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Rajasthan Politics:  राजस्‍थान में 9 ज‍िले खत्‍म कर भजनलाल सरकार ने ल‍िया कड़ा फैसला, बीजेपी पर क्‍या पड़ेगा असर? जानें स‍ियासी मायने 

Rajasthan Politics: बीजेपी सरकार राजस्‍थान में 9 ज‍िले और 3 संभाग को खत्‍म कर द‍िया. प्रदेश में व‍िपक्ष ने सरकार के इस फैसले पर सवाल खड़ा कर द‍िया है.

Rajasthan Politics:  राजस्‍थान में 9 ज‍िले खत्‍म कर भजनलाल सरकार ने ल‍िया कड़ा फैसला, बीजेपी पर क्‍या पड़ेगा असर? जानें स‍ियासी मायने 

Rajasthan Politics: राजस्थान में सात सीटों के उपचुनावों में पांच सीटों पर मिली जीत से आत्मविश्वास से लबरेज़ भजनलाल सरकार ने ज़िलों और संभागों को लेकर चल रहे मंथन पर आखिरकार बड़ा और कड़ा फ़ैसला कर लिया.  लेकिन अब सवाल ये है कि इस फ़ैसले के मायने क्या हैं क्या भाजपा को इस फ़ैसले से नुक़सान होगा.  क्या बैठे बिठाए BJP ने कांग्रेस को बजट सत्र से पहले बड़ा मुद्दा दे दिया.  

सीएम ने कड़े फैसले की द‍िशा में बढ़ाया कदम 

दरअसल सब जानते हैं कि राजस्थान में 9 ज़िले और 3 संभाग निरस्त करने का ये फ़ैसला भजन लाल सरकार के लिए आसान नहीं था लेकिन इस फ़ैसले के ज़रिए मुख्यमंत्री भजनलाल ने अपनी मज़बूत इच्छाशक्ति और कड़े फ़ैसले लेने की दिशा में बड़ा क़दम बढ़ाया है.  ये अलग बात है कि राजस्थान में भाजपा ये अच्छे से जानती है कि इस फ़ैसले के ज़रिए उन्होंने बजट सत्र से पहले कांग्रेस को एक बड़ा अवसर भी दे दिया है लेकिन भाजपा के थिंक टैंक ने कांग्रेस की इस चुनौती से निपटने के लिए पहले से तैयारी कर रखी है.  यही कारण है कि कैबिनेट में लिए इस फ़ैसले के बाद तुरंत मंत्रियों की बड़ी फ़ौज कांग्रेस के आरोपों का जवाब देने के लिए मैदान में उतर गई है.  

मंत्रिमंडल समिति के सुझावों के आधार पर लिया फैसला 

सरकार के पास दलील है कि 9 ज़िलों और 3 संभाग को निरस्त करने का फ़ैसला ललित के पंवार कमेटी की रिपोर्ट और मंत्रिमंडल समिति के सुझावों के आधार पर लिया गया.  यानी हर पहलू पर अच्छे से विचार किया गया है लेकिन इसके बावजूद इस फ़ैसले की अपने अपने तरीक़े से समीक्षा और आलोचना हो रही है.  कहा जा रहा है कि भाजपा ने इस फ़ैसले के ज़रिए कांग्रेस के मज़बूत गढ़ कहे जाने वाले शेखावटी को निशाना बनाया है तो वहीं पूर्वी राजस्थान पर विशेष मेहरबानी ज़ाहिर की है.

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा सीकर के लक्ष्मणगढ़ से आते हैं सीकर से संभाग का दर्जा वापस लेने के साथ नीम का थाना से ज़िले का दर्जा भी छीन लिया गया है.  इसी तरह से भाजपा आदिवासी बेल्ट में बेहद कमज़ोर थी लेकिन इसके बावजूद वहाँ पर बांसवाड़ा से संभाग का दर्जा छीनना भी कम साहसिक निर्णय नहीं है.  

अनूपगढ़ ज‍िला बना तो सबको हुई थी हैरानी 

CM के गृह क्षेत्र भरतपुर में डीग और अलवर में खेरथल ज़िले का दर्जा बरकरार रहा है लेकिन डिप्टी CM प्रेम चंद बैरवा का दूदू जो सबसे छोटा जिला था वो अब जयपुर में शामिल हो गया.  जयपुर ग्रामीण और जोधपुर ग्रामीण के ज़िले के दर्जे को ख़त्म किए जाने की पूरी उम्मीद थी इसी तरह से श्री गंगानगर में सूरतगढ़ को जिला बनाए जाने की उम्मीद थी लेकिन जब अनूपगढ़ को जिला बनाया गया तो सबको हैरानी हुई थी.  

केकड़ी जिला बनाने का निर्णय अंतिम समय पर लिया गया था

इसी तरह से अजमेर में ब्यावर के साथ केकड़ी को भी जिला बनाने से उस वक़्त इसे पोलिटिकल ही फ़ैसला माना गया था. केकड़ी को जिला बनाने का निर्णय अंतिम समय पर लिया गया था.  जिला बनाने की घोषणा से कुछ  दिन पहले ही कांग्रेस नेता रघु शर्मा के साथ बड़ी संख्या में कार्यकर्ता CM आवास पहुँचे थे और जिला बनने की सूची में केकड़ी का नाम शामिल हो गया था.  ये तो अलग बात है कि दूदू की तरह कांग्रेस को केकड़ी में भी जिला बनने का लाभ नहीं मिल पाया था.  उस वक़्त के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी आख़िरी बजट में 17 ज़िले और 3 संभाग बनाने की घोषणा की थी बाद में नागरिकों की माँग पर तीन ज़िले और भी बनाए गए थे लेकिन नोटिफिकेशन जारी नहीं हो पाया था.  

कांग्रेस को राजनीत‍ि तौर पर कोई बड़ा फायदा नहीं हुआ 

कांग्रेस को ज़िले बनाने से राजनीतिक तौर पर कोई बड़ा फ़ायदा नहीं हुआ. लेकिन, यह माना गया कि बिना किसी तैयारी के सही मापदंडों के ज़िले रेवड़ियों की तरह बाँट दिए गए.  आम तौर पर इतनी बड़ी संख्या में ज़िले एक साथ बनते नहीं है कहा तो ये भी के गया कि कुछ विधायकों ने उस वक़्त ज़िले मनाने की माँग नहीं की थी वरना उस वक़्त ज़िलों की संख्या और ज़्यादा भी हो सकती थी.  कई विशेषज्ञों ने उस वक़्त भी अशोक गहलोत के इस फ़ैसले की आलोचना की थी लेकिन अशोक गहलोत की दलील थी कि राजस्थान बहुत बड़ा स्टेट है और इसके विकास के लिए छोटे ज़िलों का मॉडल सबसे उपयोगी रहेगा. 

पिछले साल के आख़िर में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने इन ज़िलों की समीक्षा करने का वादा किया था सरकार बदलने के बाद ज़िलों की समीक्षा के चलते इन ज़िलों में प्रशासनिक ढांचा विकसित नहीं हो पाया.  सरकार के लिए फ़ैसला करना आसान नहीं था लेकिन एक साल के बाद ये निर्णय ले लिया गया. 

ज़िले ख़त्म करने से भाजपा को कोई फ़ायदा नहीं होगा

इसकी वजह ये भी है कि हाल फ़िलहाल राजस्थान में बड़े चुनाव नहीं है.  आगामी विधानसभा चुनाव में भी 4 साल का वक़्त है उससे पहले पंचायत और निकाय चुनाव में ज़रूर सरकार को ज़िलों और संभाग को ख़त्म करने की चुनौती का सामना करना पड़ सकता है लेकिन भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि जिस तरह से ज़िले बनाने से कांग्रेस को कोई लाभ नहीं हुआ था उसी तरह से ज़िले ख़त्म करने से भाजपा को कोई फ़ायदा नहीं होगा.  भाजपा के नेता कार्यकर्ता और अग्रिम संगठन लोगों को ये समझाने में क़ामयाब रहेंगे कि केवल राजनीतिक फ़ायदे के लिए ही अशोक गहलोत सरकार ने इन ज़िलों का गठन किया था जिलों को बनाने के लिए पर पर्याप्त बजट भी सरकार के पास नहीं था.  

ज‍िले बनने पर इन इलाकों में बड़े बदलाव शुरू हो गए थे 

इन फैसलों का दूसरा पहलू ये है कि जिला बनने के बाद इन इलाकों में बड़े बदलाव आना शुरू हो गए थे.  बड़ा प्रशासनिक ढांचा बनाने की शुरुआत के साथ ही लोगों को उम्मीदें भी जगने लगी दी.  ख़ास तौर पर विकास और आर्थिक तौर पर क्षेत्र में तरक़्क़ी होगी जिला बनने की घोषणा के साथ ही प्रॉपर्टी के दाम बढ़ गए थे.  लोगों को लगने लगा था कि अब कलेक्टर SP और बड़े अधिकारियों के ऑफ़िस ज़िलों में होंगे तो वहीं संभाग के तौर पर बांसवाड़ा और पाली जैसे क्षेत्रों के विकास की भी उम्मीद जगी थी.  ऐसे में इस फ़ैसले के बाद यहाँ के लोगों के विरोध के स्वर नज़र आने लाजिमी हैं.

सदन में भाजपा की इस मुद्दे पर कड़ी परीक्षा होने वाली है

कांग्रेस इन आवाजों को भुनाने की पूरी कोशिश करेगी और हो सकता है कि निकाय और पंचायत चुनाव में ज़िले और संभाग वाले क्षेत्रों में भाजपा को खामियाजा उठाना पड़े लेकिन सबसे पहली और बड़ी चुनौती भाजपा के लिए जनवरी के तीसरे सप्ताह में शुरू होने वाले बजट सत्र में फ़्लोर मैनेजमेंट की है.  कांग्रेस के नेताओं ने सरकार को घेरने की पूरी तैयारी कर रखी है जनवरी में पहले सड़क पर और उसके बाद फिर सदन में भाजपा की इस मुद्दे पर कड़ी परीक्षा होने वाली है. 

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