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विधानसभा में रो पड़े स्पीकर देवनानी... डोटासरा पर लगा आरोप, अब सरकार लेगी कड़ा फैसला

राजस्थान विधानसभा में इंदिरा गांधी पर अविनाश गहलोत की टिप्पणी और कांग्रेस के 6 विधायकों के निलंबन को लेकर गतिरोध बरकरार है. अब गोविंद सिंह डोटासरा के विधानसभा अध्यक्ष पर टिप्पणी और उनके व्यवहार से नया हंगामा खड़ा हो गया. आज स्पीकर डोटासरा के व्यवहार से सदन में भावुक हो गए.

विधानसभा में रो पड़े स्पीकर देवनानी... डोटासरा पर लगा आरोप, अब सरकार लेगी कड़ा फैसला
सदन नें भावुक हुए विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी

Rajasthan News: राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के व्यवहार के चलते स्पीकर वासुदेव देवनानी मंगलवार को सदन की कार्यवाही के दौरान बोलते हुए कई बार भावुक नजर आए. विधानसभा स्पीकर ने कहा कि राजस्थान विधानसभा की लंबी और मर्यादापूर्ण परंपरा रही है. यहां कई बार गतिरोध हुआ है, विपक्ष ने धरने भी दिए हैं, लेकिन सदन के स्थगित होने के बाद डोटासरा ने जिस भाषा का इस्तेमाल किया, वह असहनीय है. इस पर शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने कहा कि गोविंद सिंह डोटासरा की सदस्यता रद्द की जाए. वहीं, गंगानगर से विधायक जगदीप बियानी ने कहा कि आज सदन में संविधान रोया है. ऐसे व्यक्ति को विधायक पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है.

'सदन की गरिमा तार-तार कर दी'

सदन में गोविंद सिंह डोटासरा के व्यवहार और उनके बयान पर स्पीकर देवनानी ने कहा कि राजस्थान विधानसभा सन 1952 से काम कर रही है. तब तो मैं छोटा था, लेकिन जब से समझ आई तब से मैं विधानसभा की कार्यवाही समाचार पत्र में पढ़ता रहा हूं. तब से लेकर आज तक कभी भी ऐसी घटना नहीं घटी. एक पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने सदन की गरिमा और मर्यादाएं तार-तार कर दीं. प्रश्नकाल के दौरान विपक्ष के व्यवहार से कल जो दृश्य खड़ा हुआ, मैं समझता हूं कि यह शर्मसार करने वाला भी है.

बाप बड़ा मन तब रखता, जब बेटा भी कर्तव्य निभाए

विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि बार-बार कहा जाता है कि बाप को बड़ा मन रखना होता है. बाप बड़ा मन तब रखता है, जब बेटा भी बेटे का कर्तव्य निभाए. यदि बेटा भी नहीं निभाए तो बाप भी उसे घर से निकालकर अलग कर देता है. बाप फिर कभी बेटे को घर में नहीं रखता है. कठोर मन से बाप को भी ये व्यवस्थाएं रखनी पड़ती हैं. 

हम संसदीय व्यवस्थाओं में रहते हैं, इसलिए मैंने बड़ा मन करके सबको बुलाया. कल अगर मैं सदन को स्थगित नहीं करता तो पता नहीं क्या दृश्य उपस्थित हो सकता था. सदन की गरिमा बनी रहे, इसलिए स्थगित किया.

"एक दल के प्रदेश अध्यक्ष ने जो कहा, उन शब्दों को मैं दोहरा नहीं सकता. वह शब्द इस सदन के अंदर ही कहे गए हैं, ये शब्द बहुत ही गंभीर और अपमानजनक हैं. यह मेरा अपमान नहीं हुआ है, इस आसन का अपमान हुआ है. क्या करेंगे आप लोग, ये सदन तय करेगा, लेकिन ऐसा व्यक्ति सदन के सदस्य बनने के भी योग्य नहीं है. अब उसके लिए क्या किया जाए, क्या नियम है? ये सदन को तय करना है."

मैंने कभी पक्षपात नहीं किया- स्पीकर

मैंने कभी भी पक्षपात नहीं किया,  ना ही करूंगा, लेकिन इसके बाद भी अगर इस तरह के शब्द सुने जाएं तो मन को पीड़ा होना स्वाभाविक है. इस दौरान स्पीकर ने सदन में रोते हुए कहा कि सदन के लिए, आसन के लिए और अध्यक्ष के लिए आज भी जिन शब्दों को उपयोग हो रहा है, क्या ऐसे वातावरण में कोई बात होना कितना उचित होगा. यह सदन तय करे मैं नहीं तय करूंगा. दोबारा भावुक होते हुए स्पीकर ने कहा, "मैं तो एक छोटा सा कार्यकर्ता था, एक कॉलेज में पढ़ाता था. मैं तो कभी कल्पना नहीं की थी कि यहां तक पहुंचूंगा. लेकिन मुझे आपने पहुंचाया. ऐसे शब्द सुनने के लिए तो आसन पर नहीं आया हूं. इसलिए आप लोगों पर छोड़ता हूं कि इस पर कठोरत कार्रवाई की जाए."

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