अरावली मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और 4 राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर 2025 के फैसले को स्थगित कर दिया है. फिलहाल उन्हें लागू नहीं किया जाएगा. कोर्ट ने 4 अरावली राज्यों दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात से जवाब मांगा है. सुप्रीम कोर्ट ने प्रस्ताव दिया कि विशेषज्ञ समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट का विश्लेषण करने के लिए विशेषज्ञों की एक उच्च-शक्ति वाली विशेषज्ञ समिति का गठन किया जाए. मामले की अगली सुनवाई 21 जनवरी को होगी. सीजेआई ने कहा, "हमें लगता है कि कमेटी की रिपोर्ट और इस कोर्ट की टिप्पणियों को गलत समझा जा रहा है. मामले में कुछ स्पष्टीकरण ज़रूरी हैं. रिपोर्ट या इस कोर्ट के निर्देश को लागू करने से पहले, एक निष्पक्ष, स्वतंत्र विशेषज्ञ की राय पर विचार किया जाना चाहिए. निश्चित मार्गदर्शन देने के लिए ऐसा कदम ज़रूरी है."
अरावली की 100 मीटर वाली परिभाषा पर विरोध
पिछली सुनवाई में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की समिति द्वारा दी गई सिफारिशों को सुप्रीम कोर्ट में स्वीकार किया गया था. इसके मुताबिक, केवल 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों को ही अरावली रेंज का हिस्सा माना जाएगा. इसी फैसले को लेकर विरोध तेज हो गया था और राजस्थान समेत कई जगहों से प्रदर्शन की तस्वीरें भी सामने आ रही हैं.
आज की सुनवाई के दौरान पूछे ये सवाल
सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा कि रिपोर्ट लागू होने से पहले या इस कोर्ट के फैसले को लागू करने से पहले मार्गदर्शन देने के लिए एक निष्पक्ष स्वतंत्र प्रक्रिया की ज़रूरत है, जिसमें इन बातों पर विचार किया जाए.
- क्या अरावली की परिभाषा को 500 मीटर एरिया तक सीमित करने से एक स्ट्रक्चरल विरोधाभास पैदा होता है, जहां संरक्षण क्षेत्र छोटा हो जाता है?
- क्या इससे गैर-अरावली क्षेत्र का दायरा बढ़ा है, जहां रेगुलेटेड माइनिंग की जा सकती है?
- क्या 100 मीटर और उससे ज़्यादा के दो एरिया के बीच के गैप में रेगुलेटेड माइनिंग की अनुमति दी जाएगी और उनके बीच 700 मीटर के गैप का क्या होगा?
- यह कैसे सुनिश्चित किया जाए कि इकोलॉजिकल निरंतरता बनी रहे?
- अगर कोई महत्वपूर्ण रेगुलेटरी कमी पाई जाती है, तो क्या रेंज की स्ट्रक्चरल अखंडता बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण मूल्यांकन की आवश्यकता होगी?
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