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This Article is From Jan 20, 2024

पॉलीहाउस फार्मिंग से लाखों की कमाई, बंजर जमीन से 10 गुना अधिक कमाई कर रहे युवा किसान

सरकार पॉलीहाउस को प्रोत्साहन देने के लिए 70 प्रतिशत से लेकर 95 प्रतिशत तक अलग-अलग मापदंडों के अनुसार सब्सिडी देती है. आज इस आधुनिक तकनीक को अपनाकर किसान अपने जीवन की तस्वीर बदल रहे है.

पॉलीहाउस फार्मिंग से लाखों की कमाई, बंजर जमीन से 10 गुना अधिक कमाई कर रहे युवा किसान
पॉली हाउस फार्मिंग के लिए बनाया गया वाटर टैंक.
TONK:

Polyhouse Farming: भारत एक कृषि प्रधान देश है. हमारे देश की लगभग 70 प्रतिशत आबादी खेती से जुड़ी है. भारतीय समाज हमेशा से ही खेती पर निर्भर रहा है पर आज का युवा अब बदलाव की ओर कदम बड़ाता हुआ नजर आ रहा है. वह परम्परागत खेती के बदले पॉली हाउस, ग्रीन हाउस और आधुनिक संसाधनों से खेती को अब जीवन के सपने साकार करने से जोड़कर देखने लगा है. इसका एक उदाहरण राजस्थान के टोंक जिले से सामने आया है. जहां के युवा किसान पॉली हाउस फार्मिंग से बंजर जमीन पर भी खीरा ककड़ी, शिमला मिर्च और टमाटर के साथ कई तरह की सब्जियों की खेती कर रहे है.

पोली हाउस

पोली हाउस में पानी की सप्लाई बोरबेल के माध्यम से 

टोंक जिले में आज लगभग 150 अधिक पॉली और ग्रीन हाउस में आज का युवा किसान अपने सपनो को साकार करता हुआ नजर आ रहा है. जिसमें किसान पॉली हाउस में अपने खेतों में जलवायु को नियंत्रण कर खीरा ककड़ी, शिमला मिर्च के साथ टमाटर, करेला, मटर, लौकी सहित कई तरह की सब्जियो और फूलों का उत्पादन करता हुआ दिखाई देता है.

जलवायु को नियंत्रण करके किसानों ने कृषि की आधुनिक तकनीकों में पॉलीहाउस, ग्रीन हाउस, शेडनेट हाउस, लो टनल्स, सोलर ऊर्जा का इस्तेमाल, फार्म पौंड के साथ ही पानी की कमी से पार पाने को ड्रिप सिस्टम से सिचाई करना शुरू किया है. जिसमें किसान लगभग 60 प्रतिशत पानी की बचत कर रहा है. वही आज का किसान एक साल में 10 से 15 लाख के बीच सब्जियों की खेती से कमाने लगा है. 

निवाई उपखण्ड के ग्रीन हाउस में खेती करते किसान राजेश कहते है कि इस प्रकार की खेती के माध्यम से आप एक एकड़ में 100 बीघा जितना फायदा ले सकता है. इस प्रकार की खेती में जहां जलवायु नियंत्रण हो जाती है. वही फसलों को कीट पतंगों आदि के प्रकोप से आसानी से बचा सकते है. और सभी पेड़ो ओर बेलो की लंबाई और उत्पादन भी समान होता है.

पॉलीहाउस मतलब फायदे का हाउस 

कृषि विभाग के निदेशक के. के. मंगल के अनुसार टोंक जिले में किसानों में पॉलीहाउस की खेती के प्रति जबरदस्त उत्साह देखने को मिलता है. यही कारण है कि आज का युवा किसान अब कम जमीन पर भी पॉलीहाउस की खेती करके बड़ा मुनाफा कमा रहे है.

पोली हाउस

पोली हाउस में शिमला मिर्च की खेती 

भारत में अलग अलग राज्यो में अलग तरह की जलवायु देखने को मिलती है तो परम्परागत खेती में कई चुनौतियों भी पेश आती है. ऐसे में किसान अपने-अपने क्षेत्रों में जलवायु परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग मौसमों में अलग-अलग फसलें उगाते हैं.

हॉर्टिकल्चर डवलपमेंट सोसायटी

देश में किसानों की कृषि गतिविधियों के निर्भरता मुख्य रूप से मानसून पर निर्भर रहती है. ऐसे में परंपरागत खेती में देश के किसानों को कई बार नुकसान भी उठाना पड़ता है. इन्ही कारणों से आज का किसान अब परम्परागत खेती को छोड़कर बदलाव चाहता है. टोंक जिले में राष्ट्रीय बागवानी मिशन और राजस्थान हॉर्टिकल्चर डवलपमेंट सोसायटी द्वारा दिए जाने वाले अनुदान से अपने जीवन की तस्वीर बदलने में जुटा है.

पॉलीहाउस खेती में, फसलों को एक संरक्षित स्थान पर उगाया जाता है जो फसलों को कीड़ों, बीमारियों और कठोर जलवायु परिस्थितियों के संपर्क में आने से बचाता है.

जानें क्या है पॉलीहाउस खेती

आज के समय में जब जलवायु बदलाव और पानी की कमी एक बड़ी समस्या है. ऐसे में आधुनिक खेती का एक विकल्प पॉलीहाउस खेती कम पानी वाले राज्यो में जल संरक्षण का एक शानदार सफल प्रयोग है. वह पॉलीहाउस खेती के वॉटर हार्वेस्टिंग करने के साथ ही ड्रिप सिंचाई के उपयोग से किसान 40% तक पानी की बचत कर सकता है. वही पॉलीहाउस खेती के माध्यम से खेती को लाभदायक बनाने के लिए पॉलीहाउस खेती कृषि का एक नवीन नवाचार भी है.

पोली हाउस

पोली हाउस के माध्यम से उगाई गई शिमला मिर्च

पॉलीहाउस में किसान जलवायु को नियंत्रित करते हुए उपयुक्त वातावरण में अपनी कृषि गतिविधियों को जारी रखता हैं. खेती का यह नवाचार किसानों को कई लाभ निकालने में मदद करता है. यही कारण है कि आज का युवा किसान टोंक के साथ राजस्थान और पूरे देश में पॉलीहाउस खेती में गहरी दिलचस्पी दिखा रहे हैं क्योंकि यह खेती करने में अधिक लाभदायक है. वही पारंपरिक खुली खेती की तुलना में इसके जोखिम बहुत कम होने के साथ ही यह एक ऐसी विधि है. जिसमें किसान साल के 12 महीने फसल उगाते हुए खेती से लाभ कमाता है. 
           
पॉलीहाउस खेती की लागत और पॉलीहाउस सब्सिडी

पॉलीहाउस के निर्माण की लागत कुछ मापदंडों पर निर्भर करती है कि आपका पॉलीहाउस का सिस्टम किस प्रकार का है.  वही दूसरा और निर्माण क्षेत्र का साइज क्या है.

पॉलीहाउस खेती बदलते समय मे एक लाभदायक विकल्प है. जो किसानों की उत्पादकता और लाभप्रदता बढ़ाने में हरित क्रांति जैसा दिखता है. जिसमे दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी का पेट भरने के लिए हर मौसम में फसलें उगाई जा सकती हैं.

पॉलीहाउस निर्माण के लिए एक स्वस्थ अनुमान निम्नलिखित होगा

1. कम तकनीक वाला पॉलीहाउस बिना पंखे की व्यवस्था या कूलिंग पैड के - 400 से 500 वर्ग मीटर
2. मध्यम प्रौद्योगिकी पॉलीहाउस जिसमें कूलिंग पैड और ड्रेनिंग पंखे सिस्टम हैं जो स्वचालित नहीं होंगे - 900 से 1,200 वर्ग मीटर
3. पूरी तरह से स्वचालित नियंत्रण प्रणाली के साथ उच्च तकनीक वाला पॉलीहाउस - 2,500 से 4,000 वर्ग मीटर

एक पॉलीहाउस के लिए क्या चाहिए

पॉली हाउस खेती के लिए किसान का खेत जिसमे वह कार्य करने वाले लोगो के लिए एक मकान या शेड निर्माण जरूरी है. वही खेत मे कुआं, ट्यूवेल ओर फार्मपाण्ड होना जरूरी है. वही स्प्रिंकलर या ड्रिप सिंचाई प्रणाली से यह खेती आसानी से की जा सकती है.

एक पॉलीहाउस का निर्माण 2500 वर्ग मीटर से 4000 वर्ग मीटर के बीच होता है. यह खेती किसानों को कठोर जलवायु परिस्थितियों से बचाने के लिए लाभदायक है. जो की सभी मौसमों में  लाभदायक फसलों को उगाने में सहायक है, पॉलीहाउस खेती का विकास हुआ है.

पॉलीहाउस खेती को बढ़ावा देने के लिए, सरकार किसानों को पॉलीहाउस सब्सिडी प्रदान करती है, जिससे पॉलीहाउस खेती पर स्विच करने के लिए उनका जेब खर्च बहुत कम हो जाता है. पॉलीहाउस खेती के लाभ और लाभ इतने अधिक हैं कि किसान इस प्रथा को तेजी से अपना रहे हैं और बहुत अधिक लाभ कमा रहे हैं. इसे बाकी किसानों को अपनाना चाहिए ताकि पॉलीहाउस खेती का लाभ हर किसान तक पहुंचे इसलिए, पॉलीहाउस खेती को एक नई विश्व तकनीक के रूप में देखा जा सकता है. जिसमें किसानों को फसलों के निर्माण की लागत से लाभ होता है और इसलिए, उनके फसल उत्पादन में वृद्धि होती है.

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