
Foundation day of Nagaur: नागौर स्थापना दिवस की पूर्व संध्या पर नागौर के सेठ किशन लाल कांकरिया स्कूल के मैदान में निजी तौर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस अवसर पर देश प्रदेश के नामचीन कलाकारों ने दी रंगारंग प्रस्तुति शहर वासियों ने कार्यक्रम का लुत्फ उठाया. हालांकि, इस बार हर साल की तरह नागौर प्रशासन द्वारा पहलगाम में हुई आतंकवादी घटना के मद्देनज़र नागौर का स्थापना दिवस नहीं मनाया गया है.
नागौर की स्थापना को लेकर अलग-अलग जानकारियां अब तक इतिहास में सामने आती रही है परंतु मुख्य तौर पर अगर इतिहासकारों की माने तो नागौर राजस्थान की स्थापना अक्षय तृतीया पर हुई थी. नागौर को बसाने का दिन आखातीज 1553 था. नागौर का स्थापना दिवस अक्षय तृतीया को मनाया जाता है.
कई जगह नागौर की स्थापना के कुछ साक्ष्य बताते हैं कि नागौर की स्थापना महाभारत काल में हुई थी और तब इसे अहिछत्रपुर नगरी के नाम से जाना जाता था. आखातीज पर नागौर शहर का स्थापना दिवस मनाया जाता है.
किले की नींव 1154 ई. में रखी गयी थी
नागौर का निर्माता चौहान शासक सोमेश्वर के सामंत कैमास को माना जाता है. किले की नींव 1154 ई. में रखी गयी. जिसके उजड़ने के बाद दूसरी शताब्दी में दुबारा नागवंशियों ने नागौर का किला बनवाया और उसका पुनः निर्माण मोहम्मद बाहलीम जो गज़निवेट्स के गवर्नर थे उन्होंने करवाया ऐसी भी जानकारी मिलती है. जिसकी वजह से नागौर की स्थापना को लेकर विभिन्न अवधारणाएं प्रचलित हैं अतः निश्चित तौर पर कुछ भी कह पाना बेमानी होगा.

अहिच्छत्रपुर: नागौर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत
नागौर को लेकर मौसम के अनुसार कहावत है “सियाळे खाटू भली, उनाले अजमेर नागिनों नित रो भालो सावण बीकानेर...” राजस्थान की धरोहरों में एक ऐसा नगर भी है जिसकी पहचान सिर्फ किले या मेले तक सीमित नहीं, बल्कि उसकी आत्मा में बसी है शौर्य, परंपरा और संस्कृति. नागौर को प्राचीनकाल में अहिच्छत्रपुर कहा जाता था.
महाभारत काल से जुड़ी है जड़ें
इतिहासकारों के अनुसार नागौर की नींव नाग वंश के राजाओं ने रखी थी. “अहिच्छत्र” यानी सर्प की छाया — नाम ही इस नगर की उत्पत्ति और आध्यात्मिक गहराई को दर्शाता है. पुराणों और महाभारत के श्लोकों में इस भूमि का उल्लेख आता है. भीष्म पितामह और अन्य योद्धाओं के प्रसंगों में नाग जाति और उनके नगरों की मौजूदगी इस क्षेत्र की ऐतिहासिक प्रामाणिकता को सिद्ध करती है.
राजवंशों की रणभूमि रहा नागौर
8वीं से 15वीं शताब्दी के मध्य नागौर ने कई शासकों को आते-जाते देखा. गुर्जर-प्रतिहार, चौहान वंश, और अंततः दिल्ली सल्तनत — सबने इस भूमि को कभी रणभूमि तो कभी सांस्कृतिक केंद्र के रूप में देखा. यहाँ स्थित अहिच्छत्र दुर्ग आज भी उस काल की स्थापत्य कला और सैन्य रणनीति का जीवित उदाहरण है.

मुग़ल-राठौड़ युग: रणनीति और सम्मान का संगम
मुग़ल साम्राज्य के काल में नागौर ने एक प्रमुख प्रशासनिक और सैन्य केंद्र के रूप में कार्य किया. बाद में यह मारवाड़ रियासत में सम्मिलित हुआ और राठौड़ राजाओं के संरक्षण में इसकी राजनीतिक महत्ता और भी बढ़ी जो कि अब तक जोधपुर दरबार के अधीन है.
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