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पिता को लीवर डोनेट कर भी नहीं बचा पाई स्नेहा, अब क्रैक किया NEET, बनेंगी डॉक्टर

कोटा की स्नेहा ने पढ़ाई के दौरान लीवर सिरोसिस से जूझते पिता को खुद का लीवर डोनेट किया था. हालांकि इसके बाद भी उनके पिता की जान नहीं बची. पिता की मौत के बाद भी स्नेहा ने नीट क्लियर किया. अब वो खुद डॉक्टर बनेंगी.

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पिता को लीवर डोनेट कर भी नहीं बचा पाई स्नेहा, अब क्रैक किया NEET, बनेंगी डॉक्टर
पिता के इलाज के लिए हैदराबाद जाने के दौरान की तस्वीर.

यह कहानी है संघर्ष से सफलता की. जहां कोटा कोचिंग की स्टूडेंट स्नेहा ने पढ़ाई के दौरान लीवर सिरोसिस से जूझते पिता को खुद का लीवर डोनेट किया था लेकिन जीवन बचाने का यह प्रयास सफल नहीं हुआ. एग्जाम से पहले स्नेहा ने अपने पिता को खो दिया लेकिन हिम्मत रखी और कड़ी मेहनत कर मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट-यूजी 2023 क्रेक कर दिखाया. यह सच्ची कहानी है ओडिशा के जगतसिंहपुर जिले में स्थित पारादीप पोर्ट निवासी स्नेहा श्रावणी नायक की, आईये जानते हैं स्नेहा ने सफर में कितनी बाधाओं को पार किया.

18 साल की उम्र में ही किया लीवर डोनेट

स्नेहा देश में लीवर डोनेट करने वाली संभवतया सबसे कम उम्र की दूसरी डोनर है, लीवर डोनेट करने के लिए नियमानुसार उम्र 18 वर्ष होना जरूरी है. इससे पहले केरल के त्रिशूर जिले की 17 वर्षीय देवानंदा ने अपने पिता को लीवर डोनेट किया था. नीट यूजी-2023 के परिणामों में स्नेहा ने 602 अंक प्राप्त किए. 27593 आल इंडिया रैंक के बाद सुंदरगढ़ मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिला.

स्नेहा रविवार को एक बार फिर कोटा आई, यहां एलन कॅरियर इंस्टीट्यूट के विक्ट्री सेलीब्रेशन में शामिल हुई और एलन ने स्नेहा का गुदड़ी के लाल स्कॉलरशिप स्कीम में चयन किया है. इसके तहत स्नातक की पढ़ाई के लिए स्नेहा को मासिक स्कॉलरशिप दी जाएगी.

ऐसे हुई संघर्ष की शुरुआत

स्नेहा ने बताया कि मैं पढ़ाई में होशियार थी और डॉक्टर बनना मेरा सपना है. मैंने ओडिशा बोर्ड से दसवीं में 91.33 प्रतिशत एवं 12वीं में 90.58 प्रतिशत अंक प्राप्त किए. फिर वर्ष 2022 में नीट की तैयारी के लिए कोटा आ गई. पिता हेमंत कुमार नायक पारादीप में ही प्रिंटिंग प्रेस चलाते थे.

उन्हें कुछ सालों से पेट में गैस व फैटी लीवर जैसी समस्याएं थी, फिर वजन कम होने लगा और पेट में पानी भरने लग गया. फिर 16 अगस्त 2022 को तबियत ज्यादा खराब हो गई और मम्मी उन्हें इलाज के लिए हैदराबाद लेकर गई. जांच के बाद लीवर ट्रांसप्लांट की सलाह दी. इसी दिन एलन में मेरा पहला मेजर टेस्ट था.

लीवर डोनेट करती स्नेहा

लीवर डोनेट करती स्नेहा

खुद का वजन घटाना पड़ा

स्नेहा ने पापा का लीवर ट्रांसप्लांट कराने का निर्णय लिया. डॉक्टरों ने बताया कि सिर्फ पत्नी और बच्चे ही लीवर डोनेट कर सकते हैं. नियमानुसार उम्र 40 साल से कम और 18 साल से ज्यादा होनी चाहिए. ऐसे में सिर्फ मैं ही लीवर डोनेट कर सकती थी. संयोग से उस समय मेरी उम्र 18 वर्ष दो महीने हो चुकी थी. मुझे हैदराबाद जाना था.

इसके लिए मैंने एलन में फैकल्टीज और मेंटोर से बात की तो उन्होनें हौंसला बढ़ाया. मैं 19 सितंबर को कोटा से रवाना हुई. डॉक्टरों ने बताया मेरा लीवर फैटी है, इसलिए डॉक्टर्स ने छह दिन में तीन किलो वजन करने को कहा, मुझे अपना वजन 59 किलो से घटाकर 56 किलो करना था. मैं सुबह-शाम चार-चार किलोमीटर वॉक करती थी. एक-एक रोटी और सलाद खाती थी. दूध-चाय बंद कर दिया. इसी दौरान मैं और पापा कोरोना पॉजिटिव भी हो गए थे.

12 घंटे चला ऑपरेशन

डॉक्टर्स ने लीवर ट्रांसप्लांट के लिए 10 अक्टूबर 2022 का दिन निश्चित किया. सुबह 6:45 बजे सबसे पहले मेरा ऑपरेशन शुरू हुआ और शाम को 7:30 बजे खत्म हुआ. मेरा गॉल ब्लैडर भी निकाल दिया, क्योंकि लीवर गॉल ब्लैडर से कवर होता है. इसलिए उसे निकाले बिना लीवर तक नहीं पहुंच सकते, मुझे जीवनभर बिना गॉल ब्लेडर के रहना है.

फिर सुबह 11 बजे पापा का ऑपरेशन शुरू हुआ और रात में 11:45 बजे तक चला. मुझे 1 नवंबर 2022 को हॉस्पिटल से छुट्टी दे दिया गया. मैं कोटा आ गई और मम्मी-पापा को हैदराबाद ही रहना पड़ा. ऑपरेशन की वजह से मेरे पेट में दर्द रहता था. दर्द से ध्यान भटकाने के लिए डाउट सॉल्व करने बैठ जाती थी. मैंने 68 प्रतिशत लीवर डोनेट किया है.

माता-पिता के साथ इलाज के लिए जाती स्नेहा

माता-पिता के साथ इलाज के लिए जाती स्नेहा

प्रिंटिंग प्रेस की कमाई से मिला सहारा

पापा की प्रिंटिंग प्रेस से अच्छी इनकम हो जाती थी. बीमारी में करीब 60 लाख रूपए खर्च हुए. सारी सेविंग्स चली गई. मामा, मौसी व अन्य रिश्तेदारों ने भी मदद की. पापा की तबियत खराब होने से प्रिंटिंग प्रेस बंद थी, ऐसे में कमाई का जरिया भी खत्म हो गया था. ऑपरेशन के डेढ़ महीने बाद मम्मी-पापा घर लौट गए लेकिन, दिसंबर में पापा को बुखार आने लग गया.

पता चला कि लीवर में इंफेक्शन हो गया है तो फिर से उपचार शुरू हुआ. मैं हैदराबाद गई और करीब 25 दिन रही. 27 जनवरी को पापा को डिस्चार्ज कर दिया. मम्मी-पापा घर चले गए और मैं कोटा आ गई. पढ़ाई के दौरान जो टॉपिक्स छूट गए थे, फैकल्टीज ने उन्हें कवर करवाया. 

जनवरी में कोटा आने के बाद पढ़ाई शुरू करने लगी लेकिन, 9 फरवरी 2023 को पापा की तबियत ज्यादा खराब हो गई थी. एम्स भुवनेश्वर में एडमिट कराया. 15 फरवरी को कोटा से रवाना हुई. पहुंची तब तक पापा का निधन हो चुका था.

स्नेहा

स्नेहा

छोड़ दिया था कोटा, फैकल्टीज ने बुलाया

मैं आधे साल भी कोटा नहीं रह सकी. एलन की फैकल्टीज ने हर तरह से सपोर्ट किया. पापा के जाने के करीब 15 दिन बाद मेंटोर का कॉल आया तो मैंने उन्हें कहा कि अब मैं नहीं आऊंगी. उन्होंने मोटिवेट किया तो वापिस हॉस्टल में बात की और कोटा आ गई. पांच माइनर टेस्ट दिए, मेजर टेस्ट में रैंक 3032, तीसरे मेजर में 1736, ऑल इंडिया ओपन टेस्ट में रैंक 971 फिर इसके बाद रैंक 1726 हासिल की. इसके बाद कड़ी मेहनत कर मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट-यूजी 2023 को क्रैक कर लिया.

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