
Brahmani Mata Temple Baran: राजस्थान हमेशा से ही अपनी संस्कृति और सांस्कृतिक विरासत के लिए दुनिया में अलग पहचान बनाए हुए है. लेकिन कई बार बड़े ऐतिहासिक स्थलों के उत्सवों में कई जगहें अनदेखी का शिकार हो जाती हैं, जिसके कारण वे विश्व पटल पर अपनी पहचान खोने लगते हैं. ऐसा ही एक मंदिर है प्रदेश के बारा जिले का एकमात्र ब्रह्माणी माता मंदिर, जो रख-रखाव के अभाव में अपनी विरासत खोता जा रहा है. क्योंकि माता के मंदिर की सैकड़ों बीघा जमीन पर दबंगों ने कब्जा जमाया हुआ है.
कई सालों से हो रही है देवी के पीठ की पूजा
ब्रह्माणी माता का यह प्राचीन मंदिर बारां से 28 किलोमीटर दूर सोरसन में स्थित है. यह विश्व का पहला ऐसा मंदिर है जहां देवी की मूर्ति के पिछले हिस्से की पूजा की जाती है.
साथ ही दर्शन देने से पहले देवी की मूर्ति के पिछले हिस्से को कनेर के पत्तों से सजाया जाता है और हर रोज सिंदूर लगाया जाता है. इसके अलावा हर रोज प्रसाद के तौर पर दाल-बाटी चढ़ाई जाती है.
विकास के लिए सालों से कर रहा है संघर्ष
विश्व प्रसिद्ध मंदिर होने के बावजूद आज यह विकास के लिए संघर्ष कर रहा है क्योंकि इसका कोई ट्रस्ट नहीं है जिसके कारण यहां कोई सौंदर्यीकरण नहीं हो पाया है. मंदिर के नाम पर सैकड़ों एकड़ जमीन है लेकिन उस पर दबंग लोगों ने कब्जा कर रखा है. यहां बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मूलभूत सुविधाओं का भी घोर अभाव है. उनके लिए आवास से लेकर बाथरूम तक अन्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं है. ऐसे में इतनी विश्व प्रसिद्ध धरोहर का संरक्षण सही से न होने के कारण इसकी प्रसिद्धि अब कम होती जा रही है.

ब्रह्माणी माता का मंदिर
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करीब 700 वर्ष पुराना है ब्रह्माणी माता का स्वरूप
कहा जाता है कि यहां ब्रह्माणी माता का स्वरूप करीब 700 वर्ष पुराना है. यह मंदिर पुराने किले में स्थित है और चारों तरफ ऊंची प्राचीरों से घिरा हुआ है. जिस कारण इसे गुफा मंदिर भी कह सकते हैं. मंदिर के तीन प्रवेश द्वारों में से दो कलात्मक हैं. मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की ओर है. परिसर के मध्य स्थित देवी मंदिर में गुम्बदनुमा प्रवेश मंडप और शिखर युक्त गर्भगृह है. गर्भगृह की चौखट 5 x 7 साइज की है, लेकिन प्रवेश मार्ग मात्र 3 x 2.5 फीट का है. इसमें झुककर ही प्रवेश किया जा सकता है, इसलिए पुजारी झुककर ही पूजा करते हैं. मंदिर के गर्भगृह में एक विशाल शिला है. शिला में बने चरणचौकी पर ब्रह्माणी माता की पाषाण प्रतिमा विराजमान है.
शिवरात्रि पर लगता है गधों का मेला
ब्रह्माणी माता में लोगों की गहरी आस्था है. लोग यहां आकर प्रार्थना करते हैं और मन्नत पूरी होने पर आस्था के अनुसार पालना, छत्र या कोई अन्य वस्तु चढ़ाते हैं. जब ब्रह्माणी माता यहां सोरसन के खोखर गौड़ ब्राह्मण से प्रसन्न हुईं, तब से खोखरजी के वंशज ही मंदिर में पूजा करते हैं. इस मंदिर में परम्परागत रूप से गुजराती परिवार के सदस्यों को सप्तशती का पाठ करने का अधिकार है और मीणाओं के राव भाट परिवार के सदस्यों को ढोल बजाने का अधिकार है. साल में एक बार शिवरात्रि के अवसर पर सोरसन ब्रह्माणी माता मंदिर में गधों का मेला लगता है.

मंदिर में पूजा करते हुए पुजारी
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लंबे समय से रखरखाव की प्रतीक्षा में मंदिर
वही मंदिर के नाम पर सैकड़ों हेक्टेयर भूमि है, जिसका लाभ मंदिर को नहीं मिल पा रहा है, जिस कारण यहां कोई विकास नहीं हो पाया है. मंदिर के पास स्थित एक कुंड वीरान पड़ा है. यहां पिकनिक मनाने आने वाले पर्यटकों के लिए कोई खास इंतजाम नहीं हैं. इस स्थान पर बहने वाले झरने पर बरसात के दिनों में पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है. ऐसे में पुलिस को भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है. मंदिर के पास ही एक तालाब स्थित है, इसमें बोटिंग की व्यवस्था कर इस स्थान को पर्यटकों के लिए और अधिक आकर्षक बनाया जा सकता है. लेकिन लंबे समय से इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है.
विकास के लिए सालों से कर रहा है संघर्ष
विश्व प्रसिद्ध मंदिर होने के बावजूद आज यह विकास के लिए संघर्ष कर रहा है क्योंकि इसका कोई ट्रस्ट नहीं है जिसके कारण यहां कोई सौंदर्यीकरण नहीं हो पाया है. मंदिर के नाम पर सैकड़ों एकड़ जमीन है लेकिन उस पर दबंग लोगों ने कब्जा कर रखा है. यहां बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मूलभूत सुविधाओं का भी घोर अभाव है. उनके लिए आवास से लेकर बाथरूम तक अन्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं है. ऐसे में इतनी विश्व प्रसिद्ध धरोहर का संरक्षण सही से न होने के कारण इसकी प्रसिद्धि अब कम होती जा रही है.