Notional Voter Card: लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव राष्ट्रीय मतदाता पत्र मतदान ही नहीं, पहचान का वाहक बनकर उभरा है. हालांकि तीन दशक पहले जब आधिकारिक रूप से पूरे देश में इसकी शुरूआत हुई थी, तो इसे चुनावों में दूसरे मतदाता के नाम पर फर्जी मतदान रोकने के लिए किया गया था.
यहां यह जानना दिलचस्प है कि एक बारगी निर्वाचन आयोग ने सोच लिया था कि भारत में मतदाता पहचान-पत्र का इस्तेमाल राष्ट्रीय सत्र पर व्यावहारिक नहीं हो पाएगा, लेकिन आज यह भारत की चुनाव प्रणाली का मुख्य आधार बन चुका है. यह आज मतदाता पहचान-पत्र ही नहीं, निवास प्रमाण के रूप में भी स्वीकार्य हैं.
दो दशक बाद वर्ष 1979 में सिक्किम विधानसभा चुनावों के दौरान चुनाव आयोग ने फोटो पहचान-पत्र जारी किए गए, जिसे बाद में असम, मेघालय और नगालैंड जैसे अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में भी लागू किया गया और वर्ष 1993 में राष्ट्रव्यापी स्तर पर मतदाता फोटो पहचान-पत्र की शुरुआत हुई.
भारत के पहले मुख्य सीईसी सुकुमार सेन को संतोष था कि उनकी सेवानिवृत्ति से पहले 27 नवंबर, 1958 को उनके छोटे भाई व तत्कालीन कानून मंत्री अशोक कुमार सेन ने संसद के निचले सदन में संबंधित विधेयक पेश किया था और 3 दिनों के भीतर विधेयक कानून बन गया.
वर्ष 1962 के लोकसभा चुनावों पर अपनी रिपोर्ट में निर्वाचन आयोग ने (1957 के आम चुनावों के तुरंत बाद) यह सुझाव दिया गया था कि भीड़-भाड़ वाले शहरी क्षेत्रों में फोटो संलग्न पहचान-पत्र जारी करने से मतदान के समय पहचान में काफी आसानी होगी और किसी मतदाता के नाम पर अन्य व्यक्ति द्वारा मतदान करने पर विराम भी लगेगा.
वर्ष 1960 में चुनाव आयोग 8 में से 3 मतदाताओं को ही तस्वीरों वाले मतदाता पहचान-पत्र उपलब्ध नहीं करवा सकी. इसकी मुख्य वजह थी कि बड़ी संख्या में महिला मतदाताओं ने अपनी तस्वीरें पुरुष या महिला छायाकारों से खिंचवाने में आनाकानी की, जिससे महिला मतदाताओं के एक वर्ग को पहचान-पत्र नहीं मिल सका.
वर्ष 1993 में अंततः निर्वाचक फोटो पहचान पत्र पेश किए गए. आयोग ने 2021 में इलेक्ट्रॉनिक ‘इलेक्टोरल फोटो आइडेंटिटी कार्ड' (ई-एपिक) शुरू किया. भारत अपनी 18वीं लोकसभा के लिए आम चुनाव की तैयारी कर रहा है. चुनाव कार्यक्रम के जल्द ही घोषित होने की संभावना है.
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