
राजस्थान में दौसा जिले के बांदीकुई शहर का नाम ब्रिटिश काल से ही स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है. बांदीकुई शहर को रेलनगरी के नाम से भी जाना जाता है. 'गरीबों के काजू' कह जाने वाली मूंगफली हल्की-हल्की सर्दियों की शुरुआत होते ही बांदीकुई शहर की विशेष पहचान रखने वाली सुप्रसिद्ध काली मूंगफली की मांग बाजारों में बढ़ जाती है. केवल बांदीकुई में तैयार होने वाली इन काली मूंगफली की मांग दौसा जिले के अलावा अन्य शहरों में बसे बांदीकुई के परिचितों व रिश्तेदारों में भी बढ़ जाती है. साथ ही इसके जायके के शौकीन लोग जब अन्य शहरों से बांदीकुई आते हैं तो अपने साथ बड़ी मात्रा में काली मूंगफली को लेकर भी जाते हैं.
सर्दियों में बढ़ जाती है डिमांड
काली मूंगफली के कारोबार से जुड़े व्यापारी इनकी सप्लाई राजस्थान के कई जिलों व अन्य राज्यों में भी करते हैं. कारोबार से जुड़े व्यापारी बताते हैं कि दिल्ली, रेवाड़ी, हरियाणा, गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश राज्यों में भी इन काली मूंगफलियों की सप्लाई की जाती है. काली मूंगफली से बांदीकुई की भी अलग पहचान बनती जा रही है. नमकीन के स्वाद वाली इस मूंगफली को गरीब से लेकर अमीर लोग भी विशेष पसंद करते हैं. बांदीकुई शहर व आसपास के गांवों में हर खाने पीने की सामग्री वाली दुकानों मे काली मूंगफली ना मिले ऐसा तो हो ही नहीं सकता है. जैसे-जैसे सर्दियां बढ़ती जाती हैं, वैसे-वैसे इसकी डिमांड भी बढ़ जाती है. लोग शाम के वक्त दुकानों पर गरमा गर्म काली मूंगफलियां खरीदते हुए मिल जाते हैं. कारोबार के जुड़े कारीगरों ने बताया कि सर्दियों की शुरुआत से लेकर मार्च महीने तक इसके डिमांड जबरदस्त होती है.
कैसे तैयार होती है मूंगफली?
काली मूंगफली बनाने वाली कारीगर कमालुदीन ने बताया कि, 'कच्ची मूंगफली की गिरी को जयपुर से वर्तमान में करीब 90 से 110 रुपये किलो में मंगवाया जाता है, जिसके बाद काली मूंगफली को बनाने की प्रकिया शुरू हो जाती है. सबसे पहले मूंगफली की गिरी को पानी की टंकी में कम से कम तीन से चार घंटे तक भिगोया जाता है, जिसके बाद उसे सेंधा नमक और सोडा डालकर मिलाया जाता है. बताया जाता है कि 50 किलो मूंगफली में पांच किलो नमक और एक किलो सोडा मिलाया जाता है और उसे धुप में दिनभर सुखाया जाता है, जिसके बाद मिट्टी की भट्टी (भाड़) की तेज आंच में लोहे के कड़ाहे में नमक के साथ मूंगफली की सिकाई की जाती है. मूंगफली की सिकाई के चलते मूंगफली का कलर काला हो जाता है, और मूंगफली का जायका नमकीन हो जाता है. सिखाई होने के बाद मूंगफली को बेचने के लिए दुकानों पर भेज दिया जाता है.
दो दर्जन परिवार काम में जुटे
बांदीकुई में काली मूंगफलियों को तैयार करने में करीब दो दर्जन से भी अधिक परिवार लग रहे हैं और पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी मूंगफलियों को तैयार करने में मदद करती है. मूंगफली के तैयार करने वाले परिवारों में महिलाएं मूंगफली को पानी में भिगोने से लेकर पेकिंग में मदद करती हैं. एक परिवार करीब एक दिन में सात से दस क्विंटल तक मूंगफलियों को तैयार कर लेता है. सिकाई की गई तैयार काली मूंगफलियों को बाजार में वर्तमान में करीब 130 से 150 रुपये किलो के हिसाब से रिटेल में बेचा जाता है. एक किलो मूंगफली को सिकाई करने में करीब दस से पंद्रह रुपए का खर्च आता है, और इसमें डालने वाले सेंधा नमक व सोडे की कीमत अलग होती है.
पाचन के लिए भी मददगार
बताया जाता है कि काली मूंगफली खाने में तो स्वादिष्ट लगती ही है, साथ ही इसे तैयार करने में सेंधा नमक और सोडे के उपयोग होने से पाचन क्रिया में भी लाभ होता है. इसलिए अधिकांश लोग इसे शाम के वक्त खाना खाने के बाद काली मूंगफली को खाना पसंद करते हैं. ताकि गरमा गर्म काली मूंगफली से मुंह का तो जयका बदलता ही है, साथ ही पाचन भी ठीक रहता है. बांदीकुई शहर में 3 दशकों से भी अधिक समय से चलने वाले काली मूंगफली के इस कारोबार के चलते बांदीकुई को भी एक विशेष पहचान मिली है. वहीं दूसरी ओर कई दर्जनों परिवार के कारीगर जो काली मूंगफली के इस कारोबार में जुड़े हैं, उन्हें भी रोजगार मिला है.