जयपुर: नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की एक रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान सरकार का राजकोषीय घाटा वर्ष वित्त वर्ष 2021-22 में घटकर 4.03 प्रतिशत रह गया. हालांकि, यह एफआरबीएम अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत निर्धारित तीन प्रतिशत के लक्ष्य से अधिक था. नियंत्रक-महालेखा परीक्षक (कैग) की ओर से 31 मार्च 2022 को समाप्त हुए वित्त वर्ष के लिए राज्य के वित्त पर लेखा परीक्षा प्रतिवेदन (राज्य वित्त) में यह निष्कर्ष निकाला गया है. यह प्रतिवेदन बुधवार को विधानसभा पटल पर रखा गया.
इसके अनुसार,‘‘राज्य की राजकोषीय स्थिति को तीन प्रमुख राजकोषीय मापदंडों-राजस्व घाटा/अधिशेष, राजकोषीय घाटा/अधिशेष और बकाया ऋण के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) से अनुपात के संदर्भ में देखा जाता है. लेखापरीक्षा प्रतिवेदन के अनुसार जीएसडीपी के प्रतिशतता के रूप में राजकोषीय घाटा वर्ष 2020-21 में 5.86 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2021-22 में 4.03 प्रतिशत हो गया.''
इसमें कहा गया है,‘‘एफआरबीएम अधिनियम के अनुसार, राज्य सरकार को वित्तीय वर्ष 2011-12 से शून्य राजस्व घाटा प्राप्त करना था और उसके बाद इसे बनाए रखना या राजस्व अधिशेष प्राप्त करना था. राज्य सरकार का वर्ष 2020-21 के दौरान राजस्व घाटा 25,870 करोड़ रुपये रहा था.''
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वित्त वर्ष 2021-22 के लिए राज्य सरकार के बजट अनुमान यथार्थ नहीं थे. इसके अनुसार,‘‘ बजट तैयार करने और निष्पादन में दक्षता और पारदर्शिता लाने के लिए बजट पूर्व एक विस्तृत प्रक्रिया अपनाने के बावजूद बजटीय अनुमान एक स्तर तक सही नहीं थे और बजट के निष्पादन पर नियंत्रण अपर्याप्त था.'' रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान की जीएसडीपी में सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों का योगदान 2019-20 के 8.29 प्रतिशत से घटकर 2021-22 में 7.44 प्रतिशत हो गया.
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