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राजस्थान हाई कोर्ट ने खारिज की पूर्व जस्टिस की पेंशन याचिका, कहा- इसका कोई कानूनी आधार नहीं  

राजस्थान हाई कोर्ट ने पूर्व जस्टिस प्रकाश टाटिया की दोहरी पेंशन की याचिका खारिज कर दी. जिसमें कहा कि दोहरी पेंशन का कोई कानूनी आधार नहीं है.

राजस्थान हाई कोर्ट ने खारिज की पूर्व जस्टिस की पेंशन याचिका, कहा- इसका कोई कानूनी आधार नहीं  
राजस्थान हाईकोर्ट जयपुर.

Rajasthan News: राजस्थान हाई कोर्ट ने शनिवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में झारखंड हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश प्रकाश टाटिया की पेंशन से जुड़ी याचिका को खारिज कर दिया. कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि दोहरी पेंशन का कोई कानूनी आधार नहीं है. इस फैसले ने "एक करियर, एक पेंशन" का सिद्धांत स्थापित कर राजकोषीय अनुशासन को बढ़ावा दिया है.

पेंशन विवाद का मामला

पूर्व जस्टिस प्रकाश टाटिया ने राजस्थान हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अपनी पेंशन को लेकर राहत मांगी थी. जनवरी 2001 में राजस्थान हाई कोर्ट में स्थायी न्यायाधीश बनने के बाद टाटिया 2011 में झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने. 3 अगस्त 2013 को रिटायरमेंट के बाद उन्हें सशस्त्र सेवा अधिकरण, नई दिल्ली का अध्यक्ष बनाया गया.

इसके बाद 11 मार्च 2015 को वे राजस्थान राज्य मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष नियुक्त हुए. टाटिया ने दावा किया कि उन्हें मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष के रूप में भी पेंशन मिलनी चाहिए.

दोहरी पेंशन की मांग खारिज

जस्टिस टाटिया के वकीलों एम एम सिंघवी, अभिषेक मेहता और केसर सिंह चौहान ने तर्क दिया कि राज्य सरकार के 18 फरवरी 2020, 26 फरवरी 2024 और 15 मार्च 2024 के पत्र गैर-कानूनी हैं. इन पत्रों ने उनकी दोहरी पेंशन की मांग को खारिज किया था. वकीलों ने कहा कि नियमों में ऐसी कोई शर्त नहीं है जो पहले से पेंशन ले रहे व्यक्ति को दूसरी पेंशन से रोके. यह नियम संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21 का उल्लंघन करता है.

राज्य सरकार का पक्ष

राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता राजेंद्र प्रसाद ने कोर्ट को बताया कि जस्टिस टाटिया पहले से ही सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश अधिनियम 1958 के तहत 1.25 लाख रुपये मासिक पेंशन ले रहे हैं. उन्होंने कहा कि नियम 4 केवल सेवा शर्तों में समानता लाता है, दोहरी पेंशन की अनुमति नहीं देता. साथ ही, मानव अधिकार आयोग और लोकायुक्त के नियम अलग हैं, क्योंकि लोकायुक्त नियमों में दोहरी पेंशन का स्पष्ट प्रावधान है.

कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

जस्टिस फरजंद अली और जस्टिस अनुरूप सिंघी की खंडपीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि दोहरी पेंशन राजकोषीय अनुशासन के खिलाफ है. कोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय उदाहरणों का हवाला देते हुए बताया कि ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में भी "डबल डिपिंग" यानी दोहरी पेंशन को हतोत्साहित किया जाता है.

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