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This Article is From Sep 22, 2023

Rajasthan Election 2023: वो विधानसभा सीट जिसे 30 साल बाद भी नहीं जीत पाई कांग्रेस, इस बार बदलेंगे चुनावी समीकरण?

राजस्थान में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक पार्टियां अपने तमाम सीटों पर गुणा-गणित कर रही हैं और दूसरी पार्टी के प्रत्याशियों का मूल्यांकन कर अपने प्रत्याशी को तय कर रही हैं.जानिये इस रिपोर्ट में मालपुरा विधानसभा सीट के इतिहास के बारे में..

Rajasthan Election 2023: वो विधानसभा सीट जिसे 30 साल बाद भी नहीं जीत पाई कांग्रेस, इस बार बदलेंगे चुनावी समीकरण?
प्रतीकात्मक तस्वीर.

Rajasthan Election 2023: राजस्थान में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक पार्टियां अपने तमाम सीटों पर गुणा-गणित कर रही हैं और दूसरी पार्टी के प्रत्याशियों का मूल्यांकन कर अपने प्रत्याशी को तय कर रही हैं. इस रिपोर्ट में हम बात करेंगे मालपुरा की एक ऐसे विधानसभा सीट की जहां से राजस्थान को दामोदर व्यास के रूप में पहला गृह मंत्री तो मिला, लेकिन पिछले 30 सालों से 1993 के बाद कांग्रेस हाथ अभी भी खाली हैं और 10 सालों से इस सीट पर भाजपा के कन्हैया लाल चौधरी का कब्जा है.

सांप्रदायिक घटनाओं को लेकर बदनाम

2018 के चुनाव में कांग्रेस ने समझौते के तहत यह सीट लोकदल को दी थी और रणवीर पहलवान जो कि 2008 से 2013 तक यंहा से निर्दलीय विधायक रहे थे. 2018 का चुनाव लोकदल के चुनाव चिन्ह पर लड़े, लेकिन भाजपा के कन्हैया लाल के हाथों हार गए. अति संवेदनशील माने जाने वाले मालपुरा का 1992 के बाद साम्प्रदायिक घटनाओं को लेकर बदनाम रहा है. चाहे 1992 के दंगे में दर्जनों लोगों की हत्या हो, चाहे कांवड़ यात्रा पर हमले हो और फिर आईएसआई ओर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे हो, या फिर मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रो में हुई साम्प्रदायिक घटनाएं हो, इस सीट पर एक बार फिर से भाजपा के वर्तमान विधायक कन्हैया लाल चौधरी का दावा मजबूत है. 

कांग्रेस की उपेक्षा से भाजपा को बढ़त

मालपुरा-टोडारायसिंह सीट पर अन्य कोई दल या पार्टियां प्रभावशाली नहीं रही हैं. निर्दलीय प्रत्याशी समीकरण को प्रभावित जरूर कर सकते हैं. वहीं भाजपा को इस सीट पर उम्मीदों की एक बड़ी वजह यह भी है कि मालपुरा में घटी घटनाएं और कांग्रेस सरकार द्वारा इस क्षेत्र की उपेक्षा करना और हाल ही में निकली परिवर्तन यात्रा ने भी भाजपा कायकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार किया है. 

चुनावी मुद्दा बनेंगी सांप्रदायिक घटनाएं

मालपुरा टोडारायसिंह विधानसभा सीट पर बीसलपुर बांध का पानी टोरडी सागर बांध में डाले जाने का मुद्दा 2004 से प्रमुख मुद्दा है जिस पर आज तक अमल नही हुआ है. वहीं मालपुरा में जिला बनाओ आंदोलन भी चल रहा है. यह भी एक चुनावी मुद्दा रहेगा, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण भाजपा के लिए क्षेत्र में घटी साम्प्रदायिक घटनाएं और एक विशेष क्षेत्र से हिंदुओ के पलायन जैसी घटनाएं फायदे का सौदा साबित हो सकती हैं. 

जिला बनाने के लिए आंदोलन

पिछले छह महीनों से मालपुरा को जिला बनाने की मांग पर एक आंदोलन चल रहा है ऐसा इसलिए भी है कि मालपुरा को कहीं दूसरे जिले में शामिल नहीं कर दिया जाए. इसी डर से यह आंदोलन शुरू हुआ था पर अब यह आंदोलन एक जिद बन चुका है. लोगों ने बताया इस महत्वपूर्ण सीट के जातिगत मतदाताओं में जाट और गुर्जर के साथ ही अल्पसंख्यक और एससी मतदाताओं की भी निर्णायक भूमिका रहती आई है, लेकिन पिछले 35 सालों में इस सीट पर जाट और ब्राह्मण प्रत्याशी ही जीते हैं. 

क्या कहते हैं आंकड़े.. 

मालपुरा -टोडारायसिंह विधानसभा सीट में कुल मतदाता
लगभग 2 लाख 63 हजार जातिगत मतदाता
जाट :- लगभग 58 से 60 हजार के बीच
अनुसूचित जाति - बैरवा,रेगर,खटीक,कोली, हरिजन व अन्य जातिय - लगभग 45 हजार से 46 हजार के बीच
गुर्जर - लगभग 36 हजार से 38 हजार के बीच
माली - लगभग 23 हजार से 24 हजार के बीच
ब्राह्मण - लगभग 20 हजार से 21 हजार के बीच
जाट - लगभग 25 हजार से 26 हजार के बीच
वैश्य-महाजन - लगभग 13 हजार
राजपूत - लगभग 13 हजार
मुस्लिम - लगभग 19 से 20 हजार वोट

मालपुरा सीट का इतिहास

मालपुरा विधानसभा क्षेत्र जिसने राजस्थान को दामोदर व्यास के रूप में पहला गृह मंत्री दिया था. यह सीट मालपुरा विधानसभा क्षेत्र 1951 से ही सामान्य सीट रही है और  1951 से लेकर 2018 तक मालपुरा विधानसभा क्षेत्र में 15 बार चुनाव हुए हैं. इस सीट पर सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड भाजपा के कन्हैया लाल चौधरी के नाम 2013 में है. उस समय भाजपा प्रत्याशी कन्हैया लाल चौधरी ने कांग्रेस प्रत्याशी रामबिलास चौधरी को 40221 वोटों से हराया था. कन्हैया लाल चौधरी को 76799 वोट मिले और रामबिलास चौधरी को महज 36578 वोट ही मिले थे.

वहीं इस सीट पर 1985 के विधानसभा चुनाव में सबसे कम अंतर से नतीजा निकला था, जब जनता पार्टी के प्रत्याशी नारायण सिंह ने कांग्रेस के प्रत्याशी सुरेन्द्र व्यास को बहुत मामूली अंतर 853 वोटों से हराया था. नारायण सिंह को 34109 वोट तथा सुरेन्द्र व्यास को 33256 वोट मिले थे. इस सीट पर कांग्रेस के दिग्गज नेता सुरेन्द्र व्यास मालपुरा से सर्वाधिक चार बार चुनाव विधायक रहे. व्यास ने 1972, 1980, 1990 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में वह 1998 में  निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में चुनाव जीता.

कांग्रेस सरकार में गृह मंत्री रह चुके दामोदर लाल व्यास भी तीन बार विधायक रहे. व्यास ने कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर 1951, 1957 व 1967 का चुनाव जीता. कुल मिलाकर 35 साल तक मालपुरा की राजनीति में व्यास परिवार का दबदबा रहा. पूर्व गृह मंत्री दामोदर लाल व्यास 1957 में निर्विरोध निर्वाचित हुए. व्यास ने 1967 में जयपुर के पूर्व राजघराने की राजमाता गायत्री देवी को 9020 वोटों से हराया था, जो उस जमाने की बेहद लोकप्रिय हस्ती थीं.

जनता पार्टी के नारायण सिंह दो बार 1977 व 1985 में  विधायक रहे, भाजपा के जीतराम चौधरी भी दो बार 1993 व 2003 में विधायक बने. वर्तमान भाजपा विधायक कन्हैया लाल चौधरी भी 2013 और 2018 का चुनाव लगातार बडे़ मार्जिन से जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहे हैं. एक-एक बार स्वतन्त्र पार्टी के जय सिंह ने 1962 का चुनाव तथा निर्दलीय रणबीर पहलवान ने भी 2008 का चुनाव जीता.

2023 में कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार और स्थिति 

रामबिलास चौधरी : रामबिलास चौधरी कांग्रेस में अशोक गहलोत गुट के नेता माने जाते हैं और सचिन पायलट से उनकी दूरियों के बावजूद वह वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष ओर अजमेर संभाग के प्रभारी हैं, वह पहले भी इस सीट से चुनाव लड़ चुके हैं. जाट बाहुल्य इस सीट पर उनका दावा मजबूत है, कांग्रेस की तरफ से वह पहले कांग्रेस के जिलाध्यक्ष, प्रधान और जिला प्रमुख रह चुके हैं. 

अवधेश शर्मा : अवधेश शर्मा पहले भाजपा के नेता थे लेकिन वर्तमान में सचिन पायलट के साथ नजर आते हैं. वह भाजपा के टिकट पर टोंक के उपजिला प्रमुख रह चुके हैं. वे ब्राह्मण समाज से आते हैं और वर्तमान में इनकी पत्नी कांग्रेस के टिकट पर जिला परिषद सदस्य हैं. कांग्रेस के यह भी एक मजबूत उम्मीदवार हो सकते हैं. अगर पार्टी इन्हें टिकट देती है और सचिन पायलट गुर्जर मतदाताओं को इनके पक्ष में मोड़ने में कामयाब होते है तो निश्चित ही जीत होगी. 

घासी लाल चौधरी : घासी लाल चौधरी की पहचान एक सामाजिक कार्यकर्ता और उद्योगपति के रूप में है. वर्तमान में यह पीसीसी के सदस्य हैं और सचिन पायलट गुट के साथ नजर आते हैं, लेकिन भाजपा अगर कन्हैया लाल चौधरी को उम्मीदवार बनाती है तो यह एक कमजोर उम्मीदवार साबित होंगे. 

हंसराज चौधरी : हंसराज चौधरी सचिन पायलट टीम के युवा नेताओ में शामिल हैं और सचिन पायलट के साथ पिछले 9 सालों से काम कर रहे हैं. पिछले चुनाव के समय कांग्रेस के पैनल में इनका नाम था, लेकिन 2018 में यह सीट कांग्रेस ने लोकदल को दे दी थी, ऐसे में यह भी सचिन पायलट की तरफ से 2023 में युवा चेहरा हो सकते हैं. 2018 से लेकर 2023 जुलाई तक इनके पिता लक्ष्मण चौधरी गाता कांग्रेस के टोंक जिला अध्यक्ष रहे हैं. 

भंवर मुवाल : मालपुरा जाट बाहुल्य सीट है और भंवर मुवाल एक उद्योगपति के साथ सामाजिक और राजनैतिक कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान रखते हैं. वर्तमान में यह क्रय-विक्रय समिति के चेयरमैन होने के साथ ही पंचायत समिति के सदस्य भी हैं. इनका भी दावा कांग्रेस में मजबूत माना जा रहा है. 

प्रभाती लाल जाट : प्रभाती लाल जाट प्रशासनिक सेवा से सेवानिवृत्ति होने के बाद राजनीतिक पारी खेलने को आतुर हैं और यह भी इस सीट पर कांग्रेस की तरफ से अपना दावा ठोक रहे हैं. यह इस विधानसभा सीट के मालपुरा और टोडारायसिंह उपखण्ड से एसडीएम भी रह चुके हैं. 

मालपुरा-टोडारायसिंह सीट से भाजपा के दावेदार

कन्हैया लाल चौधरी : मालपुरा-टोडारायसिंह सीट पर 2013 से पिछले लगभग 10 साल से भाजपा के विधायक हैं और इस सीट पर भाजपा के सबसे मजबूत दावेदारों में से एक हैं. एक सफल उद्योगपति और राजनीतिक पकड़ वाले नेता माने जाते हैं. मालपुरा का साम्प्रदायिक इतिहास और कन्हैया लाल चौधरी की कट्टर हिन्दू छवि इनके दावे को ओर मजबूत करती हैं. 

सतीश पुनिया : भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहने के दौरान सतीश पुनिया के भी मालपुरा सीट से आगामी चुनाव लड़ने की चर्चा चली थी, लेकिन फिलहाल ऐसी कोई चर्चा नही हैं. अगर पार्टी अपने 2 बार के विधायक कन्हैया लाल चौधरी का टिकट काटती है तो सतीश पुनिया के लिए यह सुरक्षित सीट हो सकती है हालांकि जिसकी संभावना कम ही नजर आती है.

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