Rajasthan News: झालावाड़ की अनमोल धरोहर भवानी नाट्यशाला आज 103 साल की हो गई है. रविवार को इसका स्थापना दिवस मनाया गया. हालांकि, ये अनमोल विरासत आज भी दुर्दशा का शिकार है. बजट की कमी के चलते इसका जीर्णोद्धार कार्य लंबे समय अटका पड़ा हुआ है. शहर के बुद्धिजीवी वर्ग को यह भी चिंता है कि कहीं ऐसा ना हो कि यह नाट्यशाला और इसका वजूद आने वाले समय में सिर्फ किताबों में ही सिमट कर रह जाए.
ओपेरा शैली में बनी भवानी नाट्य शाला
ओपेरा शैली में बनी यह नाट्यशाला पूरे उत्तर भारत में अनूठा भवन है जो अपनी खूबियों के लिए प्रसिद्ध है. यहां पर कई प्रसिद्ध नाटकों का मंचन किया गया और इसका स्टेज उस दौर के हिसाब से बेहद शानदार बनाया गया था, जिसमें दृश्य बदलना बेहद आसान कार्य हुआ करता था. गढ़ परिसर में मौजूद उत्तर भारत की एक मात्र ओपेरा शैली में बनी भवानी नाट्य शाला कभी राजसी वैभव का केंद्र रह चुकी है. रियासत कालीन दौर में इस नाट्य शाला में कभी प्रसिद्ध नाटक हुआ करते थे.
पहली बार अभिज्ञान शकुंतलम का हुआ मंचन
भवानी नाट्य शाळा का निर्माण 1921 में हुआ और पहली बार महाकवि कालिदास रचित नाटक अभिज्ञान शकुंतलम का मंचन हुआ. 1950 तक यहां हर 8 वें दिन एक नाटक हुआ करता था. पहले 7 दिन तक रिहर्सल चलती थी और आठवें दिन नाटक होता था. यहां पर लगे पर्दे की कीमत 10 हजार रुपये होती थी. यहां पर शेक्सपियर के हेमलेट सहित कई देशी और विदेशी नाटकों का मंचन किया जा चुका है. अंतराष्ट्रीय स्तर के लोगो ने यहां अपनी प्रस्तुति दी है. यहां मशहूर सितार वादक पण्डित रवि शंकर और उनके भाई उदयशंकर भी प्रस्तुती दे चुके हैं.
बजट की कमी से दुर्दशा का शिकार नाट्यशाला
कई फिल्मों और टीवी सीरियलों की शूटिंग भी यहां हो चुकी है. झालावाड़ के लोगों को उस वक्त इस भवानी नाट्यशाला का स्वरूप सुधर जाने की आस बंधी थी, जब 6 मार्च 2015 को तत्कालीन सरकार ने गढ़ भवन के लिये 3 करोड़ 20 लाख पुरातत्व विभाग को जीर्णोद्धार के काम के लिए दिए. काम शुरू किया तो इस भवानी नाट्य शाळा को भी शमिल किया गया. तब से लेकर अब तक पूरे गढ़ भवन में कार्य चल रहा है, लेकिन बजट की कमी के चलते भवानी नाट्यशाला का जीर्णोद्धार आज तक भी नहीं हो पाया है.
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