Rajasthan Floods: इन दिनों राजस्थान में भारी बारिश और बाढ़ की काफी चर्चा हो रही है. मगर राजस्थान में इस बार किसी अलग तरह की बारिश नहीं हुई है. राजस्थान में जैसी सामान्य बारिश पहले होती रही है, वैसी ही बारिश इस बार भी हुई है. पिछले कुछ दिनों में करौली क्षेत्र को छोड़कर कहीं कोई ऐसी असामान्य बारिश या बादल फटने की घटना नहीं हुई है.
अगर इतिहास की बात की जाए, तो ऐसा नहीं है कि राजस्थान में बाढ़ नहीं आती थी. राजस्थान का बाड़मेर ज़िला बाढ़ के लिए जाना जाता है. बाड़मेर कटोरेनुमा जगह है. वहां की मिट्टी रेतीली है जो बारिश के पानी को पी जाती थी. मगर वहां कभी बहुत तेज बारिश होती है, तो चारों तरफ का पानी एक जगह इकट्ठा हो जाता है और बाढ़ आ जाती है. इसलिए उस जगह का नाम भी बाड़मेर पड़ा, यानी मरूस्थल में बाढ़. इसलिए यह समझना जरूरी है कि रेगिस्तानी इलाका होने के बाद भी राजस्थान में बाढ़ कोई नई चीज नहीं है.
भारत में आजादी के बाद से पानी के प्रबंधन के लिए बहुत काम हुए हैं और काफी पैसा खर्च हुआ है. राजस्थान में असामान्य बारिश होती रही है और यहां बादल फटने की भी घटनाएं हुई हैं. तो ऐसी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर राजस्थान में बाढ़ से बचने का प्रबंधन किया जा सकता है. राजस्थान में जैसलमेर के सीमावर्ती इलाके के गांव के उदाहरण से इस बात को समझा जा सकता है.
हजारों साल पुराने बिपरासर तालाब से सीख
जैसलमेर से करीब 90 किलोमीटर दूर पाकिस्तान से लगी सीमा पर नरसी गांव में हजारों साल पहले बिपरासर नाम का एक तालाब बनाया गया था. उस तालाब का पानी पांच-छह गांवों के लोगों के काम आता है. मगर आजादी के 75 सालों के दौरान किसी भी सरकार ने उसका पुनरुद्धार नहीं किया. ना तो केंद्र सरकार ने ध्यान दिया और ना राज्य सरकार ने.
इस साल गांव के लोगों ने ही मिलकर उस तालाब को पुनर्जीवित किया. इस तालाब को ठीक करने में कुल 14 लाख रुपये खर्च हुए. यह तालाब दो किलोमीटर लंबा और सवा किलोमीटर चौड़ा है. इसकी गहराई 50 फीट से लेकर 10 फीट है, और इसकी औसत गहराई लगभग 25 फीट है. इसमें 250 करोड़ लीटर पानी जमा होता है. अब इस बार जब बारिश हुई और उसका पानी इस तालाब में जमा हो गया, तो इससे उस पूरे इलाके में कोई बाढ़ नहीं आई. अब दूसरी जगहों पर ज्यादा बारिश हुई तो उससे बाढ़ आ रही है. जमीन का कटाव हो रहा है और काफी विनाश हो रहा है.
यह तालाब जिस इलाके में है वहां पानी की कमी रहती है. सरकार ने उस इलाके में पानी पहुंचाने के लिए 1970 के दशक में विश्व बैंक की मदद से 60-65 हजार करोड़ रुपये का एक बड़ा प्रोजेक्ट शुरू किया था. इसमें चारों तरफ ईंटों की मदद से पूरे रेगिस्तान में नहरों से पानी देने का एक सिस्टम बनाया था. मगर वह पूरा पैसा खर्च हो गया और उससे एक बूंद पानी भी नहीं पहुंच सका.
राजस्थान में ऐसी कई बड़ी परियोजनाएं चलीं, रेगिस्तान को हरा-भरा बनाने के लिए प्रोजेक्ट आए, मगर पानी नहीं पहुंचा. इसकी वजह ये है कि ये सारे काम उस दृष्टि के साथ नहीं हुए जिसमें लोगों की जरूरतों को समझकर संवेदनशील तरीके से पानी का प्रबंधन किया जाता है. इसकी जगह प्रकृति के विपरीत बहुत बड़े-बड़े प्रोजेक्ट लाए गए जिनसे वहां केवल विनाश हुआ. जो नहरें बनाई गईं वो रेत में दब गईं और दिखती नहीं हैं. उनकी ढाल ठीक नहीं थी जिससे पानी कहीं गया ही नहीं.
बाढ़ से मुक्ति की युक्ति नहीं
यह उदाहरण इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पता चलता है कि रेगिस्तानी इलाकों में जिस प्रकार के काम होने चाहिए थे, वैसे काम नहीं हुए. राष्ट्रीय स्तर की बहुत बड़ी परियोजनाएं चलाई गईं, मगर राजस्थान में बाढ़ और सुखाड़ से मुक्ति दिलाने की युक्ति खोजने वाला काम नहीं हुआ. इस कारण राजस्थान में थोड़ी सी बारिश होती है तो बाढ़ आ जाती है, और इसी तरह से सुखाड़ भी आता है. जब सुखाड़ आता है तो फसलें नष्ट हो जाती हैं, और बाढ़ आती है तो फसलें डूब जाती हैं. इसलिए बाढ़ की घटनाओं का बढ़ना केवल पानी के कुप्रबंधन का नतीजा है.
वर्षा के जल के उचित संरक्षण और प्रबंधन के नहीं होने से राजस्थान में इस साल बाढ़ की स्थिति दिखाई दे रही है. बाढ़ की मार इस साल इसलिए ज्यादा दिख रही है क्योंकि जल प्रंबंधन के बारे में सरकारों की नीति और समाज की रीति में अंतर है. अगर सरकारों के पास बाढ़ और सुखाड़ से मुक्ति की युक्ति होती, और वह समाज की रीति बन जाती, तो अभी जो बाढ़ दिख रही है, वह बाढ़ नहीं आती.
हालांकि, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग भी बड़े, और असल मुद्दे हैं. लेकिन इन ग्लोबल समस्याओं के लोकल समाधान होते हैं. जैसे, हमने पिछले 50 सालों में 12 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन के क्षेत्र में जल संरक्षण का काम किया, जो चंबल, अलवर, जैसलमेर और जयपुर के जामवा रामगढ़ में आता है. जिन इलाकों में हमने जल संरक्षण का काम किया है, वहां इस साल ज्यादा बारिश हुई तो ना तो बाढ़ आई और ना पिछले साल कम बारिश की वजह से सूखा पड़ा. (बातचीत पर आधारित)
राजेंद्र सिंह अलवर स्थित जाने-माने पर्यावरणविद् हैं.राजस्थान में जल संरक्षण और जल प्रबंधन के क्षेत्र में किए गए काम के लिए वर्ष 2001 में उन्हें मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
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