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राजस्थान में मंदिरों में ठिठुर रहे हैं भगवान! सर्दी से बचाने के लिए मूर्ति को कंबल-शॉल में लपेटा

राजस्थान के अजमेर में सर्दी शुरू होते ही मंदिरों में अनोखा नजारा दिख रहा है. जहां गणेशजी, हनुमानजी व महालक्ष्मी की मूर्तियों को गर्म कंबल, शॉल, टोपी व जूते पहनाए जा रहे हैं.

राजस्थान में मंदिरों में ठिठुर रहे हैं भगवान! सर्दी से बचाने के लिए मूर्ति को कंबल-शॉल में लपेटा
अजमेर में गर्म कपड़े पहने हुए भगवान.

Rajasthan News: राजस्थान के अजमेर जिले में ठंड का मौसम शुरू होते ही शहर के प्रसिद्ध मंदिरों में अनोखा नजारा दिखने लगा है. भगवान की मूर्तियां अब रुई से भरे गर्म कंबल, मखमली शॉल, ऊनी टोपी और नरम जूते पहने नजर आ रही हैं. श्रद्धालु दूर-दूर से आकर इस प्यार भरे दृश्य को देख रहे हैं और मन ही मन मुस्कुरा रहे हैं. सर्दी सिर्फ इंसानों को नहीं, भगवान को भी अपनी आगोश में ले रही है.

गर्म वस्त्रों से सजी मूर्तियां

आगरा गेट वाले प्रसिद्ध गणेश मंदिर में राखी शर्मा बताती हैं कि ठंड में बप्पा को गर्म कपड़े पहनाना सदियों पुरानी परंपरा है. यह सिर्फ रस्म नहीं, अपार श्रद्धा का प्रमाण है. ठीक वैसे ही जैसे मां अपने बच्चे को ठंड से बचाती है, वैसे ही पुजारी भगवान को बचाते हैं.

शिव सागर स्थित मराठा काल के ऐतिहासिक श्री वैभव महालक्ष्मी और पंचमुखी हनुमान मंदिर में भी यही दृश्य है. पंडित राखी शर्मा कहते हैं - “भगवान हमारे लिए सब कुछ हैं. जब हम खुद गर्म कपड़े पहनते हैं तो उन्हें कैसे ठंड लगने दें? ऋतु के अनुसार उनकी सेवा करना मंदिर की गरिमा बनाए रखता है और मन को सुकून देता है.”

पूजा का समय बदला, हीटर से गर्म हुआ मंदिर

सुबह की कड़ाके की ठंड में अब जल्दी पूजा नहीं होती. समय को थोड़ा पीछे खिसकाया गया है ताकि पुजारी भी आराम से आएं और श्रद्धालु भी बिना ठिठुरे दर्शन कर सकें. कई मंदिरों में बड़े-बड़े हीटर लगाए गए हैं. गर्म हवा का झोंका आते ही पूरा वातावरण सुहाना हो जाता है. मंदिर अब सिर्फ पूजा स्थल नहीं, ठंड से राहत देने वाला आशियाना भी लगता है.

भोग में आई गर्माहट - गजक, रेवड़ी, खिचड़ा

अब भगवान को ठंडे प्रसाद की जगह गर्मागर्म व्यंजन चढ़ रहे हैं. गर्म दूध की मिठास, मक्के-बाजरे की खिचड़ी की खुशबू, तिल पट्टी, गजक और रेवड़ी का स्वाद - पूरा मंदिर महक उठता है. श्रद्धालु भी यही प्रसाद पाकर खुश हो रहे हैं क्योंकि ठंड में इससे बेहतर कुछ नहीं लगता. अजमेर की यह परंपरा अब सिर्फ धार्मिक रिवाज नहीं रही. यह प्यार, अपनापन और जीवंत आस्था का जीता-जागता प्रमाण बन गई है.

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