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This Article is From Oct 02, 2023

RGHS Cancer Drug Scam: दवाओं के नाम पर करोड़ों के घोटाला, 4 हिस्सों में होता था पैसों का बंटवारा

इस योजना के तहत पहली बार ऐसा बड़ा घोटाला सामने आया है. आरोप है कि जोधपुर में कई मेडिकल स्टोर संचालकों और दलालों के खिलाफ करोड़ों रुपए के गबन किया. बासनी थाने में दर्ज मामले में पुलिस ने अब तक 45 लोगों को नामजद किया है.

RGHS Cancer Drug Scam: दवाओं के नाम पर करोड़ों के घोटाला, 4 हिस्सों में होता था पैसों का बंटवारा
प्रतीकात्मक चित्र

सरकारी कर्मचारियों के नि:शुल्क इलाज के लिए लागू राज्य सरकार स्वास्थ्य योजना (State Government Health Scheme- RGHS) की आड़ में मेडिकल स्टोर व मध्यस्थों ने करोड़ों रुपए की दवाइयों का बिल उठाकर गबन (RGHS Scam) कर लिया. इस योजना के तहत पहली बार ऐसा बड़ा घोटाला सामने आया है. आरोप है कि जोधपुर में कई मेडिकल स्टोर संचालकों और दलालों के खिलाफ करोड़ों रुपए के गबन किया. बासनी थाने में दर्ज मामले में पुलिस ने अब तक 45 लोगों को नामजद किया है.

राज्य सरकार की आरजीएचएस स्कीम में कैंसर दवाओं के नाम पर करोड़ों के घोटाले में पैसा बांटने का फार्मूला तय था. घोटोले की राशि में से 25 फीसदी डॉक्टर, 25 फीसदी दवा विक्रेता, 40 फीसदी लाभार्थी तो 10 फीसदी राशि दलालों में बंटती थी. पुलिस इस पहलू पर जांच आगे बढ़ा रही है.

रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले में झंवर मेडिकल का एक दलाल अभी पुलिस की पकड़ से दूर बना हुआ है, तो मामले में बासनी स्थित निजी अस्पताल से जुड़े एक दलाल का नाम भी सामने आ रहा है. पुलिस कड़ी से कड़ी जोड़कर इस मामले की तह तक जाने में लगी हुई है. ड्रग कंट्रोलर व पुलिस के संयुक्त रूप से झंवर मेडिकल के यहां स्टॉक की जांच व सत्यापन का काम भी जल्द होने वाला है.

आरजीएचएस के संयुक्त परियोजना निदेशक डॉ. अभिषेक सिंह किलक ने बताया कि मामला दर्ज होने के बाद हर दिन पुलिस की जांच में दवा घोटाले से जुड़े कई पहलू सामने आ रहे हैं. पता चला है कि झंवर मेडिकल के जुगल झंवर ने करीब पौने दो साल में मुख्य दलाल के माध्यम से करोड़ों रुपए का घोटाला किया. इसके लिए दलाल लाभार्थियों से संपर्क करता था. लाभार्थी को दवा दिलवाने, दवा न लेने पर फर्जी बिल बनाने के लिए राशि का 40 फीसदी हिस्सा प्रलोभन देकर तैयार करता था. इसके लिए अस्पताल-डॉक्टर्स के बीच भी संपर्क की कड़ी जोड़ी जाती थी.

इस मामले में बासनी स्थित निजी अस्पताल से जुड़े एक कर्मचारी का नाम भी सामने आ रहा है. वह अस्पताल से जुड़ी प्रक्रिया में सहयोग करता था. बताया गया है कि दलाल के माध्यम से ही डॉक्टर्स को 25 फीसदी राशि पहुंचाई जाती थी. बाकी 25 फीसदी जुगल झंवर रखता था, तो दलाल के हिस्से 10 फीसदी मुनाफा आता था. इसकी पुष्टि आरपीटीसी में कार्यरत हेड कांस्टेबल बक्तावर सिंह के केस से हो चुकी है, जिसमें उसके बेटे ने एक बयान में कहा है कि उसे 40 फीसदी हिस्सा दिया जाता था. 

तीन तरीके से उठती थी दवाएं-

पहला : इलाज अहमदाबाद में, दवा पर्ची जोधपुर में बनती थी
आरजीएचएस के तहत वास्तविक मरीज अपना इलाज तो अहमदाबाद में करवाता था, लेकिन उसकी दवा पर्ची जोधपुर के चिकित्सक से बनवाई जाती थी. उसी पर्ची पर झंवर मेडिकल से दवा लेकर बिल बनवाया जाता था.

दूसरा : दवा की जरूरत कम, बिल ज्यादा का
इस घोटाले का एक पहलू यह भी सामने आ रहा है कि जिस मरीज को दो या तीन दवा की जरूरत होती थी, उसकी पर्ची पर पांच से सात दवा लिखी जाती थी. मरीज को उसकी जरूरत की दवा से मतलब होता था, उसके बदले ज्यादा राशि का बिल बनाकर आरजीएचएस से भुगतान ले लिया जाता था.

तीसरा : बीमारी ही नहीं, फर्जी इलाज के बिल
सबसे गंभीर मामला यही है, जो मोहन कंवर के केस में भी सामने आया. ऐसी कई पर्चियां बरामद हुईं हैं, जिनमें कैंसर की दवा के बिल तो उठे है, लेकिन मरीज को वह बीमारी ही नहीं है. मतलब सामान्य या किसी अन्य बीमारी की दवा के बदले कैंसर की दवा लिखकर पैसे उठाए गए.

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