Rajasthan Government School News: राज्य के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को लेकर सरकार बड़े-बड़े दावे करती है. लेकिन हकीकत यह है की सरकारी स्कूलों में नामांकन का आंकड़ा पिछले 3 सालों में 95.68 लाख से 80.91 लाख पर पहुंच गया हैं. कोरोना काल के दौरान शिक्षा सत्र 2021-22 में प्रदेश के सरकारी स्कूलों में छात्र-छात्राओं के नामांकन का ग्राफ 95 लाख से ज्यादा हो गया था. लेकिन कोविड-19 के बाद स्थितियां सामान्य होने पर वापस यह आंकड़ा घटकर 80.91 लाख पर पहुंच गया है.
14 लाख से ज्यादा विद्यार्थियों ने छोड़ा स्कूल
शिक्षा विभाग की बेतहाशा कोशिशों के बाद भी सरकारी स्कूलों में नामांकन घट चुका है और यह घटकर बेतहाशा नीचे आ गया है. इतनी कोशिशों के बाद भी ना तो विद्यार्थियों का नामांकन बढ़ रहा है और ना ही सत्र के बीच में स्कूल छोड़कर जाने वाले छात्र-छात्राओं की तादाद कम हो रही है. शिक्षा सत्र 2023-24 में तकरीबन 14 लाख 115 विद्यार्थियों ने बीच सत्र में स्कूल छोड़ दिया. हालांकि अध्यापकों के प्रयास से इनमें से 40% विद्यार्थियों का दाखिला वापस स्कूलों में करवाया गया.
शिक्षकों के 80 हजार से ज्यादा पद खाली
दरअसल वर्तमान में राज्य के स्कूलों में प्रिंसिपल सहित व्याख्याता, सेकेन्ड ग्रेड और थर्ड ग्रेड टीचर्स के बहुत से पद खाली चल रहे हैं. पिछले 3 सालों की डीपीसी बकाया होने के कारण यह पद भरे नहीं जा सके हैं. बच्चों के स्कूल से ड्रॉप आउट होने के तीन कारण सामने आए हैं. पहला कारण है शिक्षकों के पदों का खाली होना. सरकारी स्कूलों में वर्तमान में शिक्षकों के 80000 से ज्यादा पद खाली चल रहे हैं.
6000 स्कूलों में प्रिंसिपल नहीं है. लेक्चरर्स के 21000 पद सेकेन्ड ग्रेड टीचर्स के 33000 पद और थर्ड ग्रेड टीचर्स के 30000 के करीब पद खाली पड़े हुए हैं. इसके अलावा अध्यापकों को गैर शैक्षणिक कार्य में लगाने से भी पढ़ाई पर उनका फोकस कम रहता है और इसकी वजह से पेरेंट्स बच्चों को स्कूल नहीं भेजते हैं.
पूरे साल चलते हैं एडमिशन
दूसरा कारण जो सामने आया है वह यह है कि आठवीं कक्षा में एडमिशन की प्रक्रिया पूरे साल चालू रहती है जिसकी वजह से ड्रॉप आउट का सही आंकड़ा सामने नहीं आ पाता. पूरे शिक्षा सत्र स्कूल में नहीं आने वाले विद्यार्थी भी परीक्षा के दौरान परीक्षा देकर पास हो जाते हैं.
मानसून में खेती करने चले जाते
तीसरे कारण की बात की जाए तो वह है ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा को लेकर जागरूकता की कमी. जागरूकता की कमी की वजह से भी ड्रॉप आउट छात्रों का प्रतिशत काफी बढ़ जाता है. मानसून सत्र के दौरान कई परिवार गांव को छोड़कर खेती करने खेतों में चले जाते हैं और इस दौरान वह अपने बच्चों को भी साथ लेकर जाते हैं. ऐसे बच्चों को भी ड्रॉप आउट की श्रेणी में डाल दिया जाता है.
ये भी पढ़ें- कांग्रेस का आरोप, कोटा में भाजपा के इशारों पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित कर रही पुलिस