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बाघिनों की घटती संख्या से भी आया है रणथंभौर के बाघों पर संकट

Dr. Dharmendra Khandal
  • विचार,
  • Updated:
    दिसंबर 24, 2024 18:55 pm IST
    • Published On दिसंबर 24, 2024 18:49 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 24, 2024 18:55 pm IST
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Photo Credit: tigerwatch.net

Ranthambore: राजस्थान में बाघों के संरक्षण में रणथंभौर की भूमिका अहम रहती है. प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में बाघों का मुख्य स्रोत रणथंभौर ही होता है. लेकिन, राजनीतिक दबावों की वजह से अक्सर बाघों को बिना ठीक से योजना बनाए नवनिर्मित अभयारण्यों में भेज दिया जाता है, जिससे बाघों की संख्या पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. रणथंभौर में बाघों की संख्या, उनकी स्थिति तथा उनके संरक्षण के मुद्दे को समझने के लिए इस विषय को गहराई से देखने की आवश्यकता है.

पिछले महीने (नवंबर 2024) तक रणथंभौर में बाघों की कुल संख्या 65 थी. हालांकि, ऐसा दावा किया गया कि यहां 88 बाघ हैं. मगर यह सही नहीं है. यहां बाघों की संख्या एक समय बेशक 81 पहुंच गई थी. लेकिन, इनमें से कई बाघों की स्वाभाविक मौत हो गई. इसके अतिरिक्त बाघों के शावकों को इस संख्या में गिनना सही तरीका नहीं है. अधिकारी संख्या को बढ़ाकर बताते हैं जिससे कि रणथंभौर से बाघों को दूसरी जगहों पर भेजने का विरोध ना हो सके.

बाघों का बिगड़ता लैंगिक अनुपात

रणथंभौर से अभी तक 11 बाघिनों और 5 बाघों को दूसरे अभ्यारण्यों में भेजा जा चुका है. इसकी वजह से रणथंभौर में बाघ-बाघिनों का लैंगिक अनुपात प्रभावित हुआ है. राजनीतिक प्रभावों की वजह से निर्मित नए अभयारण्य बाघों के अनुकूल नहीं थे. इससे बाघों की मौतों की संख्या बढ़ी और इंसानों और बाघों के बीच संघर्ष की घटनाओं में भी तेज़ी आई. साथ ही, बाघों की प्रजनन क्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा.

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Photo Credit: tigerwatch.net

रणथंभौर के कुछ ख़ास इलाक़े, जैसे गुड़ा और कचिडा, अब ख़ाली हैं क्योंकि वहां के बाघों को दूसरी जगह भेज दिया गया. T102 बाघिन का इलाक़ा पिछले तीन साल से ख़ाली पड़ा है. इसी प्रकार T12 बाघ को दूसरी जगह भेजे जाने के बाद, उसकी साथी बाघिन T13 ने भी अभयारण्य छोड़ दिाय, और उसके दो शावक भी लापता हो गए.

T102 बाघिन का इलाक़ा पिछले तीन साल से ख़ाली पड़ा है. इसी प्रकार T12 बाघ को दूसरी जगह भेजे जाने के बाद, उसकी साथी बाघिन T13 ने भी अभयारण्य छोड़ दिाय, और उसके दो शावक भी लापता हो गए.

रणथंभौर में युवा बाघों के बीच बढ़ता संघर्ष

रणथंभौर में मौजूदा बाघों में 22 नर बाघ हैं, इनमें से सबसे ज़्यादा उम्र वाला बाघ मात्र 10 साल का है. ऐसे युवा बाघों के बीच अक्सर अपने इलाक़े पर प्रभाव बनाने के लिए टेरिटोरियल संघर्ष होते रहते हैं. इससे कई बार घातक लड़ाइयां होती हैं और बाघों की मौत होती है.

जैसे, अभी T2309 बाघ की मौत हुई जिसकी वजह एक दूसरे बाघ के साथ संघर्ष माना जा रहा है. इसके अलावा, कई बार बाघों को अपने इलाक़े छोड़ने पड़ते हैं. इन बाघों में से 19 की उम्र 6 साल से भी कम है. इससे ऐसा लगता है कि उनके बीच संघर्ष होता रहेगा.

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रणथंभौर में बाघ-बाघिनों के अनुपात में असंतुलन की स्थिति के बावजूद पिछले वर्ष तीन बाघिनों को दूसरे अभ्यारण्यों में भेज दिया गया. ऐसे में बाघिनों की तुलना में बाघों की संख्या ज़्यादा रहने से पैदा होने वाली संघर्ष की परिस्थिति पर ध्यान दिया जाना ज़रूरी है.

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रणथंभौर की बाघिनों की स्थिति

रणथंभौर में बाघिनों की उम्र ज़्यादा रहती है, और कई 19 साल से भी ज़्यादा समय तक जीती हैं. इसकी एक बड़ी वजह ये है कि अभयारण्य में उनकी सेहत और खान-पान का ध्यान रखा जाता है. जैसे, उम्र बढ़ने पर उनके लिए आसानी से शिकार के उपाय किए जाते हैं. इनसे वो जंगल की कठिन परिस्थितियों और दूसरी कठिनाइयों से बच जाती हैं और कृत्रिम तरीके से उनकी उम्र बढ़ जाती है. 

रणथंभौर में बाघिनों की उम्र ज़्यादा रहती है, और कई 19 साल से भी ज़्यादा समय तक जीती हैं. इसकी एक बड़ी वजह ये है कि अभयारण्य में उनकी सेहत और खान-पान का ध्यान रखा जाता है.

लेकिन इन उम्रदराज़ बाघिनों की प्रजनन क्षमता कम होती है और इसलिए रणथंभौर में बाघिनों की संख्या को लेकर एक भ्रामक तस्वीर निर्मित होती है. इसके अलावा, युवा बाघिनों को दूसरी जगहों पर भेज दिए जाने से रणथंभौर की दीर्घकालीन तस्वीर पर और ज़्यादा असर पड़ता है. 

ऐसे में एक बड़ा सवाल पैदा होता है- क्या रणथंभौर से बाघों का दूसरी जगहों पर स्थानांतरण पूरी तरह बंद कर देना चाहिए? इसका जवाब है- नहीं, क्योंकि यह कोई समाधान नहीं है. रणथंभौर के बाघों से राजस्थान और देश के दूसरे अभयारण्यों के बाघों के विकास में मदद मिलती है. लेकिन, ऐसा स्थानांतरण संयम और सावधानी से बनाई गई योजना के तहत होना चाहिए जिससे किसी तरह का असंतुलन पैदा ना हो.

(यह लेख मूल रूप से अंग्रेज़ी में टाइगर वॉच डॉट नेट वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ था. इसे आप इस लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं.)

परिचयः डॉ. धर्मेंद्र खांडल, एक कंज़र्वेशन बायोलॉजिस्ट हैं और पिछले 30 वर्ष से वन्यजीव संरक्षण की दिशा में कार्यरत हैं. इन्होंने रणथंभौर टाइगर रिजर्व में वन्य जीव एवं समुदाय आधारित संरक्षण की दिशा में कार्य किया है.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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