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This Article is From Apr 11, 2024

Chaitra Navratri 2024: नवरात्रि के तीसरे दिन राजस्थान के इस मंदिर में उमड़ी भक्तों की भीड़, 36 कौम की आस्था का है केंद्र

36 कौम की आस्था का केंद्र कहे जाने वाले मंदिर में गुरुवार को भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी. नवरात्रि का तीसरा दिन होने के चलते श्रद्धालुओं का तांता लग गया. इस दौरान रावल मल्लीनाथ मन्दिर पर पशुपालकों न भी दर्शन किए.

Chaitra Navratri 2024: नवरात्रि के तीसरे दिन राजस्थान के इस मंदिर में उमड़ी भक्तों की भीड़, 36 कौम की आस्था का है केंद्र
NDTV Reporter

Rajasthan News: श्री राणी रूपादे जी मन्दिर पालियाधाम में चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri 2024) पर्व पर माता के दर्शनों को लेकर श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगी नजर आई. 36 कौम की आस्था का केंद्र पालियाधाम (Paliyad Dham) दिन भर श्रद्धालुओं के जयकारों से गुंजायमान रहा. जहां सैकड़ों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं ने रावल श्री मल्लीनाथ जी व उनकी राणी रूपादे जी के दर्शन कर सुख समृद्धि की कामना की. 

चैत्र नवरात्रि पर्व शुक्ल पक्ष बीज के शुभ अवसर पर श्री रावल मल्लीनाथ जी मंदिर मालाजाल, श्री राणी रूपादे जी मंदिर पालिया एवं श्री रावल मल्लीनाथ जी मंदिर थान मल्लीनाथ तिलवाड़ा में दिल्ली एनसीआर सन्त महामंडल अध्यक्ष व जूना अखाड़ा अंतर्राष्ट्रीय प्रवक्ता तथा दूधेश्वर नाथ महादेव मंदिर गाजियाबाद श्रीमहंत नारायण गिरी, श्री राणी रूपादे मन्दिर संस्थान अध्यक्ष रावल किशनसिंह जसोल एवं कुंवर हरिश्चन्द्रसिंह ने विधि विधान से दर्शन एवं पूजा अर्चना की. इस दौरान महंत नारायण गिरी महाराज ने कहा कि पालिया धाम के दिव्य स्वरूप को निहारा है. 

'रावल साहब के कार्यो में सहयोग देना चाहिए'

महंत नारायण ने कहा, 'सालों पहले यहां राणी रूपादे ने सामाजिक समरसता की सीख दी थी. आज रावल परिवार उनके पदचिन्हों पर चल रहा है. हमें भी उनके साथ जुड़ने की आवश्यकता है. यहां रावल मल्लीनाथ जी और राणी रूपादे जी ने जो आदर्श स्थापित किए हैं, वे हम सभी के लिए प्रेरणादायक हैं. साथ ही कहा कि रावल किशनसिंह जसोल अपनी संस्कृति, पर्यावरण, प्रकृति के संरक्षण व संवर्धन को लेकर कार्य कर रहे है. हमें रावल साहब के कार्यो में सहयोग देना चाहिए.'

'यह सन्तो के समागम का मेला था'

श्री रावल मल्लीनाथ श्री राणी रूपादे संस्थान अध्यक्ष रावल किशनसिंह जसोल ने कहा कि ये भूमि वीर योद्धाओं व महान तपस्वी संतों की है. यहां रावल मल्लीनाथजी ने 700 वर्षों पूर्व सन्तों का समागम करवाया था, जिसमें श्री राणी रूपादे जी के गुरु श्री उगमसी भाटी, गुरु भाई मेघधारूजी, संत शासक महाराणा कुंभा व उनकी रानी (मेवाड़), बाबा रामदेव जी रामदेवरा (पोखरण), जैसल धाड़वी व उनकी रानी तोरल (गुजरात) सहित अन्य समकालीन संतो ने भाग लिया और समरसता, धर्म व सत्य के मार्ग की ज्योत जगाई थी. उन्होंने कहा कि यह मेला सन्तो के समागम का मेला था जो कालांतर में व्यापार बढ़ने के साथ पशु मेला बन कर रह गया. ओर कुछ समय से पशुओं में भी गिरावट आ गई है.

'मेला खत्म होने की ओर आगे बढ़ रहा'

साथ ही बताया कि 15 से 20 वर्ष पूर्व यहां मेले में एक लाख से ज्यादा पशु आते थे. यहां बड़ी संख्या में ऊंट, बेल, गाय व घोड़े आते थे. परंतु आज के समय मे मेले की स्थिति चिंताजनक है. मेला खत्म होने की ओर आगे बढ़ रहा है. आज बहुत दुःख होता है कि मेला किस ओर जा रहा है. समय रहते सरकार का ध्यान इस ओर लग जाए तो निश्चित ही आने वाले समय में इसके बड़े रूप को देख सकते हैं. प्रशासनिक उदासीनता के चलते लगातार मेले का ग्राफ घटता जा रहा है. साथ ही बताया कि संस्थान मेले को पुनर्जीवित करने के कार्य मे लगा हुआ है. आज यहां संस्कृति को जीवंत रखने को लेकर लोक गायकों व कलाकारों के माध्यम से सन्तो की वाणी गाई जा रही है. लुणी नदी में बढ़ते प्रदूषण को लेकर मरु गंगा की आरती कर बचाने का कार्य किया जा रहा है.

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