
Cyber Fraud in Bharatpur: राजस्थान में भरतपुर पुलिस ने आज( शुक्रवार ) एक बड़ी सफलता हासिल की है. जिसमें 400 करोड़ रुपये से अधिक के साइबर ठगी गिरोह का पर्दाफाश किया है. आईजी राहुल प्रकाश के निर्देशन में रेंज कार्यालय की टीम ने इस कार्रवाई को अंजाम दिया. चौंकाने वाली बात यह है कि इस पूरे गोरखधंधे के मुख्य सरगना कोई और नहीं बल्कि एक MBA पास मामा और उसका इंजीनियर भांजा निकले.
देशभर के हजारों लोगों को बनाया अपना शिकार
पुलिस के अनुसार, आरोपियों ने ऑनलाइन गेमिंग ऐप्स और फर्जी निवेश योजनाओं के जरिए देशभर के हजारों लोगों को अपना शिकार बनाया. इस मामले का खुलासा तब हुआ जब फिनो पेमेंट बैंक के एक खाते के खिलाफ 4000 से ज्यादा शिकायतें दर्ज हुईं. इतनी बड़ी संख्या में शिकायतों ने पुलिस का ध्यान खींचा और जांच शुरू की गई.
ठगी की रकम चार फर्जी खातों में गई थी भेजी
जांच में पता चला कि ठगी की रकम चार फर्जी कंपनियों के खातों में भेजी गई थी. ये कंपनियां थीं रुक्नेक, सेल्वाकृष्णा, एसकेआरसी इन्फोटेक और नित्याश्री. पुलिस ने इन कंपनियों के खातों में जमा करीब 14 करोड़ रुपये फ्रीज कर दिए हैं.
फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बनाते थे कंपनियां
आईजी राहुल प्रकाश ने बताया कि मुख्य आरोपियों के नाम पर कई कंपनियां रजिस्टर्ड थीं. ये शातिर अपराधी फर्जी दस्तावेजों के आधार पर कंपनियां बनाते थे और बैंक खाते खुलवाते थे. उन्होंने पेमेंट गेटवे और फर्जी गेमिंग ऐप्स का इस्तेमाल कर करोड़ों रुपये की ठगी को अंजाम दिया.
1000 करोड़ रुपये से ज्यादा की ठगी की जताई आशंका
इस बड़ी कार्रवाई में भरतपुर रेंज की साइबर टीम, धौलपुर साइबर थाना और दिल्ली पुलिस ने मिलकर काम किया. शुरुआती जांच में 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा की ठगी की आशंका जताई जा रही है. फिलहाल, पुलिस ने इस मामले में एक महिला सहित तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है और उनसे पूछताछ जारी है.
मामले का ऐसे हुआ खुलासा
IG राहुल प्रकाश ने बताया कि 6 मार्च, 2025 को धौलपुर साइबर थाने में हरीसिंह नामक पीड़ित ने 1930 पर फिनो पेमेंट बैंक के एक खाते के खिलाफ साइबर फ्रॉड की शिकायत दर्ज कराई थी. पीड़ित की शिकायत की जांच करने पर चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. जिस फिनो पेमेंट बैंक खाते के खिलाफ शिकायत दर्ज थी, उसी खाते के खिलाफ उस समय करीब 3000 शिकायतें दर्ज थीं, जो अब 4000 से भी अधिक हो गई हैं. मामले की गंभीरता को देखते हुए धौलपुर साइबर थाने में तुरंत एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए गए और जांच CI महेंद्र सिंह को सौंपी गई.
चार कंपनियों के खातों में किए थे पैसे ट्रांसफर
जांच में पता चला कि धौलपुर के पीड़ित के 35 लाख रुपये आगे चार कंपनियों के खातों में ट्रांसफर किए गए थे. ये कंपनियां हरियाणा, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में रजिस्टर्ड थीं और इनका मुख्य काम 'स्किल्ड बेस्ड गेम' बताया गया था. पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए इन चारों कंपनियों के बैंक खातों को फ्रीज करवा दिया, जिनमें करीब 14 करोड़ रुपये जमा थे.
मामा-भांजे निकले मास्टरमाइंड
पुलिस की जांच में यह भी सामने आया कि इन फर्जी कंपनियों के पीछे रविंद्र सिंह नामक एक शख्स का दिमाग था, जिसने एमबीए की डिग्री हासिल कर रखी है. उसका भांजा शशी कांत सिंह, जो कि एक इंजीनियर है, तकनीकी रूप से उसकी मदद करता था. इनका तीसारी साथी, शशी कांत उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद का रहने वाला है.
ये तीनों शातिर अपराधी विभिन्न पेमेंट गेटवे पर मर्चेंट आईडी बनवाते थे और ठगी की रकम को अलग-अलग बैंक खातों में घुमाते हुए मुख्य सरगना तक पहुंचाते थे. उन्होंने जिन कंपनियों के पते और बैंक खातों में जानकारी दी थी, उनमें से ज्यादातर फर्जी निकले. यहां तक कि उनके द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे सिम कार्ड भी फर्जी नाम-पते पर लिए गए थे, जिन्हें रविंद्र जानबूझकर उपलब्ध करवाता था. दस्तावेजों का वेरिफिकेशन भी रविंद्र ही करवाता था। पुलिस को यह भी जानकारी मिली है कि ये लोग चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) की सेवाएं भी ले रहे थे.
गरीबों का इस्तेमाल कर बनाते थे कंपनियां
मुख्य सरगना रविंद्र आर्थिक रूप से कमजोर लोगों से जान-पहचान बढ़ाता था और उन्हें पैसे का लालच देकर उनके नाम पर कंपनियां खुलवाता था. और कंपनी को एमसीए (कॉर्पोरेट मामलों का मंत्रालय) से भी रजिस्टर्ड करवाया जाता था. कंपनी के नाम पर बैंक खाता खुलवाकर उसका संचालन खुद रविंद्र करता था. जिन लोगों के नाम पर कंपनी रजिस्टर होती थी और बैंक खाते खुलवाए जाते थे, उन्हें मामूली रकम देकर संतुष्ट कर दिया जाता था,
ऑनलाइन गेमिंग और निवेश के नाम पर ठगी:
कंपनी रजिस्टर होने के बाद ये शातिर अपराधी फर्जी गेमिंग ऐप और निवेश का झांसा देकर लोगों से ठगी करना शुरू करते थे. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर गेम और निवेश के अनगिनत लिंक भेजकर पहले छोटी-छोटी राशि लगवाने का लालच देते थे और जीतने पर राशि खाते में डाल देते थे. और फिर उसे हड़प लेते थे. इस प्रक्रिया में ये पीड़ितों के मोबाइल का एक्सेस भी हासिल कर लेते थे और उसी के नाम से उसी के मोबाइल में आईडी बनाकर फ्रॉड करते थे.
एक कंपनी को एक साल तक ही करते थे इस्तेमाल
पुलिस के अनुसार, ये लोग आमतौर पर एक कंपनी को एक साल से भी कम समय के लिए इस्तेमाल करते थे, जिसके बाद वे दूसरी कंपनी खोल लेते थे और उसके नाम से फ्रॉड शुरू कर देते थे। यह एक सतत प्रक्रिया थी. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि फिनो पेमेंट बैंक खाते पर लगभग 100 कंपनियां रजिस्टर्ड हैं और सभी के खिलाफ 1930 पर शिकायत दर्ज है। जैसे ही किसी कंपनी के खिलाफ शिकायत दर्ज होती थी, वे उसमें लेनदेन बंद करके नई कंपनी में शुरू कर देते थे.
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