
Rajasthan High court cancelled SI exam: एसआई भर्ती-2021 रद्द होने के बाद ईमानदारी से परीक्षा पास करने वाले कई अभ्यर्थियों के सपने भी टूट गए हैं. परीक्षा रद्द होने से गरीब परिवारों पर दुखों का पहाड़ टूट गया है. कुछ ऐसा ही डूंगरपुर के आदिवासी परिवार से आने वाले दिनेश वरहात के साथ भी हुआ. आदिवासी अंचल के संचिया गांव में कच्चे घर में रहने वाले दिनेश ने कड़ी मेहनत से परीक्षा पास की. मजदूरी से लेकर पुलिस चौकी पर खाना बनाने तक का काम किया, बस दिल में एक ही सपना था- पुलिस की वर्दी पहननी है. जब चयन हुआ तो मां को लगा कि अब गरीबी खत्म होगी, भाई-बहनों की पढ़ाई पूरी होगी और घर में खुशहाली लौटेगी. लेकिन इन उम्मीदों को अब धक्का लगा है.
निशुल्क पढ़ाया, 100 युवाओं को मिली नौकरी
खास बात यह है कि दिनेश की प्रेरणा से मेहनत से 100 से ज्यादा प्रतिभाएं सरकारी सेवा में भी पहुंची. दिनेश ने तीन साल तक बच्चों को बिना किसी शुल्क के पढ़ाया. आज उसके पढ़ाए हुए 100 से ज्यादा बच्चे सरकारी सेवाओं में हैं. इनमें से करीब 40 पुलिस विभाग, अन्य वनपाल और ग्राम विकास अधिकारी जैसे पदों पर है.
गुजरात में मजदूरी करने लगा था दिनेश
पहली से बारहवीं तक सरकारी स्कूल से पढ़ाई करने के बाद दिनेश ने डूंगरपुर के एसबीपी कॉलेज से ग्रेजुएशन किया. शिक्षा की प्यास इतनी गहरी थी कि हालात कितने भी मुश्किल हों, पढ़ाई नहीं छोड़ी. गरीबी के दिनों में उन्होंने गुजरात में मजदूरी की और होटल में काम किया. कोरोना काल में जब रोजगार ठप हो गया तो कनबा चौकी में पुलिसवालों के लिए खाना बनाने का काम भी किया. उसी दौरान पुलिस विभाग में जाने के लिए प्रेरित हुआ.
कई नौकरियों में चयन, लेकिन सपना सिर्फ पुलिस
दिनेश का संघर्ष उसे कई बार सफलता दिला चुका था. उसका चयन कांस्टेबल, पटवारी, ग्राम विकास अधिकारी और वनपाल जैसी नौकरियों में भी हुआ. बतौर पटवारी उन्होंने खेरवाड़ा के डबचा में 16 महीने सेवाएं भी दीं, लेकिन दिल में पुलिस सेवा का जज्बा इतना गहरा था कि उन्होंने स्थायी नौकरी छोड़कर भी SI भर्ती की तैयारी जारी रखी.
बीमार पिता और घर के बिगड़े हालात
दिनेश के पिता अमृतलाल लंबे समय से बीमार हैं. घर की हालत ऐसी है कि आज भी कच्चा मकान है और घर तक जाने का रास्ता भी पक्का नहीं है. मां शारदा कभी नरेगा में काम करके, कभी अनाज बेचकर, तो कभी गांव-घर में छोटे-मोटे काम करके बच्चों को पढ़ाती रहीं. वह सबसे बड़ा बेटा होने के चलते परिवार की जिम्मेदारी उठाता रहा.
मां बोलीं- मैं तो मर भी नहीं सकती
मां शारदा रोते हुए कहती हैं, “बेटे की नौकरी लगी तो लगा कि अब जिंदगी बदल जाएगी. मगर अब कोर्ट ने भर्ती रद्द कर दी. मैं मर भी नहीं सकती, पीछे 5 बच्चे हैं. घर आज भी अधूरा है, शादी की उम्र हो गई, लेकिन बेटियों की शादी के लिए कुछ नहीं है.” उसके भाई जितेश ने बताया कि खूब मेहनत से उसके भाई की नौकरी नौकरी लगी तो मैंने पढ़ाई छोड़ दी थी और ड्राइविंग करने लगा. मगर भाई ने ही मुझे वापस पढ़ाई के लिए तैयार किया. आज पूरा परिवार उजड़ सा गया है.
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