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This Article is From Oct 28, 2023

Rajasthan Election 2023: जिस सीट पर 40 साल से जारी है बेनीवाल-मिर्धा की जंग, उसी से ताल ठोंकेंगे RLP सुप्रीमो Hanuman Beniwal

बेनीवाल और मिर्धा परिवार की राजनीतिक लड़ाई 40 सालों से चली आ रही है. क्योंकि 1980 में मूंडवा सीट से बेनीवाल के पिता रामदेव को हरेंद्र मिर्धा ने हराया था. जबकि 1985 में रामदेव ने मिर्धा को हराया. मूंडवा व नागौर से ही 2008 में खींवसर सीट बनी थी.

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Rajasthan Election 2023: जिस सीट पर 40 साल से जारी है बेनीवाल-मिर्धा की जंग, उसी से ताल ठोंकेंगे RLP सुप्रीमो Hanuman Beniwal
हनुमान बेनीवाल.

लंबे इंतजार के बाद राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) ने शुक्रवार देर रात अपने पहले 10 प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर दी. इन 10 प्रत्याशियों में आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल (Hanuman Beniwal) का भी शामिल नाम है, जिन्होंने नागौर जिले की खींवसर विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरने का ऐलान किया है. इस सीट से हनुमान बेनीवाल के भाई नारायण बेनीवाल विधायक हैं, लेकिन हनुमान बेनीवाल ने उनकी टिकट काटकर इस सीट से खुद चुनावी मैदान में उतारने का फैसला किया है. हनुमान बेनीवाल ने खुद विधानसभा चुनाव में उतरने का फैसला क्यों किया और क्यों खींवसर सीट बेनीवाल के लिए इतनी खास है, इसी पर देखिए हमारी यह खास रिपोर्ट... 

नागौर जिले की हॉट सीट है खींवसर

खींवसर नागौर जिले की हॉट सीट मानी जाती है. 2008 में परिसीमन के बाद यह सीट अस्तित्व में आई थी. इससे पहले मूंडवा विधानसभा सीट हुआ करती थी. मूंडवा और खींवसर हनुमान बेनीवाल की परंपरागत सीट रही है. खींवसर से हनुमान बेनीवाल 2008 में भाजपा की टिकट पर विधायक चुने गए थे. इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से उनकी नाराजगी हो गई और उनका विवाद बढ़ता चला गया. 2013 में बेनीवाल ने निर्दलीय के रूप में ताल ठोकी और जीत हासिल की. 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले हनुमान बेनीवाल ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का गठन किया और कई सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे. हनुमान बेनीवाल की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हनुमान बेनीवाल खुद खींवसर से जीते तो वहीं मेड़ता से इंदिरा बावरी और भोपालगढ़ से पुखराज गर्ग को भी जीता लिया. 

अधिकांश जाट समुदाय के मतदाता

लेकिन अगर बात करें खींवसर सीट की तो खींवसर जाट बाहुल्य सीट मानी जाती है. यहां अधिकांश मतदाता जाट समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. वहीं दलित वर्ग के मतदाता भी भारी तादाद में है. ऐसे में दलित मतदाता भी में जीत-हार में निर्णायक भूमिका रखते हैं. जाट समुदाय में हनुमान बेनीवाल बेहद लोकप्रिय नेता है. हनुमान बेनीवाल 36 कौम को अपने साथ लेकर चलने का दावा करते हैं. यह भी सच है कि बेनीवाल जुझारू और संघर्षशील नेता है. कई मामलों में उन्होंने सड़क पर संघर्ष किया है और सरकार से भी टकरा चुके हैं. उनका बेबाक अंदाज और जुझारू राजनीति का ही परिणाम है कि वह 2008 से लगातार जीतते आ रहे हैं. यही वजह रही कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उनकी पार्टी आरएलपी से गठबंधन किया और बेनीवाल को आरएलपी व भाजपा का संयुक्त उम्मीदवार बनाकर नागौर संसदीय सीट से उम्मीदवार बनाया. जिसके परिणाम स्वरूप हनुमान बेनीवाल ने कांग्रेस प्रत्याशी ज्योति मिर्धा को हरा दिया. बेनीवाल के सांसद बनने के बाद खींवसर सीट पर उपचुनाव हुए, जिसमें हनुमान बेनीवाल ने अपने भाई नारायण बेनीवाल को चुनावी मैदान में उतारा और उन्हें जीत दिलाकर खींवसर से अपने अजेय रहने का रिकॉर्ड कायम रखा. 

अब बदल चुके हैं समीकरण

लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है. किसान आंदोलन और अग्निवीर योजना के मुद्दे पर हनुमान बेनीवाल ने भाजपा से अलग होकर गठबंधन तोड़ दिया है, जबकि दूसरी ओर कांग्रेस में रही ज्योति मिर्धा भाजपा में शामिल हो गई हैं. भाजपा नागौर जिले में हनुमान बेनीवाल का वर्चस्व तोड़ने के लिए लंबे समय से किसी बड़े जाट नेता को तलाश कर रही थी. इसी कारण भाजपा ने ज्योति मिर्धा को भाजपा में शामिल करवा लिया. ऐसे में अबकी बार मुकाबला काफी रोचक होने की संभावना है, क्योंकि बेनीवाल और मिर्धा परिवार की राजनीतिक लड़ाई 40 सालों से चली आ रही है. क्योंकि 1980 में मूंडवा सीट से बेनीवाल के पिता रामदेव को हरेंद्र मिर्धा ने हराया था. जबकि 1985 में रामदेव ने मिर्धा को हराया. मूंडवा व नागौर से ही 2008 में खींवसर सीट बनी थी.

हनुमान बेनीवाल ने की थी तीसरा मोर्चा की कवायद

दरअसल हनुमान बेनीवाल लंबे समय से प्रदेश में मजबूत तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद में है. इसके लिए वह पूर्व में किरोड़ी लाल मीणा और सचिन पायलट को भी तीसरी मोर्चे के लिए आमंत्रित कर चुके थे. मगर दोनों ही नेता हनुमान बेनीवाल से के साथ नहीं जुड़े. इसके बावजूद हनुमान बेनीवाल प्रदेश में तीसरी ताकत के रूप में तेजी से उभरे. राजस्थान में आरएलपी ही ऐसी पार्टी है जिसके पास उसका एक सांसद, तीन विधायक के साथ ही नगर पालिका अध्यक्ष, पंचायत समिति प्रधान सहित अनेक सरपंच है. साथ ही हजारों कार्यकर्ताओं की लंबी चौड़ी फौज है. 

बड़े जाट नेता के रूप में होने लगी पहचान

हनुमान बेनीवाल की राजनीति से दिग्गज जाट नेता चिंतित है, क्योंकि हनुमान बेनीवाल प्रदेश में सर्वोच्च जाट नेता के रूप में अपनी पहचान बनाने लगे हैं. उन्होंने अकेले दम पर अपनी पार्टी को न केवल खड़ा किया, बल्कि उसका विस्तार भी किया. उनकी राजनीति से ज्यादा नुकसान कांग्रेस को होता है, मगर भाजपा भी इससे अछूती नहीं है. बेनीवाल दोनों ही पार्टियों के लिए चिंता का विषय बन चुके हैं. भाजपा और कांग्रेस से असंतुष्ट नेता बेनीवाल का रुख करते हैं और बेनीवाल उन्हें इन्हीं पार्टियों के सामने चुनावी मैदान में उतारते हैं, जिसका परिणाम वोट शेयरिंग पर पड़ता है.

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