रक्षाबंधन भाई और बहन के बीच प्यार के बंधन का त्योहार है. इस दिन एक भाई अपनी बहन को सभी बुराइयों से बचाने की कसम खाता है. लेकिन बांसवाड़ा जिले की 49 वर्षीय एक बहन ने अपने भाई का जीवन बचाने की एक नई मिसाल पेश की है. उसने अपने भाई की जान बचाने के लिए कुछ दिन पूर्व ही राखी गिफ्ट के तौर पर लीवर का आधा हिस्सा दान कर उसका जीवन बचा लिया. दरअसल बांसवाड़ा जिले के कुपड़ा गांव निवासी 40 वर्षीय निमेष बीते कुछ समय से लीवर सिरोसिस से जूझ रहा था. उसे लीवर ट्रांसप्लांट की जरूरत थी. ऐसे में उसकी बहन प्रवीणा ने उसे रक्षाबंधन से पहले जीवन का असाधारण उपहार देने का फैसला किया. प्रवीणा के लिए भाई को लीवर दान करना भी इतना आसान नहीं रहा. इसके लिए बहन ने अपना बढ़ा हुआ वजन कम करने के लिए दो माह तक अपने डाइट पर और वेलनेस सेंटर पर जाकर घंटों तक पसीना बहा कर करीब 15 किलो वजन कम किया. इसके बाद लीवर ट्रांसप्लांट किया जा सका.
निमेष ने बताया कि करीब एक साल पहले उनकी तबियत अचानक खराब हुई. डॉक्टर से दिखाया तो उन्होंने कहा कि लीवर धीरे-धीरे खराब हो रहा है. कुछ दिन दवाओं के सहारे ठीक करने का प्रयास किया गया, लेकिन जब हालत गंभीर होने लगी तो चिकित्सकों ने कहा कि अब लीवर ट्रांसप्लांट से ही जान बच सकती है।
डॉक्टरों के ऐसा कहने पर परिवार में मातम छा गया. सभी लोग चिंता में चले लगे. फिर इस बात की जांच कराई गई कि कौन लीवर दे सकता है. इस दौरान चिकित्सकों ने बहन प्रवीणा को लीवर देने के लिए उपयुक्त बताया, लेकिन यहां एक समस्या खड़ी हो गई कि बहन का वजन ज्यादा था और लीवर ट्रांसप्लांट के लिए समय बहुत कम था.
ऐसे में चिकित्सकों ने कहा कि यदि बहन प्रवीणा अधिक से अधिक डेढ़ माह में अपना वजन 15 किलो तक कम कर दे तो लीवर ट्रांसप्लांट किया जा सकता है. बहन प्रवीणा ने उसी दिन दृढ़ संकल्प लिया कि कुछ भी हो जाए वह अपने भाई का जीवन बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
फिर दूसरे ही दिन से उसने वजन कम करने के लिए जहां खानपान पर ध्यान देना शुरू कर दिया तो वहीं उसने वेलनेस सेंटर भी ज्वाइन कर लिया और रोज सुबह पांच बजे उठकर करीब डेढ़ माह तक जमकर पसीना बहाया और अपना वजन कम किया.
इसके बाद चिकित्सकों ने उसको फिट घोषित किया और जयपुर के महात्मा गांधी हॉस्पिटल में डॉ. करण कुमार के निर्देशन में लीवर ट्रांसप्लांट किया गया। कुछ दिन बाद चिकित्सकों ने खुशखबरी दी कि दोनों का स्वास्थ्य अच्छा हो रहा है. अब दोनों पूरी तरीके से फिट है. रक्षाबंधन का त्योहार करीब आया तो पूरा परिवार खुश है.
नाते-रिश्तेदारों के साथ-साथ गांव के लोग प्रवीणा की हिम्मत की दाद देते हैं. प्रवीणा के इस अनमोल उपहार से उसके भाई को नया जीवन मिला तो वहीं एक पत्नी का सुहाग उजड़ने से बच गया और दो बच्चों के सिर पर पिता का साया बना हुआ है। वहीं एक विधवा मां को भी जीने का आसरा मिल गया.
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