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This Article is From Mar 12, 2024

Ramadhan 2024: पवित्र महीने रमजान का पहला रोजा आज, रोजेदारों ने की पहली सेहरी

First Roza Today: ग़ौरतलब है कि इस्लाम के पाँच एहम फ़राइज़ यानी कर्तव्य हैं और हर फ़र्ज़ सभी से जुड़ा है. ये फ़राइज़ हैं तौहीद यानी एक निराकार ईश्वर में विश्वास, नमाज़, रोज़ा, ज़कात और हज. इन्हीं पाँच फ़राइज़ में से एक है रोज़ा, जो तीसरे स्थान का फ़र्ज़ है. रोज़ा करने वाले हर शख़्स के लिए नमाज़ ज़रूरी है.

Ramadhan 2024: पवित्र महीने रमजान का पहला रोजा आज, रोजेदारों ने की पहली सेहरी
आज शुरू हुआ पवित्र रमजान का महीना

कल शाम मगरिब की नमाज के बाद माह-ए-रमज़ान का चांद नज़र आने के साथ ही रोज़ों का आग़ाज़ हो गया. चांद देख कर लोगों ने ख़ैर और बरकत की दुआएं मांगीं और रमज़ान की तैयारियाँ शुरू कीं. रात में इशा की नमाज़ के बाद हाफ़िज़-ए-क़ुरआन के पीछे तरावीह की नमाज़ की शुरुआत हुई, जो 29 रमज़ान तक चलेगी. आज सुबह 4 बजे उठ कर तमाम रोज़ेदारों ने सेहरी की और रोज़े की नीयत की. सेहरी का वक़्त ख़त्म होते ही अज़ान हुई और तमाम लोगों ने फज्र की नमाज़ अदा कर माह-ए-रमज़ान की नेमतों की शुरूआत के लिए अल्लाह का शुक्र अदा किया. आज पहला रोज़ा है और तीस रोज़ों के हिसाब से 10 अप्रेल तक रमज़ान का महीना चलेगा. उसमे बाद ईद का त्यौंहार मनाया जाएगा.

इस्लामी साल हिजरी के मुताबिक 12 महीनों में सबसे मुक़द्दस यानी पवित्र माह रमज़ान को माना गया है. ये पूरा महीना हर इन्सान के लिए अपने आप को जिस्मानी, दिली, ज़ेहनी और रूहानी ऐतबार से पाक कर लेने का महीना माना जाता है. रमज़ान का एक महीना रोज़ेदार के लिए ट्रेनिंग की तरह है, जिसमें पूरी तरह से ट्रेन्ड होकर बाक़ी के 11 महीने इस तरह गुज़ारने हैं कि मानो आप रोज़े से हैं.

इस माह में एक विशेष नमाज़ होती है जिसे तरावीह कहा जाता है. ये नमाज़ हाफ़िज़ अदा करवाते हैं, जिन्हें पूरा क़ुरआन-ए-पाक कंठस्थ होता है. वे बिना देखे लगातार क़ुरआन की आयतों की तिलावत करते हैं. क़ुरआन-ए-करीम में तीस पारे यानी अध्याय हैं और हाफ़िज़ तरावीह की नमाज़ में रोज़ाना एक पारे की तिलावत करते हैं. इस तरह से इस पूरे महीने में क़ुरआन के सभी 30 पारों की तिलावत मुकम्मल हो जाती है.

ग़ौरतलब है कि इस्लाम के पाँच एहम फ़राइज़ यानी कर्तव्य हैं और हर फ़र्ज़ सभी से जुड़ा है. ये फ़राइज़ हैं तौहीद यानी एक निराकार ईश्वर में विश्वास, नमाज़, रोज़ा, ज़कात और हज. इन्हीं पाँच फ़राइज़ में से एक है रोज़ा, जो तीसरे स्थान का फ़र्ज़ है. रोज़ा करने वाले हर शख़्स के लिए नमाज़ ज़रूरी है. इसी तरह से इसे ज़कात यानी अपनी आय में से ढाई फ़ीसद हिस्सा ग़रीबों, मिस्कीनों और यतीमों के लिए देना ज़रूरी है. अगर नहीं दिया तो उसका रोज़ा नहीं होगा.

रोज़ेदार दिन भर भूखा-प्यासा रह कर अल्लाह की इबादत में मशगूल होता है. शाम को उसे इन्तेज़ार रहता है इफ़्तार का. जैसे ही मग़रिब की अज़ान होती है, रोज़ेदार अल्लाह का शुक्र अदा करता हुआ रोज़ा खोलता है. यक़ीनन ये उस परवरदिगार की बहुत बड़ी नैमत है.

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