत के खिलाफ खुला विद्रोह कर दिया था और इसी साल, पायलट ने भ्रष्टाचार पर कार्रवाई करने में सरकार की 'विफलता' को लेकर अप्रत्यक्ष रूप से गहलोत सरकार पर निशाना साधा.
पायलट ने भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक होने को लेकर भी कांग्रेस सरकार को नहीं बख्शा. यह ऐसा मुद्दा था जिसे मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी भी भुनाने का प्रयास कर रही है. हालांकि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने दोनों नेताओं में एक तरह का संघर्ष विराम तो करवा दिया है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह 'शांति' पार्टी द्वारा आगामी विधानसभा चुनाव के प्रत्याशी चुनने के समय भी जारी रहेगी.
भाजपा के अब तक के प्रचार अभियान में अगर कोई एक चेहरा रहा है तो वह वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं. वह पहले ही राज्य में कई रैलियों को संबोधित कर चुके हैं, जिनमें से एक तो हाल ही में गहलोत के निर्वाचन क्षेत्र सरदारपुरा जोधपुर में हुई. मोदी ने इस जनसभा में पिछले साल जोधपुर में हुई सांप्रदायिक हिंसा का जिक्र करते हुए कांग्रेस सरकार पर 'तुष्टिकरण' का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस को राजस्थान के हित से ज्यादा अपना वोट बैंक प्यारा है.
राज्य में भाजपा की चुनाव रणनीति में 'तुष्टिकरण' और हिंदुत्व अपील प्रमुख कारक हो सकता है. भाजपा कानून-व्यवस्था, खासकर महिलाओं के खिलाफ अपराधों को लेकर भी राज्य सरकार पर निशाना साधती रही है. और फिर कथित 'लाल डायरी' का मामला है, जिसके बारे में दावा किया जाता है कि इसमें वित्तीय अनियमितताओं का विवरण था. गहलोत मंत्रिमंडल के बर्खास्त सदस्य राजेंद्र गुढ़ा का दावा है कि यह उनके पास है.
विश्लेषकों की मानें तो राजस्थान विधानभा चुनाव में केवल दो ही पार्टियों की 'दौड़' है. 2018 के विधानसभा चुनावों में 199 सीटों में से कांग्रेस को 99 व भाजपा को 73 सीटें मिलीं थीं. अलवर जिले की रामगढ़ विधानसभा सीट पर बसपा प्रत्याशी के निधन के बाद चुनाव स्थगित कर दिया गया जो 28 जनवरी को हुआ. इसमें भी कांग्रेस ने बाजी मारी. हालांकि 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को प्रदेश की 25 लोकसभा सीटों में से 24 सीटें मिलीं और बाकी एक सीट उसकी सहयोगी पार्टी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी आरएलपी ने जीती थी.
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