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Eid-al-Fitr 2024: झालावाड़ की हस्त निर्मित सेवइयां बनी लोगों की पहली पसंद, अमेरिका-कनाडा में भी डिमांड

Sevai: हाथ से सेवइयां बनाना किसी बड़ी कलाकारी से कम नहीं है. मौसम का सही आंकलन, तापमान के अनुसार कच्चा माल तैयार करना एवं कुशल हाथों द्वारा इस काम को अंजाम देना ही, इसकी सफलता का पैमाना है. सारे काम में एक जरा सी भी चूक होने पर पूरी मेहनत और कच्चा माल बेकार हो जाता है.

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Eid-al-Fitr 2024: झालावाड़ की हस्त निर्मित सेवइयां बनी लोगों की पहली पसंद, अमेरिका-कनाडा में भी डिमांड
प्रतीकात्मक तस्वीर.

Rajasthan News: ईद उल फितर का त्यौहार आने वाला है. ऐसे में सेवइयों की बात ना चले यह तो हो ही नहीं सकता. यहां की सेवइयों का जायका काफी मशहूर है. ईद के अवसर पर प्रत्येक मुस्लिम परिवार में सेवइयां बनाई जाती हैं. लोग इस अवसर पर बाजार में सजाई गई दुकानों से सेवइयां खरीदने पहुंचते हैं, किंतु सेवइयों में भी कुछ फर्क होता है. बाजार में अधिकांश सेवइयां मशीनों से बनाई गई मिलती हैं, जबकि हस्त निर्मित सेवइयों की बात ही कुछ अलग होती है. ऐसा भी कहते हैं कि जिन लोगों ने हस्त निर्मित सेवइयों का इस्तेमाल एक बार कर लिया, वह मशीन की सेवइयों को बिल्कुल भी पसंद नहीं करते. 

हाथ से सेवइयां बनाना किसी बड़ी कलाकारी से कम नहीं है. मौसम का सही आंकलन, तापमान के अनुसार कच्चा माल तैयार करना एवं कुशल हाथों द्वारा इस काम को अंजाम देना ही, इसकी सफलता का पैमाना है. सारे काम में एक जरा सी भी चूक होने पर पूरी मेहनत और कच्चा माल बेकार हो जाता है. झालावाड़ शहर में सेवइयां बनाने का काम परंपरागत रूप से चला आ रहा है, किंतु अब इस काम को करने वाली महिलाएं कुछ ही शेष बची हैं जो अपने हाथों से सेवइयां बनाती हैं. महिलाएं कहती हैं कि इस काम में मेहनत बहुत ज्यादा लगती है तथा उत्पादन भी सीमित ही रहता है. ऐसे में उन्हें सही दाम भी नहीं मिल पाता. इन सभी हालातों के चलते अब कुछ ही महिलाएं इस काम को करती हैं. वहीं दूसरी तरफ, यदि देखें तो जिन लोगों को हाथ की सेवइयों का स्वाद लगा हुआ है वह पहले से ही ऑर्डर देकर इन सेवइयों को बनवाते हैं.

झालावाड़ में सेवइयां बनाती हुईं महिलाएं.

झालावाड़ में सेवइयां बनाती हुईं महिलाएं.
Photo Credit: NDTV Reporter

कैसे बनती हैं सेवइयां?

सेवइयां बनाने के लिए कुशल व्यक्ति का होना बेहद जरूरी है, क्योंकि मौसम के अनुसार अलग-अलग अनुपात में सूजी और मैदे को मिला कर, उसमें निश्चित मात्रा में पानी डालकर गलाया जाता है. निश्चित अनुपात और निश्चित मात्रा में पानी डालकर पूरी रात सूजी और मैदा गला दिया जाता है. इसमें हल्की सी मात्रा नमक की भी होती है. उसके बाद अगली सुबह खुले स्थान पर जहां धूप आती हो वहां फर्श बिछाया जाता है और उसके ऊपर मेहंदी के झाड़ जमा दिए जाते हैं. अब शुरू होता है सेवइयां बनाने का काम. सेवइयां बनाने वाली महिलाएं मैदे और सूजी के मिश्रण से लोइयां तोड़ती है तथा उनमें सैंकड़ों बल लगाए जाते हैं. ऐसे में बल लगाते लगाते जब उन लोइयों को खींचा जाता है तो उसमें एक स्थिति ऐसी आती है जब सैकड़ो अलग-अलग तार बनने लग जाते हैं. जैसे ही यह तार बनते हैं तो उन लोइयों को खींचकर अधिकांश लंबाई तक फैलाया जाता है और मेहंदी के झाड़ों पर सुखा दिया जाता है. दिनभर की धूप में यह सेवइयां सूख जाती हैं. इसके बाद इनको मेहंदी के झाड़ो से झड़ाकर अलग कर लिया जाता है. उसके पश्चात छलनी में छान कर मोटी और बारीक सेवाइयों को अलग-अलग किया जाता है, तथा उनकी बादामी रंग आने तक उनकी  धीमी आंच पर सिकाई की जाती है. इस प्रकार से हस्त निर्मित सेवइयां तैयार होती हैं जिनका स्वाद वाकई कमाल का होता है.

विदेश में भी खूब डिमांड

झालावाड़वासियों के ऐसे रिश्तेदार जो विदेशों में रहते हैं वह भी यहां की हस्त निर्मित सेवइयों के दीवाने हैं. ईद का त्यौहार आने से दो-तीन माह पहले से ही सेवइयों की डिमांड आने लग जाती है, और यहां के कई लोग विदेश में रहने वाले अपने रिश्तेदारों को यहां से सेवइयां बनवा कर भिजवाते हैं. झालावाड़ निवासी हबीब खान ने बताया कि उनकी बुआ तथा एक बहन कनाडा रहती हैं जिनको भी यहां की हस्त निर्मित सेवइयां ही पसंद हैं. ऐसे में वह प्रत्येक ईद के त्यौहार पर झालावाड़ से सेवइयां पैक करवा कर कनाडा भी जाते हैं. इसी प्रकार से उनके कई रिश्तेदार सऊदी अरब एवं अन्य देश में बसे हुए हैं, जिनको भी यही से सेवइयां भिजवाई जाती है.

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