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World Tribal Day: 31 साल पहले हुई हत्या, कैसे बनी 'मीणा हाईकोर्ट' के बनने की वजह? आदिवासी दिवस पर इकट्ठा होते हैं हजारों लोग 

 'मीणा हाईकोर्ट' को मीणा समुदाय एक समानांतर न्यायिक संस्थान के रूप में देखता है. 2018 में यहां आलीशान इमारत का निर्माण किया गया और हर साल 9 अगस्त को आदिवास समुदाय के लोग, हर पार्टी के राजनेता, समाज के गणमान्य से लेकर सामान्य लोग इकट्ठा होते हैं. आज 'मीणा हाई कोर्ट' राजस्थान के मीणा समुदाय के लिए एकता का पर्याय बन गया है. 

World Tribal Day: 31 साल पहले हुई हत्या, कैसे बनी 'मीणा हाईकोर्ट' के बनने की वजह? आदिवासी दिवस पर इकट्ठा होते हैं हजारों लोग 
हर साल विश्व आदिवासी दिवस के दिन मीणा समुदाय के लोग 'मीणा हाईकोर्ट' में इकट्ठा होते हैं

Meena High Court Rajasthan: आज विश्व आदिवासी दिवस है. दुनिया भर में आदिवासी समुदाय अपनी संस्कृति, पहचान और जल-जंगल-जमीन को बचाने का प्रण लेता है. राजस्थान में भी आदिवासी समुदाय आज के दिन को बड़े उल्लास के साथ मनाता है. हजारों की संख्या में आदिवासी मीणा समुदाय के लोग दौसा के नांगलियावास गांव में बने 'मीणा हाई कोर्ट' में जमा होते हैं. यहां वो समुदाय के आंतरिक मुद्दों और मसलों पर विचार विमर्श करते हैं. जाजम बैठाते हैं, आपसी झगड़ों को मिल बैठ कर सुलझाते हैं.  राजस्थान के मीणा समुदाय में इस जगह का महत्वपूर्ण स्थान है.

लेकिन इसकी दागबेल कैसे डाली गई और इसका विचार कहां से आया इसकी कहानी भी दिलचस्प है. जिससे जानने के लिए आइये आपको लिए चलते हैं 31 साल पहले साल 1993 में. 

31 साल पुरानी घटना, जिसके बाद रखी 'मीणा हाईकोर्ट' की नींव 

16 जुलाई 1993 को दौसा जिले के चूड़ियावास में भयानक घटना घटी थी. इस घटना ने दौसा जिले के नांगल प्यारीवास गांव को प्रदेशभर के मीणा समुदाय में चर्चित कर दिया. दरअसल साल 1993 में एक विवाहित महिला ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर खुद के पति की हत्या कर दी और शव को खेतों में फेंक दिया. महिला का नाम प्रेमा देवी उसके पति का नाम घासी और प्रेमी का नाम भगवान राम था. मृतक के परिजनों ने नांगल राजावतान पुलिस स्टेशन में प्रेमा देवी और भगवान राम के खिलाफ मामला दर्ज करवाया लेकिन आरोपियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.  

ऐसे में मीणा समाज के पंचों ने आरोपियों के खिलाफ खाप पंचायत बैठा दी. महिला और उसके प्रेमी को पकड़ा गया. उनके चेहरे पर कालिख पोती, उन्हें गधे पर बैठा कर जुलूस निकाला गया. पुलिस को इस घटना की खबर लगी और जैसे ही यह जुलूस नांगल प्यारीवास पहुंचा पुलिस ने जुलूस में शामिल कई पंचों को गिरफ्तार कर लिया. 

50 हजार लोगों ने घेर ली थी दौसा कलेक्ट्रेट 

पुलिस की इस कार्रवाई से मीणा समुदाय में रोष फैल गया. पंचों की रिहाई के लिए राजस्थान हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई, लेकिन कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया. उसके बाद इस घटना ने आंदोलन का रूप ले लिया. भाजपा नेता किरोड़ीलाल मीणा उस समय युवा थे. उन्होंने काल दी कि इन गिरफ्तारियों के खिलाफ दौसा में कलेक्ट्रेट की और कूच किया जाएगा. अगले ही दिन करीब पचास हजार मीणा समुदाय के लोग के लोग दौसा कलेक्ट्रेट पहुंच गए, जिसमें 15 हजार महिलाएं शामिल थीं. सरकार पर दबाव बढ़ा और समाज के पंचों को रिहा करना पड़ा.  

आदिवासी मीणा समुदाय के एकता की मिसाल है 'मीणा हाईकोर्ट'

इस घटना की परिणित यह हुई कि मीणा समुदाय ने अपना अलग 'हाई कोर्ट' बना लिया, ताकि समाज के अंदरूनी मामलों को सरकार के पास ले जाने से पहले उसे जाजम पर बैठ कर सुलझा लिया जाए. 'मीणा हाईकोर्ट' को मीणा समुदाय एक समानांतर न्यायिक संस्थान के रूप में देखता है. 2018 में यहां आलीशान इमारत का निर्माण किया गया और हर साल 9 अगस्त को आदिवास समुदाय के लोग, हर पार्टी के राजनेता, समाज के गणमान्य से लेकर सामने लोग इकट्ठा होते हैं. आज 'मीणा हाई कोर्ट' राजस्थान के मीणा समुदाय के लिए एकता का पर्याय बन गया है. 

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