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राजस्थान में सरकारी नौकरी का मोह मिटाना जरूरी

Ashok Chaudhary
  • विचार,
  • Updated:
    अप्रैल 07, 2025 17:48 pm IST
    • Published On अप्रैल 07, 2025 17:14 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 07, 2025 17:48 pm IST
राजस्थान में सरकारी नौकरी का मोह मिटाना जरूरी

Jobs: राजस्थान में बीजेपी सरकार ने हाल ही में 53 हजार सरकारी नौकरियों के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू की है. ये सभी चतुर्थ श्रेणी की नौकरियां हैं. ऐसे ही और भी घोषणाएं और भर्तियों की शुरुआत हुई है. लेकिन इसके साथ सरकार को भर्तियों की प्रक्रिया को समयबद्ध तरीके से पूरा करने की व्यवस्था बनानी चाहिए. जैसे, यदि 53 हजार चतुर्थ श्रेणी के पदों के लिए भर्तियां निकाली गईं, तो फॉर्म भरने के साथ परीक्षा की तिथि, रिजल्ट घोषणा की तिथि और ज्वाइनिंग की तिथि की भी घोषणा की जानी चाहिए.

यदि ये सारी प्रक्रिया समयबद्ध होगी तो इससे चीज़ें नहीं उलझेंगी और ये स्पष्ट रहेगा कि अगले 7-8 महीनों में प्रक्रिया पूरी हो जाएगी. अगर ऐसा हो जाता है तो 53 हजार युवाओं को नौकरियां मिल जाएंगी, और जो नहीं चुने गए उनके लिए भी आगे का रास्ता स्पष्ट रहेगा. जो अभ्यर्थी दोबारा परीक्षाएं दे सकते हैं, वो फिर से तैयारी कर सकेंगे. और ऐसे युवा जिनका सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन का यह आखिरी प्रयास था, वो प्राइवेट नौकरियां तलाश करने में जुट जाएंगे.

लेकिन, होता ये है कि भर्तियों की प्रक्रिया कई बार वर्षों तक चलती रहती है. परिणाम निकलने के बाद भी वो अदालतों में फंस जाती हैं. जैसे, वर्ष 2022 में शिक्षकों की भर्तियां शुरू हुई थीं, एल-1 और एल-2 स्तर की. लेकिन, एल-2 की भर्ती का मामला अभी भी अदालत में अटका हुआ है. भर्ती प्रक्रिया में इस तरह का विलंब अत्यंत दुखदायी होता है.

कई बार कंपनियां अपने ब्रांड का प्रचार करने के लिए सरकार के साथ सहमति पत्रों (एमओयू) पर तो हस्ताक्षर कर देती हैं, लेकिन जब परियोजनाओं को धरातल पर उतारने की बारी आती है तो वो पीछे हट जाती हैं.

सरकारी नौकरियां अपर्याप्त

हालांकि, एक बड़ा मुद्दा ये भी है कि सरकार के साधन सीमित होते हैं, और वो सबको सरकारी नौकरी नहीं दे सकती. इसका समाधान ये हो सकता है कि प्रदेश में उद्योग-धंधों का विकास किया जाए जिससे लोगों को नौकरियां दी जा सकें. जैसे, हाल ही में सरकार ने राइजिंग राजस्थान समिट किया जिसमें कंपनियों के साथ बड़े करार किए गए. लेकिन, उनके पालन की भी व्यवस्था होनी चाहिए. जिन कंपनियों के साथ भी एमओयू पर दस्तख़त किए गए हैं, उनसे कहा जाना चाहिए कि वो धरातल पर काम शुरू करें.

ऐसा इसलिए ज़रूरी है क्योंकि पहले भी ऐसे समिट हुए हैं जब कंपनियों ने सरकार के साथ एमओयू तो किया लेकिन धररात पर काम शुरू नहीं हो सका. इसलिए ऐसी कंपनियों के साथ एमओयू करने के साथ गारंटी सिक्योरिटी मनी भी ली जानी चाहिए.

अशोक गहलोत की सरकार के कार्यकाल में भी रोजगार मेले लगते थे (File)

अशोक गहलोत की सरकार के कार्यकाल में भी रोजगार मेले लगते थे (File)
Photo Credit: ANI

कई बार कंपनियां अपने ब्रांड का प्रचार करने के लिए सरकार के साथ सहमति पत्रों (एमओयू) पर तो हस्ताक्षर कर देती हैं, लेकिन जब परियोजनाओं को धरातल पर उतारने की बारी आती है तो वो पीछे हट जाती हैं. पिछली अशोक गहलोत सरकार में भी इसी प्रकार से एमओयू हुए थे. इस बार भी लंबे-चौड़े वादे किए गए हैं. अगर ये योजनाएं धरातल पर उतर जाएंगी तो लाखों युवाओं को रोजगार मिल सकेगा.

इससे सबसे बड़ा लाभ ये होगा कि सरकार पर नौकरियां देने का दबाव कम होगा और युवाओं को भी रोजगार मिल सकेगा. जो युवा बार-बार नौकरियों के लिए सरकार का मुंह देखते हैं, उनके सामने प्राइवेट नौकरियों में जाने का भी विकल्प रहेगा. चूंकि राजस्थान में प्राइवेट नौकरियों की कमी है, इसलिए युवाओं को दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है.

गांवों पर ध्यान देना ज़रूरी

हालांकि, इसके बाद भी बेरोजगारी शत-प्रतिशत नहीं खत्म हो जाएगी. लेकिन, इनकी संख्या बहुत कम हो जाएगी. उदाहरण के लिए, अगर एक परिवार में तीन लोग बेरोजगार हैं, और दो लोगों को नौकरियां मिल जाती हैं, तो दोनों नौकरीशुदा लोगों की मदद से तीसरे बचे हुए बेरोजगार के जीवन-यापन की भी व्यवस्था हो सकती है.

इसके साथ ही, जिस तरह से शहरों में रोजगार मेले लगाए जाते हैं, उसी प्रकार से गांवों में भी मेले लगाए जाने चाहिए. शहरों के बच्चों और युवाओं में जागरूकता ज्यादा होती है, और उन्हें एक अंदाजा होता है कि सरकारी नौकरियों के अलावा भी कई तरह के रोजगार होते हैं. शहरों में लोग बाहर निकलते हैं और अपने अड़ोस-पड़ोस में लोगों को कई तरह की नौकरियां करते देखते हैं, तो उन्हें अलग-अलग तरह की नौकरियों के बारे में पता होता है.

लेकिन, गांवों में नौकरी करनेवाले ज्यादातर लोग सरकारी नौकरियां ही करते हैं. प्राइवेट नौकरियों के लोग कम मिलते हैं. इससे गांव के माहौल में पले-बढ़े बच्चों और युवाओं को पता नहीं चल पाता कि वो 10वीं या 12वीं पास करने के बाद क्या करेंगे. वो अगर प्राइवेट नौकरियों के लिए भी आवेदन करते हैं तो उन्हें पता नहीं होता कि इसके लिए क्या कौशल होना चाहिए. इसके समाधान के लिए गांवों के सरकारी स्कूलों में भी सुधार होना चाहिए जिससे युवाओं को निजी नौकरियों की अपेक्षाओं का अंदाज रहे.

सरकार के बेरोजगारों का बैंक बनाने से दोहरे लाभ होंगे. सरकार इसके लिए बहुत मामूली शुल्क भी ले सकती है. इससे सरकार को कमाई भी होगी और युवाओं में सरकार और निजी क्षेत्र में रोजगार के लिए भरोसा बढ़ेगा.

बेरोज़गार बैंक

राजस्थान बेरोजगार यूनियन की मांग है कि सरकार को निजी क्षेत्र की नौकरियों के प्रबंधन में भी भूमिका निभानी चाहिए. हमारा सुझाव है कि सरकार को बेरोजगारों का अनिवार्य तौर पर रजिस्ट्रेशन करना चाहिए. इससे किसी काम के लिए किसी कंपनी को लोगों की आवश्यकता होने पर सरकार अपने डेटाबेस से युवाओं से संपर्क कर सकती है.

साथ ही, सरकार के जुड़े होने से निजी कंपनियों को भी न्यूनतम मजदूरी की शर्तों का पालन करना पड़ेगा और कर्मचारियों के शोषण पर रोक लग पाएगी. नौकरियों की कमी की वजह से निजी नौकरियों में लोग आधे वेतन पर भी काम करने पर मजबूर हो जाते हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर (File/ANI)

प्रतीकात्मक तस्वीर (File/ANI)
Photo Credit: ANI

सरकार के बेरोजगारों का बैंक बनाने से दोहरे लाभ होंगे. सरकार इसके लिए बहुत मामूली शुल्क भी ले सकती है. इससे सरकार को कमाई भी होगी और युवाओं में सरकार और निजी क्षेत्र में रोजगार के लिए भरोसा बढ़ेगा.

युवाओं में सरकारी नौकरियों को लेकर रूझान ज़्यादा होने की एक बड़ी वजह ये भी है कि सरकारी नौकरियों में महंगाई के हिसाब से भत्ता मिलता है. लेकिन निजी क्षेत्र में वेतन उस तुलना में बढ़ने की गारंटी नहीं रहती.

इसके अलावा, प्राइवेट नौकरियों में अक्सर लोग ये शिकायत करते हैं कि उन्हें पूरी मेहनत के बाद भी वाजिब मेहनताना नहीं मिलता. तो अगर निजी नौकरियों में भी पारदर्शिता रहेगी तो युवाओं में सरकारी नौकरियों में जाने के लिए मची होड़ कम होगी और बेरोजगारी की दर अपने-आप कम होती जाएगी.

लेखक परिचय: अशोक चौधरी जयपुर स्थित राजस्थान बेरोजगार यूनियन के पूर्व अध्यक्ष तथा प्रदेश प्रवक्ता और संरक्षक हैं. वह 2018 से लगातार युवाओं की लड़ाई लड़ रहे हैं तथा युवाओं के अधिकारों से जुड़े आंदोलनों में अहम भूमिका निभा रहे हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

(बातचीत पर आधारित लेख)

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