
राजस्थान का नाम लेने पर मन में आमतौर पर रेगिस्तान की छवि उभर कर आती है, पर इस राज्य में एक शहर ऐसा भी है, जहां रेत के बियाबान टीलों के बजाय पहाड़ी सौंदर्य की छटा दिखाई देती है. यह शहर है बूंदी, जिसका एक अलग ही आकर्षण है. तीन दिशाओं में अरावली की पहाड़ियों से घिरी एक खूबसूरत घाटी के रूप में बसा यह शहर रेगिस्तान के बीच नखलिस्तान जैसा दिखता है.
'परिंदों के स्वर्ग' में वन्य जीवन की झलक
अपने प्राकृतिक सौंदर्य के चलते बूंदी पक्षियों के लिए एक पसंदीदा सैरगाह सा है और इसी कारण इसे "परिंदों का स्वर्ग" भी कहा जाता है. वन एवं वन्य जीवो से समृद्ध बूंदी जिले में रणथंभौर बाघ परियोजना, मुकुंदरा टाइगर रिजर्व, रामगढ़ विषधारी वन्य जीव अभ्यारण्य, चंबल घड़ियाल अभ्यारण्य व जवाहर सागर अभ्यारण्य जैसे दर्शनीय स्थल हैं, जो प्रकृति प्रेमियों और सैलानियों को खूब लुभाते हैं. यहां की रतन सागर और जैत सागर झीले भी परिंदों को देखने का अच्छा ठिकाना हैं.
जलाशयों और पहाड़ों के बीच मौजूद हैं कई बांध
पहाड़ियों से घिरा होने और कई जलाशयों के कारण बूंदी कई बांधों वाला शहर भी है. इनमें अभय पुरा बांध, बरधा बांध, गुढा बांध, इंद्राणी बांध, कनक सागर बांध, नारायणपुर बांध, राम सागर बांध शामिल हैं. इसके अलावा बूंदी अपनी संस्कृति, लोक परंपराएं और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए भी जाना जाता है. अपनी सांस्कृतिक विरासत के चलते बूंदी को 'छोटी काशी' या 'राजस्थान की काशी' भी कहा जाता है. बूंदी का दक्षिणी पूर्वी भाग बावन बयालीस कहलाता है, जबकि पश्चिमी क्षेत्र में हाड़ा चौहानों का प्रभुत्व होने के कारण इसे 'हाड़ौती' कहा जाने लगा.
दर्जनों दर्शनीय स्थलों वाला शहर
वन्य जीवों और प्राकृतिक सौंदर्य के चलते बूंदी पर्यटकों का एक पसंदीदा शहर है. इसके अलावा यहां बड़ी संख्या में ऐसे दर्शनीय स्थल हैं, जिन्हें देखने पर्यटक दूर-दूर से यहां आते हैं. बूंदी के प्रमुख पर्यटन स्थलों में बिजासन माता का मंदिर, केशवरायजी का मंदिर, धाबाई छतरी, 84 खंभों की छतरी या मुंसी रानी की छतरी, रानी जी की बावड़ी, चित्रशाला, शिकार बुर्ज, मोतीमहल संग्रहालय, केशरबाग (क्षार बाग ), सुखमहल, रतन दौलत दरीखाना और बूंदी का किला शामिल हैं.
बूंदी चित्रकला शैली है दुनिया भर में मशहूर
ऐतिहासिक विरासतों के साथ ही बूंदी अपनी विशेष चित्रकला के लिए भी प्रसिद्ध है. इस कारण बूंदी को भित्ति चित्रों का स्वर्ग भी कहा जाता है. बूंदी चित्रशैली का का आरंभ सुर्जन सिंह हाड़ा के शासन काल से माना जाता है. उम्मेदसिंह के शासन काल में निर्मित चित्रशाला संग्रहालय बूंदी चित्रशैली का श्रेष्ठ उदाहरण है. बूंदी शैली में सर्वाधिक पशु-पक्षियों का चित्रण हुआ है. इसलिए इसे पक्षी शैली भी कहते हैं. इसमें कदली, आम व पीपल के वृक्षों के साथ-साथ फूल-पत्तियों और बेलों को प्रमुखता से चित्रित किया गया है. इस शैली का स्वर्णकाल राव सुरजन सिंह हाडा के शासन काल को माना जाता है. मलाल एवं सुर्जन बूंदी चित्रशैली के प्रमुख चित्रकार थे. मुगल काल में बूंदी चित्रकला पर मुगल प्रभाव बढ़ काफी बढ़ गया था.
मीणा और हाड़ा शासकों से जुड़ा है इतिहास
बूंदी की स्थापना सन् 1242 ई. में राव देवाजी ने की थी. बूंदी का यह नाम यहां के मीणा शासक 'बूंदा' के नाम पर पड़ा. हाडा शासक राव देवा ने बूंदा को हराकर बूंदी पर अपना कब्जा कर लिया फिर इसे अपनी राजधानी बनाया. मुगल काल में यहां के शासक राव सुर्जन हाड़ा ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी. शाहजहां के समय में बूंदी के शासक छत्रसाल हाड़ा ने शाहजादे दारा शिकोह की ओर से धरमत की लड़ाई में भाग लिया था, किंतु वह इस युद्ध में मारा गया. बूंदी के राजा विष्णु सिंह ने ईस्ट इंडिया कम्पनी के साथ सहायक संधि की थी, सन 1947 में भारत के स्वतंत्र होने तक बूंदी एक स्वतंत्र रियासत के रूप में कायम रहा. सती प्रथा पर पहली बार रोक 1822 ईस्वी में बूंदी रियासत ने लगाई थी.
बूंदी एक नजर में
- भौगोलिक स्थिति - 24 डिग्री 54 मिनट से 25 डिग्री 53 मिनट उत्तरी अक्षांश तक और 75 डिग्री 19 मिनट से 76 डिग्री 19 मिनट 30 सेकंड पूर्वी देशांतर तक
- क्षेत्रफल - 5776 वर्ग किलोमीटर
- जनसंख्या - 11,10,906
- जनसंख्या घनत्व - 192
- लिंगानुपात - 925
- साक्षरता दर - 61.5%
- तहसील - 6 (बूंदी, नैनवा, तलेरा, हिंडोली, केशवरायपाटन, इंदरगढ़)
- उपखंडों की संख्या - 5
- ग्राम पंचायतों की संख्या - 181
- पंचायत समितियों की संख्या - 7
- विधानसभा क्षेत्र - 3 ( बूंदी, केशवरायपाटन, हिंडोली)