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मानसून में रहिए तैयार, कहीं भी आ सकती है अब बाढ़

Apurva Krishna
  • विचार,
  • Updated:
    जुलाई 03, 2024 08:17 am IST
    • Published On जुलाई 03, 2024 08:17 am IST
    • Last Updated On जुलाई 03, 2024 08:17 am IST

बरसात का मौसम आ चुका है. कहीं जमकर बारिश हो रही है, कहीं बादल घुमड़ रहे हैं, तो कहीं बादलों का इंतज़ार है. न्यूज़ की दुनिया बारिश को अलग नज़र से देखती है. इसमें मौसम विभाग की भविष्यवाणियाँ होती हैं, कि कहाँ बारिश होगी, कहाँ आंधी आएगी, कहाँ तेज़ हवाएँ चलेंगी, कहाँ ओले गिरेंगे. 

मौसम विभाग की मेहरबानी से कई शब्द अपने-आप ख़बरों में चल पड़ते हैं - जैसे मेघगर्जन, ओलावृष्टि, आकाशीय बिजली, सामान्य वर्षा, मध्यम वर्षा, रेड अलर्ट, येलो अलर्ट आदि, इत्यादि.

इंटरनेट और सैटेलाइट चैनलों के ज़माने से पहले, जब टीवी का मतलब सिर्फ़ दूरदर्शन होता था, मौसम की ख़बरों का एक वाक्य हर किसी को याद हो गया था - “ज़ोर की बारिश और गरज के साथ छींटे पड़ेंगे!” सुनने से ऐसा प्रतीत होता था कि बारिश अलग चीज़ होती है, और छींटे अलग होते हैं!

monsoon rains

monsoon rains (जयपुर में बादल)

इस मौसम में, मौसम विभाग से एक और प्रकार की जानकारी आती है, कि इतने मिलीमीटर की बारिश हुई. जैसे, 28 जून को राजधानी दिल्ली में बारिश से मची अफ़रातफ़री पर ख़बर छपी - दिल्ली में 24 घंटे में 228.1 मिलीमीटर बारिश हुई, जबकि जून में औसतन 74.1 मिलीमीटर की बारिश हुआ करती है.

ये भी बताया जाता है कि मानसून लेट है या जल्दी, वो इस तारीख को आ रहा है, और कहाँ पहुँच चुका है. और लोग अंदाज़ा लगाते रह जाते हैं, कि पहुँच चुका है, तो हमारे यहाँ बारिश क्यों नहीं हो रही. 

याद करिए, इसी साल अप्रैल में दुबई और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के शहरों का क्या हाल हुआ था. और ये मामूली और पुराने शहर नहीं थे, ये आधुनिक शहर थे, जहाँ पैसा बरसता है, मगर बरसात आई, और उनकी सारी शानोशौकत को डुबाकर चली गई.

मौसम की ख़बरें और आम आदमी की चिंता

बहरहाल, मौसम विज्ञानियों और शब्द विज्ञानियों की टीम चाहे जो भी भाषा बोले, चाहे जैसे शब्दों का इस्तेमाल करें, आम जनता को सिर्फ़ इससे मतलब होता है, कि बारिश होगी कि नहीं.

इसके बाद बारिश के मौसम में ख़बरें आती हैं, कि कहाँ कौन डूब गया, कहाँ बारिश से मकान-इमारतें गिर गईं, लोग मारे गए, कहाँ शहरों की सड़के पानी में डूब गईं, घरों में पानी चला आया, कहाँ बारिश में सांप निकलने लगे, और कहाँ-कहाँ बाढ़ आ गई.

ये हर साल की कहानी है. हर साल इसी तरह की ख़बरें आती हैं. एक के ऊपर विपदा आती है, दूसरा उस पर ख़बर बनाता है, तीसरा वो ख़बर देखता है…और जीवन वैसे ही चलता रहता है.

दिल्ली की बाढ़

दिल्ली में बाढ़ जैसे हालात - ANI

मगर सच्चाई सिर्फ ये है कि लाख भविष्यवाणियाँ कर लें, लाख तैयारियाँ कर लें, विपदा कभी भी आ सकती है, कोई भी इसका शिकार हो सकता है.

याद करिए, एक समय था, जब केवल गांवों से बाढ़ की ख़बरें आती थीं, और मान लिया जाता था कि बाढ़ तो सिर्फ़ गाँवों की विभीषिका है. मगर आज शहर भी अछूते नहीं रहे.

कुछ दिन पहले दिल्ली के बारिश में डूबने की ख़बर आई. हालाँकि, दिल्ली को जानने वाले जानते हैं कि राजधानी में मिंटो रोड, आईटीओ, प्रगति मैदान और ऐसे ही कुछेक स्पॉट हैं जहाँ हर साल बारिश में पानी जमा हो जाता है, और मीडिया के कैमरे वहाँ पहुँच जाते हैं, और दिल्ली में बाढ़ की कहानी बन जाती है.

बाढ़ की चपेट में बड़े शहर

मगर ऐसा नहीं कि ये कहानियाँ बिल्कुल बनी-बनाई हैं. ये एक वास्तविकता है, कि आज कोई भी शहर देखते-देखते दरिया बन सकता है.

मानसून के महीनों में, वर्ष 2005 में मुंबई, 2006 में सूरत, 2012 में जयपुर, 2015 में चेन्नई, 2018 में केरल, 2019 में पटना, 2023 में दिल्ली और सूरत - इन शहरों में बड़ी गंभीर बाढ़ आई. इनके अलावा, भारत के बहुत सारे शहरों में हर साल बारिश के मौसम में बाढ़ जैसी हालत हो जाती है.

अभी भी वही हो रहा है. राजस्थान के 28 ज़िलों में आपदा प्रबंधन विभाग को मुस्तैद कर दिया गया है. देश के बाकी कई राज्यों में भी, अरुणाचल प्रदेश से लेकर गुजरात तक, हिमाचल प्रदेश से लेकर तमिलनाडु तक - कहीं रेड अलर्ट है, तो कहीं ऑरेंज अलर्ट.

मगर शहरों की ये बाढ़ सिर्फ़ बारिश से नहीं आती, ये इंसानों की बनाई बाढ़ ज़्यादा होती है. शहर कंक्रीट के जाल बन चुके हैं, खाली जगहों की कमी होती जा रही है, ऐसे में बारिश का जो पानी ज़मीन सोख लेती थी, और जो पानी भूमिगत जल बनकर इंसानों के ही काम आता था, वो पानी अब शहरों के रास्तों पर जमा हो जाता है, नालों से बर्बाद हो जाता है.

अगर कोई कसर रह जाती है तो उसे भी गंदे और जाम हो चुके नाले पूरे कर देते हैं. पानी के निकलने का कोई रास्ता ही नहीं रहता, और ज़रा सी बारिश में शहर डूब जाते हैं.

मुंबई की बाढ़

मुंबई की बाढ़

मगर आज जिस तरह से प्रकृति का मन बदल रहा है, और जिससे सारी भविष्यवाणियाँ नाकाम हो जाती हैं, उससे बस यही कहा जा सकता है कि हर शहर को, हर व्यक्ति को तैयार रहना चाहिए. विपदा कभी भी आ सकती है.

आपको याद होगा, इसी साल अप्रैल में भारी बारिश में दुबई और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के शहरों का क्या हाल हुआ था. और ये मामूली और पुराने शहर नहीं थे, ये आधुनिक शहर थे, जहाँ पैसा बरसता है, मगर बरसात आई, और उनकी सारी शानोशौकत को डुबाकर चली गई.

इन दिनों जर्मनी के कई हिस्से भारी बारिश के बाद बाढ़ में घिरे हैं. ब्राज़ील में भी बाढ़ ने तबाही मचाई हुई है.

तो बरसात का मौसम है, और इसलिए बस तैयार रहिए. कल किसी और शहर की बारी थी, आज हमारे और आपके भी शहर की बारी आ सकती है. और ये भी हो सकता है कि तब हम और आप ख़बर पढ़ नहीं रहे होंगे, हम और आप ही ख़बर होंगे.

अपूर्व कृष्ण NDTV में न्यूज़ एडिटर हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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