Sawan Month In Rajasthan: प्रदेश के अन्य जिलों समेत देश भर में आज सावन मास की धूम शुरू हो गई है और आज सावन मास के पहले सोमवार को भोले के भक्त महादेव का अभिषेक कर पूजा अर्चना करेंगे. इसके उलट वागड़ क्षेत्र के बांसवाड़ा और डूंगरपुर समेत गुजरात और महाराष्ट्र में सावन मास, हरियाली अमावस्या से यानी 15 दिन बाद प्रारंभ होगा. हालांकि अन्य प्रांतों और जिले के शिव भक्त भोले की भक्ति में रम गए हैं. बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले में करीब डेढ़ माह तक शिवालयों में शिव आराधना होती है. आइए जानते हैं क्यों वागड़ क्षेत्र में 15 दिन की देरी से सावन मास शुरू होता है.
15 दिन बाद होती है सावन की शुरुआत
जनजातीय जिले बांसवाड़ा समेत वागड़ क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति और खगोलीय ग्रह-नक्षत्रों की चाल ने यहां हिन्दी महीनों की गणना में स्थानीय धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप अंतर बना लिया है. हालांकि इस अंतर से तीज-त्योहारों की तिथियों पर कोई असर नहीं है. ये समान रूप से मनाए जाते रहे हैं. बांसवाड़ा के अलावा डूंगरपुर, सौराष्ट्र, आधा महाराष्ट्र और पूरे गुजरात में भी 15 दिन बाद ही सावन शुरू होता है. इसलिए यहां के पंडित किसी मुहूर्त या लग्न पत्रिका आदि में आषाढ़ आदि संवत अंकित करते हैं.
ज्योतिषियों के अनुसार हिन्दी महीनों की गणना चन्द्रमा की घटती-बढ़ती कलाओं और उसकी पूर्णता के आधार पर शुक्ल पक्ष व कृष्ण पक्ष की तिथियों का एक चक्र पूरा होने की अवधि से की जाती रही है. ये तिथियां सभी जगह प्रचलित और मान्य हैं. लेकिन वागड़ अंचल में हिन्दी वर्ष का एक महीना श्रावण 15 दिन बाद शुरू होता है. इसका कारण है कि अन्य स्थानों पर पूर्णिमा से पूर्णिमा तक हिन्दी महीनों की गिनती की जाती है, जबकि वागड़ अंचल में अमावस्या से अमावस्या तक. इसी के चलते यह अंतर है.
कर्क रेखा के गुजरने का भी प्रभाव
वागड़ अंचल में सावन माह 15 दिन बाद से शुरू होने के पीछे एक मुख्य कारण सूर्य की गति और कर्क रेखा का यहां से गुजरना भी है. शहर के पंडित व ज्योतिष शास्त्रों का ज्ञान रखने वालों के अनुसार गुरु पूर्णिमा तिथि से सूर्य कर्क रेखा में प्रवेश कर जाता है. इसी तिथि से सभी जगह आषाढ़ माह की विदाई और सावन की शुरुआत हो जाती है, लेकिन वागड़ में इस तिथि के बाद आने वाली पहली अमावस्या यानी हरियाली अमावस्या से सावन की शुरुआत मानी जाती है.
वागड़ पर है गुजरात का प्रभाव
पंडितों के अनुसार इस तिथि से ही वागड़ में हिन्दी साल की गणना होती है. इसके अलावा दूसरा मुख्य कारण यह भी बताते हैं कि संवत 1700 से पूर्व तक वागड़ क्षेत्र मेवाड़ के रजवाड़ों के संपर्क में था.
साढ़े बारह ज्योतिर्लिंग का भी प्रभाव
बांसवाड़ा को लोढ़ी काशी भी कहते हैं. प्रदेश में अकेला वागड़ क्षेत्र ही ऐसा है, जहां साढ़े बारह ज्योतिर्लिंग हैं. जिनमें कागदी स्थित अंकलेश्वर महादेव, वनेश्वर क्षेत्र स्थित वनेश्वर महादेव, नीलकंठ महादेव, धनेश्वर, कालिका माता स्थित रामेश्वर महादेव, राज तालाब स्थित धुलेश्वर महादेव, महल स्थित बिलेश्वर महादेव, नागरवाड़ा में नीलकंठ महादेव, चांदपोल गेट मालीवाड़ा में गुप्तेश्वर महादेव, सिद्धनाथ महादेव जवाहर पुल, त्रयम्बकेश्वर महादेव एमजी अस्पताल के पास, घंटालेश्वर महादेव और अद्र्ध स्वयंभू भगोरेश्वर महादेव महालक्ष्मी चौक स्थित है. इसका आधा शिवलिंग परतापुर के पास भगोरा गांव में है.
पंडित अवध बिहारी ने बताया कि वागड़ क्षेत्र में चन्द्रमा की कलाओं से नहीं, सूर्य की कर्क रेखा में प्रवेश की गति तिथि से हिन्दी महीनों की गणना शुरू होती है. इसी के कारण सावन 15 दिन बाद से शुरू होता है. क्योंकि सूर्य गुरु पूर्णिमा से कर्क रेखा में प्रवेश करता है.