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200 आदिवासी बच्चों की बदलाव यात्रा, कभी नन्हें हाथों में होता था कटोरा... आज है किताबें-बैगपाइप और आत्मसम्मान

उषा मां बताती हैं कि जब उन्होंने पहली बार इन बच्चों को देखा, तो उन्हें भीख नहीं, बल्कि वह बचपन दिखा जो परिस्थितियों के कारण समय से पहले हार मान चुका था. उसी क्षण उन्होंने संकल्प लिया- “भिक्षा नहीं, शिक्षा.” यही संकल्प आज संस्था की पहचान बन चुका है.

200 आदिवासी बच्चों की बदलाव यात्रा, कभी नन्हें हाथों में होता था कटोरा... आज है किताबें-बैगपाइप और आत्मसम्मान

Rajasthan News: राजस्थान-गुजरात की सीमा पर अंबाजी और गब्बर मंदिर की वे सीढ़ियां आज भी वहीं हैं, लेकिन उन सीढ़ियों पर बैठी मासूम आंखें अब नहीं दिखतीं, जो कभी भगवान के नाम पर भीख मांगा करती थीं. कभी जिन नन्हे हाथों में कटोरे थे, आज उन्हीं हाथों में किताबें, बैगपाइप और आत्मसम्मान है. 200 से अधिक आदिवासी बालक-बालिकाओं की यह परिवर्तनकारी यात्रा आज समाज के लिए एक जीवंत संदेश बन चुकी है. इन्हीं बच्चों में से 50 आदिवासी बालिकाओं ने मिलकर देश का पहला आदिवासी बैगपाइप बैंड तैयार किया है. यह बैंड केवल संगीत की प्रस्तुति नहीं, बल्कि गरीबी और लाचारी से बाहर निकलने की सशक्त पहचान है.

इस बदलाव के केंद्र में हैं श्री शक्ति सेवा केंद्र की संस्थापक उषा अग्रवाल, जिन्हें अंबाजी व आसपास के क्षेत्र के आदिवासी बालक-बालिकाएं और उनके परिवार स्नेह पूर्वक “उषा मां” कहकर पुकारते हैं. राजस्थान के झुंझुनू जिले की मूल निवासी उषा अग्रवाल के लिए ये बच्चे केवल आँकड़े नहीं, बल्कि जीवन का उद्देश्य हैं.

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उषा मां ने बच्चों को दिलवाई पहचान

उषा मां बताती हैं कि जब उन्होंने पहली बार इन बच्चों को देखा, तो उन्हें भीख नहीं, बल्कि वह बचपन दिखा जो परिस्थितियों के कारण समय से पहले हार मान चुका था. उसी क्षण उन्होंने संकल्प लिया- “भिक्षा नहीं, शिक्षा.” यही संकल्प आज संस्था की पहचान बन चुका है. इसी सोच के साथ श्री शक्ति सेवा केंद्र द्वारा आदिवासी बालक-बालिकाओं को शिक्षा से जोड़ा गया, उन्हें आवास, संस्कार और आत्मविश्वास दिया गया और संगीत के क्षेत्र में विशेष प्रशिक्षण प्रदान किया गया. इसके परिणामस्वरूप देश का पहला ऐसा बैगपाइप बैंड अस्तित्व में आया, जिसे पूरी तरह आदिवासी बालक-बालिकाएं संचालित कर रही हैं. 

आज यह बैंड जिले व आसपास के क्षेत्रों में विभिन्न सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों में प्रस्तुति दे रहा है. बैगपाइप और अन्य वाद्य यंत्रों की धुनों में अब केवल संगीत नहीं, बल्कि बदली हुई ज़िंदगी की आवाज़ सुनाई देती है. यह आदिवासी महिला है देश में अनेक अवार्ड भी जीत चुकी है.

राजस्थान और गुजरात को भीखमुक्त बनाना

उषा मां का लक्ष्य यहीं तक सीमित नहीं है. उनका सपना राजस्थान और गुजरात को भीखमुक्त बनाना है. इसी दिशा में संस्था द्वारा बच्चों के साथ-साथ आदिवासी परिवारों को भी आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है.
आदिवासी महिलाओं को हस्तशिल्प का प्रशिक्षण देकर रोजगार से जोड़ा जा रहा है, ताकि परिवार आर्थिक रूप से सशक्त बन सकें.

उषा अग्रवाल का कहना है कि अब उनका सपना किसी संस्था या इमारत में नहीं, बल्कि इन्हीं आदिवासी बालक-बालिकाओं की आँखों में बसता है. उनका मानना है कि सही मार्गदर्शन और अवसर मिलने पर हर बच्चा अपने जीवन की दिशा बदल सकता है. अंबाजी क्षेत्र में गूंजती बैगपाइप की धुनें आज यह स्पष्ट संदेश दे रही हैं कि भिक्षा नहीं, शिक्षा ही किसी समाज को सम्मान और भविष्य दे सकती है.

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