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जैसलमेर में जोरासिक कालखंड के डायनासोर के 15 करोड़ साल पुराने फुटप्रिंट चोरी

जैसलमेर का जोरासिक कालखंड से नाता रहा है. जिसके चलते समय-समय पर यहां कई खोजकर्ता शोध करने आते है. कुछ साल पहले वैज्ञानिकों का एक दल जैसलमेर में आया था तब उन्होंने जिले के थईयात गांव के नजदीकी इलाके में खोज की थी. लेकिन अब ये फुट प्रिंट गायब हो गए हैं.

जैसलमेर में जोरासिक कालखंड के डायनासोर के 15 करोड़ साल पुराने फुटप्रिंट चोरी
जैसलमेर में डायनासोर के फुटप्रिंट की जांच करते वैज्ञानिक

कहते हैं "विशेष ज्ञान ही विज्ञान है", भारत ने रिसर्च के आधार पर बहुत कुछ विशेष हासिल किया है. लेकिन जब बात जुरासिक कालखंड, डायनासोर, फोसिल या उससे संबंधित रिसर्च की हो और जैसलमेर का नाम नहीं आए ऐसा संभव नहीं है. लेकिन एक बार फिर डायनासोर का एक दुर्लभ फुटप्रिंट गायब होने का मामला सामने आया है.

गायब हुए डायनासोर के फुटप्रिंट 

लेकिन जब भू वैज्ञानिकों का दल दूसरी बार यहां आया तो मौके से एक फुटप्रिंट गायब था. इसके बाद भू-वैज्ञानिकों ने चोरी का अंदेशा जताते हुए इसकी सूचना जिला प्रशासन को भी दी थी, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. हद तो तब हो गई जब सूचना के बाद कोई संरक्षण नही किया गया और हाल ही में दूसरे फुटप्रिंट के भी चोरी होने की बात कही.

इंटरनेशनल ग्रुप ऑफ साइंस्टि के वैज्ञानिकों ने की थी खोज 

वैज्ञानिकों की टीम में शामिल होकर जैसलमेर आए प्रोफेसर डीके पांडे का कहना है कि, 2014 में राजस्थान यूनिवर्सिटी की ओर से नौवीं इंटरनेशनल कांग्रेस ऑन जुरासिक सिस्टम के आयोजन में संभावना जताई थी कि जैसलमेर में डायनासोर के वजूद से संबंधित सबूत मिल सकते हैं. तब इंटरनेशनल ग्रुप ऑफ साइंस्टि के करीब 20 वैज्ञानिकों ने जैसलमेर के थइयात गांव के आसपास की पहाड़ियों में डायनासोर की खोज शुरू की थी. इस खोज के दौरान वैज्ञानिकों को जैसलमेर के थइयात गांव के पास डायनासोर के दो फुटप्रिंट मिले थे, जिसके बाद वैज्ञानिकों ने इस फुटप्रिंट को मार्किंग कर सुरक्षित रखने का प्रयास किया था.

प्रशासन की लापरवाही से हुए फुटप्रिंट गायब 

लेकिन जब वैज्ञानिकों का दल दोबारा जैसलमेर आया तो उन्हें एक फुटप्रिंट मौके पर नहीं मिला. जिसकी सूचना प्रशासन को दी, फिर भी ध्यान नहीं दिया गया. इसका नतीजा यह हुआ कि अब तीसरी बार जब वैज्ञानिकों के दल यंहा पहुंच तो मार्किंग किया गया डायनासोर का दूसरा फुटप्रिंट भी गायब था. इस महत्वपूर्ण प्रिंट को प्रशासन समेत सभी को संरक्षित रखना चाहिए था. उन्होंने बताया कि आज के समय में जियो हेरिटेज की बात चल रही है. फॉसिल्स को कैसे कंजर्व किया जाए इस पर जोर दिया जा रहा है. साथ ही हमारे अन्य धरोहरों को भी बचाने की कोशिश हो रही है, लेकिन इस बीच इस मामले ने प्रशासन की उदासीन रवैए को सामने लाया है.

ऐसे फुटप्रिंट दुनिया के बस 8 देशों में ही मिले 

उन्होंने बताया कि, उस समय डायनासोर के फुटप्रिंट अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण डिस्कवरी था. वहीं, दोनों फुटप्रिंट के चोरी होने के बाद अब अंदेशा जताया जा रहा है कि इसे कोई स्टूडेंट या आसपास के लोग तो उठा कर नहीं ले गए हैं. जैसलमेर में मिले डायनासोर की फुटप्रिंट पर, जब स्टडी की गई तो पता चला कि यह 15 करोड़ साल पुरानी प्रजाति के डायनासोर के निशान है, जिनके पैरो में तीन बड़ी उंगलियां होती थी. इतना ही नहीं यह डायनासोर एक से तीन मीटर ऊंचे और पांच से सात मीटर चौड़े होते थे. इस डायनासोर के जीवाश्म इससे पहले फ्रांस, पोलैंड, स्लोवाकिया, इटली, स्पेन, स्वीडन, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में मिले हैं. पैरों के निशान की स्टडी से अंदाजा लगाया गया कि ये इयुब्रोनेट्स ग्लेनेरोंसेंसिस थेरेपॉड डायनासोर का पंजा था, जो कि 30 सेंटीमीटर लंबा था. अब कहा जा रहा है कि राजस्थान में खोजने पर चट्टानों से डायनासोर के जीवाश्म मिल सकते हैं.

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