
Demand for reservation in private institutions: कांग्रेस ने प्राइवेट स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी में आरक्षण के लिए कानून की मांग की है. कांग्रेस की मांग है कि सरकार देश के निजी, गैर-अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण के लिए कानून लाए. पार्टी के महासचिव जयराम रमेश की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि शिक्षा, महिला, बाल, युवा और खेल संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने अनुच्छेद 15(5) को लागू करने के लिए एक नए कानून की सिफारिश की थी. उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 15(5) सरकार को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उत्थान के लिए कानून के जरिए विशेष प्रावधान करने की अनुमति देता है. इन प्रावधान में अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को छोड़कर सार्वजनिक और निजी दोनों शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण भी शामिल है.
आरक्षण की मांग के पीछे कांग्रेस महासचिव ने दिया ये तर्क
उन्होंने प्रमति एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट' बनाम भारत संघ के 29 जनवरी 2014 के मामले का जिक्र करते हुए बताया, "5 न्यायाधीशों की पीठ ने 5-0 के अंतर से अनुच्छेद 15(5) को पहली बार स्पष्ट रूप से बरकरार रखा. इसका मतलब है कि निजी संस्थानों में भी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े नागरिकों के अन्य वर्गों के विद्यार्थियों के लिए आरक्षण संवैधानिक रूप से स्वीकार्य है.''
जयराम रमेश बोले- 93वें संशोधन में जोड़ा गया अनुच्छेद 15 (5)
रमेश ने कहा कि कांग्रेस ने पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान निजी शिक्षण संस्थानों में संविधान के अनुच्छेद 15(5) को लागू करने के लिए कानून लाने की प्रतिबद्धता जताई थी. उन्होंने कहा, ‘‘शिक्षा, महिला, बाल, युवा और खेल पर द्विदलीय संसदीय स्थायी समिति ने भी उच्च शिक्षा विभाग के लिए अनुदान की मांग पर अपनी 364वीं रिपोर्ट में अनुच्छेद 15 (5) को लागू करने के लिए एक नए कानून की सिफारिश की. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इस मांग को दोहराती है.'' साथ ही कहा कि संविधान (93वां संशोधन) अधिनियम 2005, 20 जनवरी 2006 से लागू हुआ था और इस संशोधन के माध्यम से संविधान में अनुच्छेद 15 (5) को जोड़ा गया.
अशोक कुमार बनाम भारत संघ केस का भी दिया हवाला
जयराम रमेश ने अशोक कुमार ठाकुर बनाम भारत संघ केस का भी हवाला दिया. 10 अप्रैल 2008 के इस मामले का जिक्र करते हुए कहा कि अनुच्छेद 15(5) को केवल सरकार द्वारा संचालित और सरकार से सहायता प्राप्त संस्थानों के लिए संवैधानिक रूप से वैध माना गया. निजी गैर-सहायता प्राप्त संस्थानों में आरक्षण को उचित ढंग से निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया गया है. उन्होंने कहा कि आईएमए बनाम भारत संघ के 12 मई 2011 के मामले में 2-0 के अंतर से निर्णय दिया गया, जिसमें निजी गैर-सहायता प्राप्त गैर-अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए अनुच्छेद 15(5) को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया गया.
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