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Char Dham Yatra: विशेषज्ञों की चेतावनी! अगर ध्यान नहीं दिया तो चार धाम मार्ग पर होती रहेंगी भयावह घटनाएं

राज्य योजना आयोग के पूर्व सलाहकार हर्षपति उनियाल ने कहा, ‘उत्तराखंड के लिए ये ऑल वेदर सड़कें खास तौर से उनके चौड़ीकरण के लिए उपयोग में लाई जा रही गलत तकनीकों के कारण एक त्रासदी बन गई हैं. नदी घाटी संरेखण को सुरक्षित नहीं माना जा सकता. अगर आप ढलानों को छेड़ेंगे तो भूस्खलन जैसी आपदाएं अवश्यंभावी हैं.’

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Char Dham Yatra: विशेषज्ञों की चेतावनी! अगर ध्यान नहीं दिया तो चार धाम मार्ग पर होती रहेंगी भयावह घटनाएं
उत्तराखंड चार धाम.

प्रख्यात पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा ने सोमवार को कहा कि अगर पारिस्थितिक चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया गया तो उत्तरकाशी के सिल्क्यारा में चार धाम मार्ग पर एक निर्माणाधीन सुरंग के आंशिक रूप से ढहने जैसी भयावह घटनाएं होती रहेंगी. चोपड़ा ने पिछले साल ‘चार धाम ऑल वेदर रोड' पर सुप्रीम कोट द्वारा नियुक्त उच्चाधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने समिति के अधिकार क्षेत्र को परियोजना के केवल दो ‘गैर-रक्षा' हिस्सों तक सीमित करने संबंधी शीर्ष अदालत के आदेश पर निराशा व्यक्त की थी. उन्होंने कहा था कि आधुनिक तकनीकी हथियारों से युक्त इंजीनियर ‘हिमालय पर हमला कर रहे हैं'. अपने पत्र में उन्होंने यह भी कहा था कि समिति की भूमिका परियोजना के ‘गैर-रक्षा' राजमार्गों तक सीमित कर दी गयी है. 

'भूस्खलन जैसी आपदाएं अवश्य होंगी'

चारधाम यात्रा मार्ग पर उत्तरकाशी में सिलक्यारा-डंडालगांव के बीच निर्माणाधीन सुरंग के एक हिस्से के ढहने से उसके अंदर 40 श्रमिकों के फंसने के एक दिन बाद चोपड़ा ने कहा कि अगर पारिस्थितिकीय चिंताओं को दूर नहीं किया गया तो ऐसी भयावह घटनाएं होती रहेंगी. ‘चारधाम ऑल वेदर रोड' के निर्माण खासतौर से सड़कों को चौड़ीकरण के लिए अपनाए जा रहे तरीकों पर अन्य विशेषज्ञ भी नाखुश हैं. राज्य योजना आयोग के पूर्व सलाहकार हर्षपति उनियाल ने कहा, ‘उत्तराखंड के लिए ये ऑल वेदर सड़कें खास तौर से उनके चौड़ीकरण के लिए उपयोग में लाई जा रही गलत तकनीकों के कारण एक त्रासदी बन गई हैं. नदी घाटी संरेखण को सुरक्षित नहीं माना जा सकता. अगर आप ढलानों को छेड़ेंगे तो भूस्खलन जैसी आपदाएं अवश्यंभावी हैं.'

2010 के बाद प्राकृतिक आपदाओं में इजाफा

उत्तराखंड गठन के पहले दशक में प्राकृतिक आपदाओं की संख्या बहुत कम थी. वर्ष 2002 में टिहरी जिले के घनसाली क्षेत्र में बादल फटने की एक घटना में 36 व्यक्तियों की मृत्यु हई थी, जबकि 2003 में उत्तरकाशी शहर में वरूणावर्त पहाड़ से हुए भूस्खलन ने भारी तबाही मचाई थी. 2010 के बाद प्राकृतिक आपदाओं की संख्या में बहुत इजाफा हुआ और उसके बाद 2013 में आई केदारनाथ आपदा ने तो मौत और तबाही की विनाश लीला दिखाई. मानसून के दौरान तो प्रदेश में छोटी-बड़ी आपदाएं जब-तब आती रहती हैं. इस साल भी मानसून के दौरान भारी बारिश और उसके कारण आई आपदाओं ने जमकर कहर बरपाया. इस दौरान केदारनाथ और बदरीनाथ राजमार्गों पर दरारें भी आईं जिनके कारण यातायात भी बाधित रहा. चारधाम ऑल वेदर सड़क परियोजना को भी गढ़वाल क्षेत्र में कई जगह नुकसान हुआ. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के अनुसार, इस मानसून में प्रदेश में करीब 1000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.

'जल्दबाजी में आपदा तो आएंगी ही'

इसरो द्वारा पेश किए गए भूस्खलन-क्षेत्र मानचित्र में रूद्रप्रयाग जिले को आपदाओं की दृष्टि से बहुत संवेदनशील दर्शाया गया है. लेकिन सरकार ने इन्हें कम करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाए हैं. केदारनाथ धाम रूद्रप्रयाग जिले में है. साल की शुरुआत में जोशीमठ में भूधंसाव का मामला भी सामने आया था, जहां कुछ निवासियों ने इस समस्या के लिए एनटीपीसी की 520 मेगावाट तपोवन विष्णुगाड पनबिजली परियोजना को जिम्मेदार ठहराया था. उनका कहना था कि इस शहर के पास से गुजर रही परियोजना की हेड रेस भूमिगत सुरंग के कारण शहर के भवनों और रास्तों में दरारें आयीं. इन मुददों को लेकर मुखर रहे सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद चमोली ने कहा कि हिमालय की संवेदनशीलता को देखते हुए विकास परियोजनाओं को अनुमति दिए जाने से पहले उनकी हर पहलु से जांच की जानी चाहिए. उन्होंने कहा, ‘जल्दबाजी में बेतरतीब विकास किया जाएगा, तो आपदाएं तो आएंगी हीं.'

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