
Rajasthan History: राजस्थान के इतिहास पर चर्चाएं एक बार फिर तेज हो गई है. महाराणा प्रताप और अकबर की सेनाओं के बीच हल्दीघाटी में लड़े गए युद्ध को कई सालों तक अनिर्णायक बताया गया या फिर महाराणा प्रताप की हार बताई गई. जितना यह युद्ध ऐतिहासिक है, उतना ही इसे लेकर इतिहास में विवाद भी हुआ. अब एक बार फिर इसकी चर्चा हो रही है. पहली बार साल 2017 में राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के इतिहास में जोड़ा गया कि महाराणा प्रताप की युद्ध में जीत हुई थी. इतिहासकार प्रो. चंद्रशेखर शर्मा ने इसी विषय पर पीएचडी की और उन्होंने प्रमाण के साथ कहा कि युद्ध का परिणाम मेवाड़ की सेना के पक्ष में हुआ था. उनके इसी तथ्यों को बोर्ड की किताब में जोड़ा गया. प्रो. शर्मा वर्तमान में उदयपुर के मीरा गर्ल्स कॉलेज में इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष भी हैं. यहां जानिए आखिर वो क्या तथ्य थे, जिसके आधार पर इतिहासकार ने प्रताप की युद्ध की बात कही.
"अगर मुगल जीते तो राजस्व उनके हिस्से क्यों नहीं गया?"
प्रो. चंद्रशेखर शर्मा के मुताबिक, "हल्दीघाटी युद्ध के ठीक बाद चेतक स्मारक हेतु भूमिदान, और आसपास के पर्वतीय क्षेत्र के साथ-साथ मैदानी भाग के पट्टे-परवाने और ताम्रानुशासन प्रताप द्वारा जारी किए गए. ऐसा लगा कि हल्दीघाटी की लड़ाई यदि मुगलों ने जीती होती तो उसके आसपास के क्षेत्र को अजमेर सूबे में शामिल कर उसका राजस्व मुगल प्रशासन द्वारा लिया जाता, जैसे कि चित्तौड़ और मांडलगढ़ में की गई थी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ था."
उन्होंने कहा कि सिर्फ अबुल फजल के लेखन को सत्य मान लिया गया जो कि खुद इस युद्ध में मौजूद नहीं था. इसके विपरीत जो बदायूंनी इस युद्ध में लड़ने वाला एक योद्धा भी था और साक्षी भी, उसे तवज्जो नहीं दी गई. बदायूंनी भी स्पष्ट रूप से मुगल सेना की जीत का उल्लेख नहीं करता.
मेवाड़ की सेना की जीत का प्रमाण- युद्ध के बाद मुगल सैन्य छावनी नहीं बनी
इसके अलावा ना कोई ऐसी व्यवस्था, ना कोई फौजदार चौकीदार या मुगल सैन्य छावनी कायम की गई, जैसी कि अन्य जगह जीतने के बाद अकबर द्वारा की गई थी. इतिहासकार इसी आधार पर मेवाड़ की सेना की जीत का दावा करते हैं. मुगल सेनापति मानसिंह कच्छवाहा का युद्ध क्षेत्र में प्रताप का सामना ना कर अपनी जान बचाने का प्रयास, महावत के मारे जाने के बाद असंतुलित हाथी के साथ मानसिंह का उस स्थान से पलायन जैसे कई उदाहरण के आधार को भी इतिहासकार ने अपनी रिसर्च में जोड़ा.
सवाल- मुगल सेना को गोगुंदा में खाई खोदकर रहने की नौबत क्यों आई?
प्रो. शर्मा के अनुसार, मुगल सेना को गोगुंदा गांव (उदयपुर) में खाई खोदकर शिविर में पड़े रहकर भूखे मरने की नौबत आई और अकबर के सामने जाने की हिम्मत ना जुटा पाए. अकबर के आदेश पर मुगल कोर्ट में जाना और अकबर द्वारा मानसिंह और आसफ खान की 6 महीने के लिए ड्योढ़ी माफ कर दी गई. साथ ही उन दोनों को दरबार में शक्ल न बताने की सजा दी गई. इतिहासकार कहते हैं कि ये वो तथ्य है जो यह सिद्ध करते हैं कि प्रताप युद्ध जीते थे.

तस्वीरः Eternal Mewar
प्रो. शर्मा का मत है कि अगर मुगल सेना जीती तो फिर हल्दीघाटी युद्ध के 3 महीने बाद अकबर हल्दीघाटी को क्यों देखने आया और उसके बाद भी शाहबाज खान, जगन्नाथ कच्छवाहा, रहीम खानखाना के नेतृत्व में मेवाड़ विरोधी अभियान जारी रहा. क्या वह जीती हुई बाजी को फिर जीतना चाहता था? इतिहासकार के मुताबिक, "बार-बार ऐसे प्रयास बताते है कि हल्दीघाटी का परिणाम क्या रहा होगा. साथ ही मानसिंह कच्छवाहा को दोबारा मेवाड़ अभियान पर क्यों नहीं लगाया? जाहिर तौर पर जो पहले हार कर आया हो उसे कोई बुद्धिमान शासक फिर से मौका नहीं देता. आखिर में अकबर ने निराश होकर बंगाल अभियान जारी रखा और मानसिंह का ट्रांसफर बंगाल- बिहार के अभियानों में कर दिया."
उन इतिहासकारों के बारे में जानिए, जिन्होंने युद्ध की अलग- अलग समीक्षा की
इससे पहले तक अलग-अलग इतिहासकारों और किताबों में युद्ध की कई तरह से समीक्षा की गई. बदायूंनी की किताब में लिखा गया कि हल्दीघाटी युद्ध की एकमात्र उपलब्धि राम प्रसाद हाथी था और कुछ नहीं. जबकि राजस्थान की प्रसिद्ध इतिहासकार श्यामलदास ने वीर विनोद में मुगल सेना की जीत बताई थी. अबुल फजल और इतिहासकार जीएन शर्मा ने भी मेवाड़ की सेना की हार बताई. इस इतिहासकार गौरीशंकर ओझा ने इस युद्ध को सीधे तौर पर परिणाम की समीक्षा नहीं की. उन्होंने लिखा- "जो नरो वा कुंजरौ की तरह अस्पष्ट है." लेकिन इशारों ही इशारों में अनिर्णायक बताया.
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