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राजस्थान में CMHO कार्यालय बना फर्जी दिव्यांग प्रमाण-पत्रों का कारखाना, 6 साल में बने 5,177 फर्जी सर्टिफिकेट 

मौजूदा सीएमएचओ डॉ. दिनेश खराड़ी ने कहा है कि जांच रिपोर्ट कलेक्टर को सौंप दी गई है और मामले की निष्पक्ष जांच की अपेक्षा की जा रही है. फिलहाल पूर्व सीएमएचओ डॉ. राजेश कुमार चित्तौड़गढ़ के निंबाहेड़ा जिला चिकित्सालय में उप-नियंत्रक के पद पर पदस्थ हैं.

राजस्थान में CMHO कार्यालय बना फर्जी दिव्यांग प्रमाण-पत्रों का कारखाना, 6 साल में बने 5,177 फर्जी सर्टिफिकेट 

Sirohi News: सिरोही जिले के स्वास्थ्य विभाग में पिछले छह सालों में दिव्यांगता प्रमाण-पत्रों के बड़े पैमाने पर फर्जीकरण का मामला सामने आया है. जांच में पता चला है कि पूर्व सीएमएचओ डॉ. राजेश कुमार (कार्यकाल: मार्च 2019 — जनवरी 2025) के कार्यकाल के दौरान कुल 7,613 प्रमाण-पत्र जारी किए गए, जिनमें से 5,177 प्रमाण-पत्र दोनों—राज्य और केंद्र—के पोर्टल पर अलग-अलग अधिकारियों के नाम से दर्ज पाए गए.

पड़ताल में यह चौंकाने वाला तथ्य निकलकर आया कि कुछ फाइलों पर राज्य पोर्टल पर डॉ. राजेश कुमार के डिजिटल सिग्नेचर मौजूद थे, जबकि वही फाइलें केंद्र के पोर्टल पर पूर्व सीएमएचओ डॉ. सुशील परमार के सिग्नेचर के साथ अपलोड हुईं —जबकि परमार उस समय सिरोही में पदस्थ ही नहीं थे. इससे डिजिटल क्लोनिंग तथा सिग्नेचर-दुर्व्यवहार का स्पष्ट संकेत मिलता है.

ऐसे डॉक्टरों के नाम पर बनाए गए जिनका जिले में कभी पदस्थापन ही नहीं हुआ

जांचकर्ताओं ने यह भी पाया कि कई प्रमाण-पत्र ऐसे डॉक्टरों के नाम पर बनाए गए जिनका जिले में कभी पदस्थापन ही नहीं हुआ. उदाहरण के तौर पर डॉ. गित्री अग्रवाल का नाम बार-बार विभिन्न विशेषज्ञताओं (नेत्र, ईएनटी, मानसिक रोग, हड्डी रोग) के रूप में दाखिल किया गया, जबकि मेडिकल रिकॉर्ड में उनका सिरोही में कार्य करना दर्ज नहीं है. कई मामलों में प्रमाण-पत्र एक ही दिन में तैयार कर दिए गए; कुछ लाभार्थियों ने सरकारी सुविधाएँ प्राप्त करने के बाद प्रमाण-पत्र कुछ महीनों में ही सरेंडर कर दिए — यह सभी पैटर्न एक संगठित और सुव्यवस्थित फर्जी गतिविधि की ओर इशारा करते हैं.

जांच रिपोर्ट कलेक्टर को सौंप दी गई

मौजूदा सीएमएचओ डॉ. दिनेश खराड़ी ने कहा है कि जांच रिपोर्ट कलेक्टर को सौंप दी गई है और मामले की निष्पक्ष जांच की अपेक्षा की जा रही है. फिलहाल पूर्व सीएमएचओ डॉ. राजेश कुमार चित्तौड़गढ़ के निंबाहेड़ा जिला चिकित्सालय में उप-नियंत्रक के पद पर पदस्थ हैं.

यह मामला केवल एक अधिकारी की करतूत नहीं बल्कि सिस्टम-स्तर की चूक और कमियों को उजागर करता है — जहां क्रॉस-वेरिफिकेशन और मेडिकल बोर्ड स्तर पर मिलान न के बराबर हुआ. अनुचित डिजिटल सिग्नेचर उपयोग, पोर्टल एक्सेस का एकाधिकार और दस्तावेज़ों की अपर्याप्त जाँच से लाभार्थियों और सरकारी योजनाओं के भरोसे को गंभीर चोट पहुँची है. प्रशासन द्वारा छानबीन और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का इंतज़ार है.

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