
Lakshminath Temple of Jhunjhunu: झुंझुनूं के लक्ष्मीनाथ मन्दिर में जल संरक्षण का अनूठा उदाहरण देखने को मिल रहा है. जहां 106 साल से इस मन्दिर में बारिश का पानी सहेजा जा रहा है और फिर इसी पानी से भगवान का अभिषेक ओर भोग भी होता है. वहीं, झुंझुनूं शहर में होने वाले धार्मिक आयोजन में भी यही से पानी जाता है. मंदिर में सुबह भगवान के स्नान से संध्या आरती तक के सभी परंपरा में कुंड के पानी का उपयोग किया जाता है. यह इसलिए भी खास है क्योंकि कभी शेखावाटी क्षेत्र की सूखी धरती पर पानी की किल्लत होने बात आम बात थी. लेकिन इस मंदिर ने सदियों पुरानी जल संचयन की पारंपरिक तकनीकों को आज भी जीवित रखा है.
विक्रम संवत 1972 में रखी नींव, 4 साल में तैयार हुआ था मंदिर
यहां छत के पानी को नालों से होते हुए मंदिर के नीचे बनाए कुंड में एकत्रित किया जाता है. इसके अलावा मंदिर पुजारी सभी धार्मिक प्रक्रिया, साफ-सफाई और बागवानी में काम लेते हैं. इस मंदिर में भगवान लक्ष्मीनारायण के साथ राम परिवार की प्रतिमाएं और शिव परिवार स्थापित है. मंदिर के व्यवस्थापक रघुनाथ प्रसाद शर्मा ने बताया कि विक्रम संवत 1972 में मंदिर की नींव रखी गई थी. मंदिर का निर्माण पुरा होने में करीब 4 साल लगे.
शुद्ध और देवीय माना जाता है पानी
मंदिर निर्माण के साथ ही लगभग 20 हजार लीटर क्षमता वाले भूमिगत कुंड का निर्माण भी करवाया गया. आज तक मानसून के पानी को संजोएं हुए हैं. व्यवस्थापक बताते हैं कि यह कुंड मंदिर की छत से बारिश का पानी नालियों के जरिए एकत्र करता है. इसे शुद्ध और दैवीय माना जाता है.
7 बार की जाने वाली आरती और प्रसाद में होता है जल का इस्तेमाल
मंदिर के पुजारी कृष्ण व्यास द्विवेदी ने बताया कि दिन भर में 7 बार की जाने वाली आरती और प्रसाद की तैयारी भी इसी जल से होती है. मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को इसी पानी का पंचामृत भी दिया जाता है. जाहिर तौर पर यह एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि जल संरक्षण के साथ पर्यावरण और संस्कृति के साथ सामंजस्य बिठाने की प्रेरणा है. यह परंपरा न केवल जल संरक्षण का संदेश देती है, बल्कि शेखावाटी की जल संचयन की ऐतिहासिक विरासत को भी जीवित रखे हुए है.
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