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महाराणा प्रताप से विश्वराज सिंह तक, पुराना है मेवाड़ में राजगद्दी का संघर्ष

Deepak Charan
  • विचार,
  • Updated:
    नवंबर 26, 2024 09:24 am IST
    • Published On नवंबर 26, 2024 08:12 am IST
    • Last Updated On नवंबर 26, 2024 09:24 am IST
विश्वराज सिंह मेवाड़

विश्वराज सिंह मेवाड़

Udaipur Royal Family: भारतीय लोकतंत्र अपने 78वें बरस में है. लोकतंत्र के आगाज के साथ ब्रितानी हुकूमत और राजसी तंत्र का खात्मा हुआ, लेकिन आज भी इन पूर्व राजघरानों में राजगद्दी के उत्तराधिकार की परंपरा चली आ रही है. इनसे जुड़े विवाद भी अपने हिस्से की सुर्खियां बटोर ही लेते हैं. अभी मेवाड़ के पूर्व राजघराने के वंशजों के बीच फिर से उत्तराधिकार का संघर्ष चल रहा है. स्वयं को एकलिंग जी का दीवान मानने वाले इन दोनों उत्तराधिकारियों में एक एकलिंग जी के मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश में है, तो एक मंदिर के ट्रस्टी होने के नाते उन्हें प्रवेश नहीं करने दे रहे हैं. ध्यान रहे कि यह वही मेवाड़ है, जहां पिता के सम्मान में बेटे चुंडा ने राजगद्दी त्याग दी थी. हालांकि उसके बाद मेवाड़ में उत्तराधिकार को लेकर और भी संघर्ष हुए.

इतिहास में ऐसे बहुत से किस्से हैं, जहां राज के लिए मां जाये भाइयों में संघर्ष हुआ तो कभी छल कपट. मेवाड़ के सबसे प्रसिद्ध राजा महाराणा प्रताप भी इससे अछूते नहीं रहे. न सिर्फ राजस्थान बल्कि भारत में जन-जन के नायक और संघर्ष के पर्याय रहे महाराणा प्रताप के राजतिलक के समय भी ऐसा ही संघर्ष हुआ था. 

राजस्थान के इतिहास के सबसे विवादित और प्रसिद्द युद्ध हल्दीघाटी में जगमाल और शक्ति सिंह प्रताप के खिलाफ अकबर की सेना की तरफ से लड़े थे. 

महाराणा प्रताप और उनके भाई जगमाल में उत्तराधिकार का संघर्ष

महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह की तीन बीवियां थीं, जैवन्ता बाई, सज्जा बाई और धीर बाई. जैवन्ता बाई सबसे बड़ी रानी थीं, उन्होंने सबसे बड़े बेटे महाराणा प्रताप को जन्म दिया था. परंपरा के अनुसार, उन्हें गद्दी मिलती, लेकिन उदय सिंह ने धीर बाई से उनके बेटे जगमाल को गद्दी सौंपने का वादा कर लिया था. 

इस किस्से को राजस्थान के प्रसिद्ध इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा अपनी पुस्तक उदयपुर राज्य का इतिहास में कुछ यूं बयां करते हैं- ‘अपनी राणी भटियाणी पर विशेष प्रेम होने के कारण महाराणा उदय सिंह ने उसके पुत्र जगमाल को अपना युवराज बनाया था. सरदार उदय सिंह की दाहक्रिया के समय ग्वालियर के राजा रामसिंह ने जगमाल को वहां न पाकर कुंवर सगर से पूछा कि वह कहां है?

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सगर ने उत्तर दिया, "क्या आप नहीं जानते कि महाराणा उदय सिंह ने जगमाल को अपना उत्तराधिकारी बना दिया था." (मेवाड़ की गद्दी का उत्तराधिकारी अपने पिता के दाह संस्कार में नहीं जाता). इस पर अखैराज सोनगरा (महाराणा प्रताप के मामा) ने रावत कृष्णदास और सांगा से कहा कि आप चूंडा के वंशज हैं. यह काम आपकी ही सहमति से होना चाहिए था. प्रबल शत्रु सिर पर है, चित्तौड़ हाथ से निकल गया है, मेवाड़ उजड़ रहा है. ऐसी दशा में यदि यह घर का बखेड़ा बढ़ गया तो राज्य नष्ट होने में क्या संदेह है?    

रावत कृष्णदास और सांगा ने कहा कि ज्येष्ठ कुंवर प्रतापसिंह ही योग्य हैं. उनके हाथों में ही मेवाड़ सुरक्षित रहेगा. इसके बाद दाह संस्कार से लौटते समय गोगुंदा में एकलिंग मंदिर की पाल पर महाराणा प्रताप का प्रतीकात्मक राजतिलक कर दिया गया. इसके बाद सभी सरदारों ने कुंभलगढ़ पहुंच कर प्रताप को मेवाड़ का महाराणा घोषित कर दिया.

इस घटना के बाद नाराज जगमाल वहां से चला गया. साथ में छोटे भाई शक्ति सिंह को भी ले गया. इसी नाराजगी के चलते जगमाल और शक्ति सिंह अकबर के साथ मिल गए. राजस्थान के इतिहास के सबसे विवादित और प्रसिद्द युद्ध हल्दीघाटी में जगमाल और शक्ति सिंह प्रताप के खिलाफ अकबर की सेना की तरफ से लड़े थे. 

चुंडा का त्याग

दरअसल, चुंडा ने अपने पिता लाखा के सम्मान में गद्दी का त्याग कर दिया था. किस्सा यह है कि चुंडा के लिए मारवाड़ की राजकुमारी हंसाबाई का रिश्ता लेकर उनके भाई रण मल राठौड़ मेवाड़ के राजदरबार आए. लेकिन मेवाड़ के महाराणा लाखा ने चुंडा के लिए आए विवाह प्रस्ताव को गलतफहमी में अपना मान कर स्वीकार लिया. तब हंसाबाई के भाई मारवाड़ के राव रणमल ने शर्त रख दी कि बूढ़े लाखा से मैं अपनी बहन की शादी तब ही करवा सकता हूं जब मेरी बहन से उत्पन्न संतान को ही मेवाड़ की राजगद्दी मिले.

राणा चुंडा ने बड़ा बेटा होने के बावजूद भीष्म प्रतिज्ञा ली कि मैं मेवाड़ की राजगद्दी का त्याग अपने पिता के सम्मान में त्यागता हूं.

इसके बाद राणा चुंडा ने बड़ा बेटा होने के बावजूद भीष्म प्रतिज्ञा ली कि मैं मेवाड़ की राजगद्दी का त्याग अपने पिता के सम्मान में त्यागता हूं.

इसके बाद से ही चुंडा के वंशजों को मेवाड़ राजघराने ने यह विशेषाधिकार दिया कि अब सदा सदा चुंडा के वंशजों की सहमति पर ही मेवाड़ गद्दी का उत्तराधिकारी चुना जायेगा. वर्तमान संघर्ष में भी यही सवाल है कि क्या चुंडा के वंशजों से सहमति ली गई है?

पन्ना धाय ने की उदय सिंह के प्राणों की रक्षा

मेवाड़ राजवंश में त्याग का एक और किस्सा देश भर में मशहूर है. 1536 में इसी मेवाड़ के उत्तराधिकारी की जान लेने जब बनवीर चितौड़ के राज महलों में भटक रहा था. तब पन्नाधाय ने अपने कलेजे की कोर पुत्र चंदन को मेवाड़ के राजकुंवर उदय सिंह के बिस्तर पर सुलाकर, उदय सिंह को अपने सर पर उठा कर कुंभलगढ़ ले गई थी.

बनवीर ने चंदन को उदय सिंह समझ कर मार दिया. लेकिन पन्ना धाय ने उन्हें बचा कर स्वामिभक्ति का ऐसा उदाहरण पेश किया कि वह राजस्थान के लोकगीतों और कहावतों में सदा-सदा के लिए अमर हो गई.

जिस मेवाड़ में त्याग और बलिदान की ऐसी परंपरा रही हो, वहां यह संघर्ष कई बड़े सवाल खड़े करता है. खासकर यह कि क्या मेवाड़ के राजघराने के यह वंशज उस परंपरा के भी वाहक हैं?

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

दीपक चारण हरिदेव जोशी पत्रकारिता विश्वविद्यालय जयपुर में विकास संचार स्नातकोत्तर के छात्र हैं. राजस्थान के इतिहास, कला - संस्कृति, समाज एवं साहित्य के गंभीर अध्येता हैं.

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