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जयपुर-जोधपुर के बाद अब उदयपुर में भी स्थापित होगी राजस्थान हाईकोर्ट की बेंच? कानून मंत्रालय ने दिया ये जवाब

Demand for Rajasthan High Court Bench in Udaipur: हाईकोर्ट बैंच की मांग उदयपुर में 43 साल पहले उठी थी. इस मांग को लेकर भुख हड़ताल और उग्र विरोध प्रदर्शन भी किए गए.

जयपुर-जोधपुर के बाद अब उदयपुर में भी स्थापित होगी राजस्थान हाईकोर्ट की बेंच? कानून मंत्रालय ने दिया ये जवाब

Rajasthan High Court: उदयपुर में हाईकोर्ट बेंच की मांग कर रहे स्थानीय लोगों को बड़ा झटका लगा है. अब इस मांग के संबंध में कानून मंत्रालय ने कहा उदयपुर में बैंच की स्थापना की संभावना नहीं है. दूसरी ओर, वकील लगातार विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि कोर्ट केस के लिए जोधपुर (Jodhpur) जाने से काफी परेशानी पैदा हो रही है. हाईकोर्ट बेंच दूर होने से गरीब-आदिवासी लोग न्याय से वंचित हो रहे हैं. राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) की बेंच की मांग उदयपुर में 43 साल पहले उठी थी. इस मांग को लेकर भुख हड़ताल और उग्र विरोध प्रदर्शन भी किए गए. यहां तक कि वकील इस मांग को लेकर हर महीने की 7 तारीख को कार्य बहिष्कार तक करते हैं. 

धरी की धरी रह गई उदयपुर की 43 साल पुरानी मांग 

कानून मंत्रालय ने सदन में एक जवाब के सवाल में साफ तौर पर कह दिया गया हैं कि उदयपुर में हाईकोर्ट बेंच की स्थापना की जरूरत नहीं हैं. साथ ही अभी स्थापना की संभावना नहीं हैं. ऐसे में एक बार फिर वकीलों का विरोध शुरू होने की सुगबुगाहट शुरू हो गई हैं. इस मामले में एक समिति भी गठित की गई थी, जिसके बैनर तले लगतार मांग की जा रही हैं. बीजेपी हो या कांग्रेस, दोनों पार्टियों की सरकार के कार्यकाल के दौरान वकीलों ने राज्य से लेकर केंद्र तक बेंच के लिए गुहार लगाई. जब कांग्रेस राज के दौरान उम्मीद थी तो पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जोधपुर के वकीलों के दवाब के चलते मना कर चुके थे. इसके बाद अब बीजेपी सरकार में काफी उम्मीद बंधी थी, जो पूरी नहीं हो पाई.

आदिवासी अंचल के लोगों के लिए न्याय पाना महंगा 

इस मांग के पीछे वजह क्षेत्र में आदिवासी बाहुल्य जनसंख्या भी है. संभाग के जनजाति क्षेत्र के लोगों के लिए न्याय पाना भी काफी महंगा हो चला है. क्योंकि बांसवाड़ा के अंतिम छोर से जोधपुर की दूरी 400 किलोमीटर तक है, ऐसे में हाईकोर्ट में लंबित मुकदमे की सुनवाई के लिए स्थानीय लोगों का जााना आसान नहीं होता है. नतीजा यह होता है कि लंबे समय तक मुकदमा चलने से लोगों को न्याय पाने में देरी होती है.

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