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This Article is From Nov 10, 2023

धनतेरस पर जैसलमेर के लक्ष्मीनाथ मंदिर में उमड़ा आस्था का जनसैलाब, पांच दिवसीय दीपोत्सव का हुआ आगाज

Dhanteras Shubh Muhurt 2023: जैसलमेर का रियासतकालीन नाम जैसाण है. यहां के निवासी भगवान लक्ष्मीनाथ को अपना आराध्य देव मानते हैं. सोनार दुर्ग स्थित नगर आराध्य देव लक्ष्मीनाथ मंदिर के दरबार में धनतेरस पर मंगला आरती और पूजा-अर्चना के साथ ही पांच दिवसीय दीपोत्सव का आगाज हुआ.

धनतेरस पर जैसलमेर के लक्ष्मीनाथ मंदिर में उमड़ा आस्था का जनसैलाब, पांच दिवसीय दीपोत्सव का हुआ आगाज
भगवान लक्ष्मीनाथ

Dhanteras 2023 Date and Time: जैसलमेर में धनतेरस का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. लोग इस दिन भगवान लक्ष्मीनाथ जी की पूजा अर्चना कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं. प्रकाश पर्व की आज शुरुआत में आज सुबह से दुर्ग स्थित नगर अराध्य लक्ष्मीनाथ मंदिर में अल सुबह 3.30 बजे से मंदिर में भारी भीड़ लगनी शुरू हो गई. सुबह मंदिर के कपाट खुलने के साथ ही मंगला आरती हुई. सुबह से मंदिर में लंबी-लंबी कतारे लगनी शुरू हो गईं और मंदिर में भक्तों की भारी उमड़ पड़ी. आज दिन भर मंदिर परिसर में भक्तों का तांता रहेगा.

आज धर्म और श्रद्धा के इन्हीं रंगों से रूबरू होने के लिए इसी श्रद्धा में जैसलमेर के सोनार दुर्ग से 800 साल से लक्ष्मीनाथ जी मंदिर है जिसकी लोगों में गहरी आस्था है. धनतेरस के अवसर पर आज बच्चे, महिलाएं और वृद्धजनों के लक्ष्मीनाथ मंदिर में उमड़ा आस्था का ज्वार उमड़ पड़ा. भक्तगण सुख समृद्धि की कामना कर रहे हैं. आज सभी धनतेरस पर भगवान लक्ष्मीनाथ जी से धन की कामना और व्यापार में वृद्धि की कामना करते हैं.

महारावल के राजा 

लक्ष्मीनाथ (लक्ष्मी एवं विष्णु), यहां धन, यश, सुख एवं शांति के प्रतीक के रूप में पूजनीय है और इस मंदिर का इतिहास एवं स्थापत्य कला बेजोड़ है. जैसलमेर के चन्द्रवंशी भाटी महारावल लक्ष्मीनाथजी को राज्य का मालिक तथा स्वयं को राज्य का दीवान मानकर शासन किया करते थे. राज्य के समस्त पत्र व्यवहार, अनुबंधन व शिलालेखों पर सर्वप्रथम लक्ष्मीनाथजी शब्द लिख कर शुभारंभ करने की परंपरा रही है.

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प्रसाद के रूप में चढ़ता है पेड़ा

लोग व्यावसायिक गतिविधियां शुरू करने से पूर्व लक्ष्मीनाथजी से मन्नत मांगते थे. जब मन्नत पूर्ण हो जाती थी तब लोग भगवान लक्ष्मीनाथ के चरणों में खुलकर बहूमूल्य श्रद्धासुमन अर्पित करते थे. शाकद्वीपीय भोजक ब्राह्मण मसूरिया सेणपाल के वंशज इसके पुजारी है. मंदिर सुबह और सायं खुलता है. दिन में कुल पांच आरतियां की जाती हैं. परंपरानुसार लक्ष्मीनाथजी को प्रसाद के रूप में दूध के मावे का पेड़ा चढ़ाया जाता है.

600 साल से ज्यादा प्राचीन मंदिर

दुर्ग में बने लक्ष्मीनाथ मंदिर का निर्माण महारावल बेरसी के राज्यकाल में माघ शुक्ल पंचमी शुक्रवार अश्वनी नक्षत्र में विक्रम संवत 1494 को हुई थी. लक्ष्मीनाथ जी की मूर्ति सफेद संगमरमर में तराशी हुई है, इसका मुख पश्चिमी दिशा की ओर है तथा घुटने पर अद्र्धांगिनी देवी लक्ष्मी विराजमान है. मूर्ति का सिर, कान, हाथ, कमर, पांव स्वर्णाभूषणों एवं विविध वस्त्रों आदि से सजे संवरे है. मूर्ति में भगवान लक्ष्मीनाथ एवं माता लक्ष्मी का स्वरूप मारवाड़ी सेठ-सेठानी सरीखा दिखता है. बहुमूल्य रतनों, सोने चांदी के बर्तनों, आभूषणों से लक्ष्मीनाथ जी का भंडार भरा है. मंदिर की संपन्नता का मुख्य कारण स्थानीय सेठों द्वारा आय का कुछ भाग नियमित चढ़ावा रहा है.

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