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Shardiya Navratri 2025: 900 साल पुराना चमत्कारी केला देवी मंदिर, नवरात्रों में यहां दीपक की लौ में होते हैं माता के दर्शन

Maa Kaila Devi: त्रिकूट पर्वत पर स्थित यह मंदिर लगभग 900 वर्ष पुराना है. यहां की मुख्य प्रतिमा महालक्ष्मी स्वरूपा मां कैला की है, जबकि दूसरी प्रतिमा चामुंडा देवी की है. मंदिर का शिखर सोने से बना हुआ है.

Shardiya Navratri 2025:  900 साल पुराना चमत्कारी केला देवी मंदिर, नवरात्रों में यहां दीपक की लौ में होते हैं माता के दर्शन
Kaila Devi, Karauli

 Shakitipeeth Kaila Devi: शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ 22 सितंबर से हो चुका है और इसकी धूम पूरे उत्तर भारत में देखने को मिल रही है. इसी कड़ी में राजस्थान के करौली जिले में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ मां कैला देवी मंदिर में भी शक्ति की उपासना का पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है, जहां श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है. त्रिकूट पर्वत पर स्थित यह मंदिर लगभग 900 वर्ष पुराना है. यहां की मुख्य प्रतिमा महालक्ष्मी स्वरूपा मां कैला की है, जबकि दूसरी प्रतिमा चामुंडा देवी की है.मंदिर का शिखर सोने से बना हुआ है, जो भक्तों की आस्था और आकर्षण का प्रमुख केंद्र है.

दीपक की रोशनी में माता के अलौकिक दर्शन

मां कैला देवी मंदिर की सबसे अनूठी बात यह है कि नवरात्रि के दौरान माता के गर्भगृह में बिजली की कोई व्यवस्था नहीं होती है. भक्तजन सदियों से चली आ रही परंपरा का पालन करते हुए, माता के दर्शन केवल तेल और घी के दीपक की रोशनी में ही करते हैं. यह इसे राजस्थान का पहला ऐसा मंदिर बनाता है जहां दीपक की लौ से माता के दिव्य दर्शन होते हैं.

कैला देवी मंदिर का प्रवेश द्वार

कैला देवी मंदिर का प्रवेश द्वार
Photo Credit: NDTV

कालीसिल नदी में स्नान के बिना दर्शन अधूरे

वही मंदिर में माता के दर्शन से पहले, श्रद्धालुओं के लिए पास में ही बहने वाली कालीसिल नदी में स्नान करना अनिवार्य माना जाता है. मान्यता है कि इस पवित्र नदी में स्नान करने से कुष्ठ रोग जैसे कष्ट दूर हो जाते हैं और तभी भक्त माता के दरबार में हाजिरी देने योग्य माने जाते हैं. वही कैला माता के दर्शन के बाद, भक्तों का भौंरा भगत के मंदिर में मत्था टेकना जरूरी है, अन्यथा मां कैला देवी के दर्शन अधूरे माने जाते हैं.

नवरात्र में विशेष अनुष्ठान और प्रसाद

नवरात्रि के नौ दिनों में यहां 17 विद्वान पंडित विशेष पूजा-अर्चना करते हैं, जिनमें प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती के 15 पाठ, देवी भागवत का एक पाठ और भैरव स्रोत के 108 पाठ शामिल होते हैं. संध्या के समय चौमुखा दीपक की विशेष बली दी जाती है.माता को हर दिन अलग-अलग प्रकार के प्रसाद अर्पित किए जाते हैं. जैसे पहले दिन मालपुआ, दूसरे दिन खीर, तीसरे दिन मिष्ठान और अन्य दिनों में मेवा और फलों का भोग लगाया जाता है.

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